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सखीभाव १६८४
सगापन दानशील, उदार, दानी, दाता । " सखि मगनौती-संज्ञा, स्त्री० (दे०) शकुन विचारने सब कौतुक देखन हारे"---रामा०। की क्रिया, सगुनौती (दे०)। सखीभाव-संज्ञा, पु० (सं०) एक कृष्ण-भक्ति-सगपहती-संज्ञा, पु० स्त्री० (दे०) साग मार्ग या उपासना-विधि जिसमें भक्त अपने मिली पकी दाल, मगपहिती । पु०का इष्टदव या उसका प्रिया का सखी या सगपहनी (दे०)। सहेली मानकर उपासना करते हैं। (हित सगवग--वि० (अनु.) श्राई, तर, सराबोर, हरि-वंशजी की उपासना-विधि) टट्टी-संप्रदाय ।। द्रवित, लथपथ, परिपूर्ण, भीगा हुआ, विलो०-सखा-भाष, सख्य-भाव । गीला। "चंदसखी भजु बाल कृष्ण-बि'
सगबगाना-अ० कि० दे० ( अनु० सगवग ) चंद्र।
भीगना, सरावोर या लथपथ होना, सखुआ-सखुवा-संज्ञा, पु०६० (सं० शाल)।
सकपकाना, सकनकाना, भयभीत या शालवृक्ष, साखू का पेड़।
शंकित होना । " पूछे क्यों रूखी परति सखुन-संज्ञा, पु. (फ़ा०) काव्य, कविता,
सगबग गई सनेह"--वि० शत० । वार्तालाप, बातचीत, बात, वचन, उक्ति,
सगर ---संज्ञा, पु. (पं०) अयोध्या के एक कथन । " हकीमे सखुन बर ज़बाँ आफरी"
सूर्य-वंशीय धर्मालमा प्रजा-पालक राजा, --सादी।
इनके ६० हजार पुत्र थे. राजा भगीरथ सखुन-तकिया-संज्ञा, पु० यौ० (फा०)
इनके ही वंशज हैं । " नामसगर तिहुँ लोक वाक्याश्रय, तकिया-कलाम, वह शब्द या
विराजा''--रामा० : वि० (दे०) सगल, वाक्यांश जो लोग वार्तालाप के बीच में । यों ही ले पाते हैं।
सब, अधिक, रेनेगर । प्रा०) सख्त-वि० (फा०) कड़ा, कटोर, दृढ़ । संज्ञा, सगरा, मगला
मगरा, मगला- वि० दे० ( सं० सकल ) स्त्री-संकट, विपत्ति । " मुझपै परी अब
सब का सब, सारा, तमाम, कुल. सकल, सख्त"-सुजग०।
बहुत, संगर (ग्रा०) । स्त्री.-सगरी। सख्ती-संज्ञा, स्त्री० (फा.) ज्यादती. सगर्भा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) गर्भवती स्त्री, कड़ाई, कठोरता, करता, दृढ़ना, विपत्ति ।
सगी बहिन, गर्भयुका। सख्य-संज्ञा, पु० (सं०) मित्रता, दोस्ती,
सगल ----वि० दे० ( सं० सकल ) मगर, मैत्री. सखापन, विष्णु-भक्ति का वह भाव सब, संपूर्ण, पूरा पूरा, सारा, कुल, समस्त । जिसमें अपने को विष्णु या उनके अवतार वि० (सं०) गलायुक्त । का सखा मानकर भक्त उपासना करता है, । सगा-वि० दे० (सं० सवक) सहोदर, सखा-भाव । यो०-सख्य-भाव। एक ही माता-पिता से उत्पन्न, जो सम्बन्ध सख्यता-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं०) मित्रता, में निज का हो । स्त्री. सगी । “संपति
मैत्री, सखापन, दोस्ती, मिताई (दे०)। के सब ही सगे"... नीतिः । सगड़-संज्ञा, पु० दे० (सं० शकट ) छकड़ा, | सगाई-संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० सगा+ईगाड़ी, बैल-गाड़ी।
प्रत्य० ) व्याह का ठीक या निश्चय होना, सगण-संज्ञा, पु. (सं० ) दो लघु और । सम्बन्ध, मॅगनी प्रान्ती०), नाता, रिश्ता, एक दीर्घ वर्ण से बना एक गण जिलका छोटी जातियों में स्त्री-पुरुष का व्याह जैसा रूप (15) होता है (पिं०) । वि० (सं.)। सम्बन्ध, सगापन । गण या समूह के साथ ।
सगापन–संज्ञा, पु. (हि०) सम्बन्ध का
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