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सइ
सइ* - श्रव्य० दे० ( सं० सह ) साथ से । धन्य० दे० ( प्रा० सुन्ती) करण और संप्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति ( व्या० ) । सइयो - संत्रा, खी० दे० (सं० साथी) सखी, सहेली. संगिनी, साथिनी ।
मगर वि० ग्रा० (सं० कल ) बहुत, अधिक, सकल, सैrर (दे० ) । सहराना - सैराना - अ० क्रि० (दे०) बढ़ना, समाप्त न होना, फैलना, ख़तम होना ! सई - संज्ञा, खो० (दे०) एक नदी, तमसा, सखी, वृद्धि, बढ़ती | संज्ञा, स्त्री० ( ० ) कोशिश. ra |
सईस - संज्ञा, पु० द० ( हि० साईस ) घोड़े की सेवा या चौकसी करने वाला नौकर | सहीस-माईस (दे० ) | संज्ञा, स्त्री०सईसी-सहीस का काम ।
सउँ
:- अव्य० दे० (हि० सों) सौंह, कसम, शपथ, सों, सौं, करण और अपदान कारक की विभक्ति ( ० ) ।
सऊं अव्य० (दे०) सीधे, सामने, सौहे । ( ग्रा० ) सौंह ।
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सर-सहर-संज्ञा, पु० दे० (फा० शऊर ) तमीज़. ढंग, व्यवहाराचार । सक-संज्ञा, बी० दे० (सं० शक्ति) शक्ति, बल कति (दे० ), ( यौ० में- जैसेभरसक ) संज्ञा, पु० दे० (सं० शक) शक जाति | संज्ञा, पु० दे० ( अ० शक ) संदेह, शंका | संज्ञा, पु० दे० ( हि० साका) साका, धाक, श्रातंक | अ० क्रि० (हि० सकना) सकना । "ग छाँह सक सो न उडाई - रामा० । 66 राम चाप तार सक नाहीं " रामा० । सकर - संज्ञा, पु० दे० (सं० शकट) छकड़ा, गाड़ी । सकत-कति / संज्ञा, खो० दे० (सं०शक्ति) शक्ति, बल, जोर, पौरुष, पराक्रम, सामर्थ्य, संपत्ति, वैभव ।" प्रान को सकति अधरान लौं न श्रावनि की " -रत० । क्रि० वि० जहाँ तक हो सके, भरसक । प्र० क्रि० (दे०) सकता है 1
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भा० श० को०-२११
सकल
सकता - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शक्ति) शक्ति, बल, सामर्थ्य, पौरुष, पराक्रम | संज्ञा, पु०(प्र०सकतः) स्तब्धता, वेहोशी की बीमारी, यति विराम । मुहा० - सकता पड़ना
- यति भंग दोष होना। सकते में ध्याना -- थाश्चर्यादि से स्तब्धता होना । सकति सकती-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शक्ति) शक्तिः, बल. पौरुष, बछ, सामर्थ्य | "सूर सकति जैसे लछिमन उर विट्ठल होइ मुरानो" ।
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सकना
अ० क्रि० दे० (सं० शक या शक्य ) करने में समर्थ होना, करने योग्य होना । सकपकाना सकवकाना अ० क्रि० दे० (अनु० सकपक) अचंभित होना, हिचकना, लज्जित होना, अनोखी दशा होना, लज्जा, प्रेम, शंकादि से उत्पन्न एक चेटा विशेष, हिलना - डोलना | संज्ञा, स्त्रो० - सकपकी । सकरना - प्र० क्रि० दे० (सं० स्त्रीकरण ) सकारा जाना, स्वीकृत होना, अंगीकृत होना, भुगतान होना । स० रूप-सकराना सवारना, प्रे० रूप - सकरवाना । सकरपाला - सकरपारा - संज्ञा, पु० दे० (हि० शकरपारा) एक प्रकार की मिठाई, एक प्रकार की श्रायताकार सिलाई । सकरा - वि० दे० (सं० संकीर्ण ) संकीर्ण, संकुचित, रोटी दाल आदि कच्चा भोजन । स्त्री० सकरी ।
मकरण - वि० (सं०) दयावान, कृपापूर्ण । सकर्मक क्रिया - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वह क्रिया जिसका फल या कार्य उसके कर्म पर पहुँच कर समाप्त हो (व्याक० ) । जैसे-पीना, लिखना ।
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कुल ।
सकल -- वि० (सं०) संपूर्ण, समस्त, सब. सकल सभा की मति भइ भोरी"रामा० : संज्ञा, पु० (सं० ) निर्गुण ब्रह्म तथ गु प्रकृति | वि० (सं०) कला या मात्रा युक्त
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