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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृति १६८० सइंतना, सैतना शुद्ध या साफ किया हुआ, सुधारा या संहति-संज्ञा, स्त्री० सं०) मेल, मिलाव, दुरुस्त किया हुश्रा, सँवारा या सजाया हुआ, जुटाव, राशि, वृंद, झुड समूह, धनख, जिसका उपनयनादि संस्कार हुआ हो। संधि, जोड़, संयोग, ठोसपन । संज्ञा, स्त्री० भारतीय पार्यो की प्राचीन संहनन--संज्ञा, पु० (सं०) संहार, वध, मेल, शुद्ध साहित्यिक भाषा, देव-वाणी, संस- मालिश।। कीरत (दे०)। संहरण-(सं०) संहार, नाश, प्रलय, एकत्र संस्कृति--संज्ञा, स्त्री० (सं०) शुद्धि, सफाई, करना ! वि०-सहरमणीय। सुधार, संस्कार, सजावट, सभ्यता, परिष्कार, संहरना -- अ० कि० दे० (सं० संहार ) नाश २४ वर्गों के वर्णिक छंद (पि०)। या नष्ट होना, मिटि जाना, संहार होना। स० क्रि०-विनाश या संहार करना। संस्था-संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्थिति, व्यवस्था, ठहरने या स्थिर होने की क्रिया या भाव, संहार-संज्ञा, पु० (सं०) अंत, समाप्ति, नाश, विधि, विधान, मर्यादा, वृंद, समूह, झुड, विनाश, प्रलय, एक नरक, एक भैरव, ध्वंस, परिहार, निवारण, समेट कर बाँधना, एकत्रित समाज, सभा, मंडली, मंडल, संगठित करना, समेटना, बटोरना, गूंधना, गूथना, समुदाय । ग्रंथन, ( केशादि ) विमुक्त बाण को वापस संस्थान--संज्ञा, पु. (सं०) स्थिति, सत्ता, लेना। निवास स्थान, स्थापन, बैठाना, जीवन, संहारक-संज्ञा, पु. (सं०) नाश करने वाला, अस्तित्व, गृह, डेरा, गाँव, घर, जनपद, । मिटाने वाला, विनाशक, ध्वंसक । स्रो०बस्ती, सार्वजनिक स्थान, सर्व साधारण के । संहारिका! एकत्र होने का स्थान, योग, समष्टि, जोड़, संहार काल-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) प्रलय नाश, मृत्यु, मौत। या नाश का समय, संहार-बला। संस्थापक-संज्ञा, पु. (सं०) संस्थापन संहारना*-स० क्रि० दे० (सं० संहरण ) करने वाला, नियत करने वाला ! स्त्री०--. नाश या नष्ट करना, ध्वंस करना, मिटाना, संस्थापिका। मार डालना। संस्थापन--संज्ञा, पु. (सं०) खड़ा करना, संहित-- वि० (सं०) एकत्रित किया हुश्रा, बैठाना, ( भवनादि ) उठाना, कोई नवीन संचित, समेटा और मिलाया हुआ, जुड़ा बात चलाना, उठाना, स्थापित करना । हुआ। वि०-संस्थापनीय, संस्थापित, संस्थाप्य। संहिता--संज्ञा, स्त्री० (२०) संयोग, मेल, संस्पर्श-संज्ञा, पु० (सं०) स्पर्श. छूत । संज्ञा, मिलावट, एकत्र, इकट्ठा किया हुधा. संयुक्त, पु. (सं०) संस्पर्शन, वि०-संस्पर्शनीय । सान्निधि, व्याकरण में सधि या दो वर्गों का संस्मरण-संज्ञा, पु. (सं०) भली भाँति मिलकर एक होना, पद पाठादि के नियमायाद, पूर्ण रूप से स्मरण, भलीभाँति नाम नुकूल क्रम वाला ग्रंथ । जैसे-चरक-सहिता, जपना, ध्यान या याद करना । वि०- धर्म-सहिता। "परासनिकर्षा सहिता।" संस्मरणीय, संस्मृत,संस्मारक। " संहितैक पदे निया".--सि० को । संहत-वि० ( सं०) भलीभाँति मिलित, सइँया ~संज्ञा, पु. (दे०) साँई, स्वामी, सर्वथा मिश्रित, खूब मिला, जुड़ा और सटा पति, प्रेमी ईश्वर, सैंयाँ। हुमा, सहित, संयुक्त, सस्त, कड़ा, घना, साँतना-सैंतना--स० क्रि० दे० (सं० संचिय) गठा हुआ, दृढ़, इकट्ठा, एकत्र । __ संचय करना, बचाकर रक्षित रखना। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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