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सँनेस
संपुट समय की जाती है (आर्य०) । " संध्या संग, मिश्रण, वास्ता. संसर्ग, सम्बन्ध, करन गये दोऊ भाई"-- राना
लगाव, सटना. स्पर्श । सँनेस --- संज्ञा, पु० दे० (सं० देश संदेश। संपा --- संज्ञा, स्त्री० (सं०) बिजली. विद्युत् । "अपर सनेस की न बातें कहि जाति हैं' संपात ---- संज्ञा, पु. (सं०) संगम, संसर्ग, ---ऊ. श. ।
मेल, सम्पर्क, समागम, एक साथ गिरना संन्यास--संज्ञा, पु. (सं०) चार श्राश्रमों में या पड़ना, जहाँ दो रेखायें एक दूसरी को से अंतिम पाश्रम जिसमें काम्य और कार्ट या मिल (रेखा०)। नित्यादि कम निष्काम रूप ले किये जाते हैं। संपाति-- संज्ञा, पु. (सं०) गरुड़ का ज्येष्ट ( भार० भार्य० )। " जैसे विनु विराग पुत्र तथा जटायु का बड़ा भाई एक गीध, संन्यासी''--रामा० ।
संपाती (दे०), माली नामक राक्षस का संन्यासी---संज्ञा, पु. (सं० सन्यासिन ) । एक पुत्र । 'सुनि संपाति बधु कै करनी" सन्यासाश्रम में रहने और तदनुकूल नियमों ---- रामा । का पालन करने वाला । " मूंड़ मुंडाय संपाती-संज्ञा, पु. दे० सं० संपाति ) होहिं सन्यासी' - रामा०।
गरुड़ पुत्र जटायु का बड़ा भाई एक गीध । संपति संज्ञा, स्त्री० दे० सं० संपत्ति ) | "गिरि कंदरा सुना संपातो'-- रामा० । धन, लचमी, दौलत, जायदाद, वैभव, संपादक--संज्ञा, पु० (सं.) किसो कार्य ऐश्वर्य । " उपकारी की संपति जैसी"
का तैयार या पूरा करने वाला, सम्पन्न करने -राम ।
वाला, प्रस्तुत करने वाला, किसी पुस्तक संपत्ति-संज्ञा, स्त्री० [सं०) धन, लक्ष्मी,
या समाचार-पत्र को कम से लगा या ठीक दौलत, जायदाद, वैभव, ऐश्वर्य, सुख
करके निकालने वाला । संज्ञा, खो० (हि०) समय । वि० --संपत्तिशाली, संपत्ति
संपादकी-संपादक का कार्य । वान । “संपत्तिश्च विपत्तिश्च"-- स्फुट० । संपादकत्व-संज्ञा, पु० (सं०) संपादन करने विलो० ---विपत्ति, आपत्ति ।
को अवस्था, भाव या कार्य, संवादकता। संपद-संज्ञा, स्त्री. (सं०) धन, पूर्णता, संपादकीय---वि० सं०) सपादक का, लघमी, वैभव, ऐश्वर्य, सौभाग्य, गौरव, संपादक-सम्बन्धी। सिद्धि । “सर्वस्य द्वै सुमति कुमती संपादन ----संज्ञा, ५० स०) कार्य पूर्ण संपदापत्ति हेतु" । विलो०-विपट, भारद ।। करना, प्रदान करना, शुद्ध या सही करना, संपदा-संज्ञा, स्त्री. (सं० सपद् ) धन, ठोक या दुरुस्त करना, किसी पुस्तक या लघमी, दौलत, वैभव, ऐश्वर्या । " सोइ
समाचार पत्र को क्रम पूर्वक पाठादि लगाकर संपदा विभीषण को प्रभु सकुच-सहित प्रकाशित करना या निकालना। वि.अति दीन्हीं"--विन । विलो.-आपदा, संपादनाय, सपाद्य, संपादित विपदा।
संपादना स० क्रि० द० (सं० संपादन ) संपन्न-वि० (सं०) पूर्ण, भरा हुआ, सिद्ध, पूरा ठीक या दुरुस्त करना । 'विविधि पूर्ण किया हुश्रा, धनी. पहित, युक्त । अन्न सपति संपादहु"--- रा. रघु० । " सस-संपन्न सोह महि कैसी"-रामा || संपादित-वि० ( स०) पूर्ण, ठीक या दुरुस्त संज्ञा, स्त्रो०- संपनता।
। किया हुया, ठीक क्रम पाठादि लगाकर संपण्य-संज्ञा, पु० (सं०) मृत्यु, मौत, युद्ध, ( पुस्तक, समाचार-पत्रादि ) को ठीक किया लड़ाई, संकट-समय, विपत्ति ।
और प्रकाशित किया हुआ । संपर्क-संज्ञा, पु० (सं०) मिलावट, मेल, । संपुट-- सज्ञा, पु० (१०) बरतन के आकार
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