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Manome
संपुटी १६७३
संबंधी की कोई वस्तु, दोना, ठीकरा, डिब्बा, खप्पर, संप्रति-अत्र्य० (सं०) इदानीम् , साम्प्रतम् कपाल, अंजली, संकुचन, फूलों का कोश, इस समया में, अभी, इस काल, भाजकल, पुष्प-दल का रिक्त स्थान, मिट्टी से सने कपड़े । अधुना। से लपेटा हुश्रा एक बंद गोल पात्र जिसके संप्रदान--संज्ञा, पु. (सं०) दान देने की भीतर रखकर कोई वस्तु भाग में फूंकी क्रिया का भाव, मंत्रोपदेश, दीक्षा, एक जाती है (वैद्य० रसा०) "घोष सरोज भये
कारक (चतुर्थी) जो दान-पात्र के अर्थ में हैं संपुट दिन-मणि है बिगसायाँ-भ्रः ।। पाता है और जिसमें संज्ञा-शब्द देना क्रिया घधरू । नाचै तदपि धरीक लौं संपुट पगनि का लक्ष्य होता है (व्या०)। " जाके हेतु बजाय '-छत्र।
क्रिया वह होई, संप्रदान तुम जानो साई " संपुटी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) प्याली, छोटी -~-कु० वि०। कटोरी, संपती, संपटी (ग्रा०)। | संप्रदाय-संज्ञा, पु. (सं०) कोई विशेष धर्म संपूर्ण- वि० (सं०) सब का सब, पूर्ण, संबंधी मत, किसी मत के अनुयायियों की सारा, तमाम, कुल, समस्त, सब, बिलकुल, मंडली जो एक ही धर्म के मानने वाले समाप्त, पूरा, सर्वस्व, समपूरन (दे०)। हों, परिपाटी, चाल, रीति, पंथ, प्रणाली। संज्ञा, पु०-वह राग जिसमें सातों स्वर वि०-सांप्रदायिक। पाते हों, आकाशभूत । “भा संपूर्ण कहा सांप्रदायिक-वि० (सं०) किसी सम्प्रदाय सखि तोरा"-वासु०।।
सम्बन्धो, संप्रदाय का, धार्मिक । संज्ञा, स्त्री० संपूर्णतः- क्रि० वि० (सं०) पूर्ण रूप से, संप्रादायिकता। पूरी तरह से।
संप्राप्त---वि० (सं.) (संज्ञा, संप्राप्ति) पाया संपूर्णतया - कि० वि० (सं०) पूर्ण रूप से, हुश्रा, उपस्थित, जो हुआ हो, घटित, पूरी तरह से।
मिलना, पाना, लब्ध । संपूर्णता -- संज्ञा, स्त्री० (सं०) पूर्णता, संपूर्ण संप्राप्य --वि० (सं०) प्राप्त करने के योग्य । होने का भाव या कार्य, पूरा पूरा, पूरापन, संबंध-संक्षा, पु. (सं.) संसर्ग, लगाव, समाप्ति ।
ताल्लुक, संगम, संपर्क, नाता, वास्ता, संपृक्त - वि० (सं०) मिला हुश्रा, मिश्रित । रिश्ता, (फ़ा०) संयोग, मेल, सगाई, व्याह, "वागर्थाविवसंपृक्तो'-रघु० ।।
षष्ठी कारक जो एक शब्द का दूसरे से सपेरा-संज्ञा, पु० दे० ( हि० सॉप-+ एरा
लगाव या सम्बन्ध प्रगट करता है इसमें प्रत्य० ) साँप नचाने या रखने वाला, |
एक पद सम्बन्धी और दूसरा सम्बन्धवान मदारी, संपेला। संज्ञा, स्त्री० --सपेरिन । कहाता है। जैसे-~राम का मुख (व्याक०)। संपै-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० संपत्ति ) संपत्ति ।। | संबंधातिशयाक्ति--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) " सपै देखि न हर्षिय, विपति देखि नहिं अतिशयोक्ति अलंकार का एक भेद नहाँ रोव"--कबी०।
सम्बन्ध न (असंबंध) होने पर भी सम्बन्ध सँपोला-संज्ञा, पु० दे० ( हि० साँप ) छोटा प्रगट किया जाता है (अ० पी०)। साँप, साँप का बच्चा, संपेलवा (ग्रा.)। संबंधी-वि० (सं० संबंधिन्) लगाव या संप्रज्ञात-संज्ञा, पु० (सं०) वह समाधि सम्बन्ध रखने वाला, विषयक । संज्ञा, पु. जिसमें प्रात्मा को अपने रूप का बोध हो | नातेदार, रिश्तेदार, समधी । (सह.) या वह वहाँ तक न पहुँचा हो (योग०)। | संबंधवान । स्त्री-संबधिनी। भा० श. को०-२१०
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