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मैंजोइल
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संचरना संचरना*-अ० कि० दे० सं० संचरण) मगजी, गोट । संज्ञा, पु० एक प्रकार का चलना, फिरना, घूमना. भ्रमण करना, फैलना, घोड़ा जिपकी श्राधी देह लाल रंग की प्रसारित या प्रचलित होना, प्रयोग होना। और आधी हरे या सफेद रंग की हो। संचार-संज्ञा, पु. (सं०) चलना, गमन संजाली-संज्ञा, पु. (फा०) प्राधा लाल करना, प्रवेश, फैलना, प्रचार करना, प्रयोग, और प्राधा हरा घोड़ा। वि० संजाफ या जाना । संज्ञा, पु० - संचारण, संचारक। गोट वाला। वि०-संचारनीय, संचारित। संजाब - संज्ञा, पु० दे० ( फा० संजाफ़ ) संचारना -स. क्रि० दे० (सं० संचारण) ! सजाफ़ या चौड़ी गीट, गोट किनारी । किसी वस्तु का संचार या प्रचार करना. संजीदा-वि० ( फा०) शान्त, गम्भीर, फैलाना, जन्म देना, सँचारना (दे०)। समझदार,बुद्धिमान । संज्ञा,स्त्री० संजीदगी। संचारिका संज्ञा, स्त्री. (०) कुटनी, मंजीवन --- संज्ञा, पु० (सं०) जीवन देने दूती।
वाला, भले प्रकार जीवन बिताना । संचारी-संज्ञा, पु. ( सं० संचारिन् ) वायु, संजीवनी - वि० स्त्रो० (सं०) शक्ति-स्फूर्तिपवन, हवा, साहित्य में वे भाव जो मुख्य कारिणी, जीवन देने वाली । संज्ञा, स्त्री. भाव के पोषक हों, व्याभिचारी भाव । वि. मृत संजीवनी, एक रसायनिक औषधिसंचरण करने वाला, प्रवेश करने वाला, विशेष, जो मरे को भी जिला देती है, गतिशील।
( कल्पित ) एक विशिष्ट औषधि (वैद्य.) । संचालक-संज्ञा, पु० (सं०) चलाने, फिराने संजीवनी-विद्या--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) या गति देने वाला. परिचालक, किसी एक कल्पित विद्या जिसमें मृतक के जिलाने व्यापार का करने वाला, कार्यकर्ता, प्रबंधक। की रीति कही गयी। संचालन-संज्ञा, पु० (सं० परिचालन, संजुक्त-वि० दे० (सं० संयुक्त) सम्मिलित, चलाना, चलाने की क्रिया, कार्य जारी जुड़ा या मिला हुश्रा, नियुक्त, साथ, उचित । रखना, गति देना । वि.संचालनीय, संजुक्ता -- संज्ञा, स्त्री. (दे०) कन्नौज-नरेश संचालित।
__ जयचंद की कन्या तथा पृथ्वीराज की प्रिया संचित-- वि० (सं०) संचय किया या जोड़ा ( इति०), संयुक्ता । वि० सी०-संयुक्त । हुआ, जमा किया हुश्रा, एकत्रित । संज्ञा, संजुग*---संज्ञा, पु. १० (सं० संयुत, संयुग) पु. (सं०) तीन प्रकार के कर्मों में से एक युद्ध, रण, समर । (मीमांसा)।
| संजुत* --- वि० दे० (सं० संयुत) सम्मिलित, संजम* -- संज्ञा, पु० दे० (सं० संयम ) साथ सहित।।
संयम परहेज, बुराइयों से बचना। संजुता-संज्ञा, स्त्री० ३० (सं० संयुत ) स, संजमी-वि० दे० (सं० संयमी ) संयमी ज, ज (गणों) तथा एक गुरु वर्ण वाला एक संजय-संज्ञा, पु. (सं०) राजा पृतराष्ट्र के छंद ( पिं०)। मंत्री जो महाभारत के युद्ध के समय उसका | सँजोइ* --- क्रि० वि० दे० (सं० संयोग) समाचार सुनाते थे। "किं कुर्वन्ति संजय" साथ में | पू० क्रि० सँजोय, सजा कर । -गी।
संजोइल*---वि० दे० ( सं० सज्जित, हि.. संजात-वि० (सं०) प्राप्त, उत्पन्न। सँजोना ) भलीभाँति सजाया हुआ। संजाफ-संज्ञा, स्रो० (फा०) किनारा, झालर सुसज्जित, संचित, एकत्रित, जमा या इकट्ठा रज़ाई श्रादि की चौड़ी और पाड़ी गोट, किया हुआ।
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