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संग्रहणी
संचरण " संग्रह-त्याग न बिनु पहिचाने "- नाश या संहार करना, मिटा देना, मार रामा० । रक्षा, पाणि-ग्रहण, व्याह, ग्रहण | डालना। करने का कार्य ।
संघर्ष-संघर्षण-संज्ञा, पु० (सं० ) रगड़ संग्रहणी-संज्ञा, सी० (सं.) एक उदर रोग खाना, रगड़ जाना, विस जाना, प्रति. जिसमें पाचन-शक्ति के न रहने से बार- द्वन्द्विता, रगड़, प्रतियोगिता, स्पर्धा, घिसना बार दस्त होता है और सारा भोजन निकल रगड़ना, विस्सा। वि०-संवर्षित, संघर्ष जाता है।
णीय, संघर्षक। संग्रहना - स० क्रि० दे० (सं० ग्रहण) संचय संघात-संज्ञा, पु० (सं०) समष्टि, वृंद, समूह, या संग्रह करना, जमा या इकट्ठा करना, चोट, प्राधात, बध, हत्या, नाटक में एक जोड़ना, चुनना, एकत्र करना। वि० - प्रकार की गति, शरीर, घर। संग्रहनीय ।
संघाती- संज्ञा, पु० दे० (सं० संघ ) साथी, संग्रही-संग्रहीता--संज्ञा, पु. (सं०) संग्रह मित्र, सखा, सहचर । “भूले मन कर ले
करने वाला, संकलन करने वाला। — नाम संघाती"-स्फु० । संग्रहीत--वि० (सं०) एकत्र या इकठा संघार --- t-संज्ञा, पु० दे० (सं० संहार ) किया हुश्रा, संकलित, संचित । __ संहार, नाश, प्रलय । संग्राम- संज्ञा, पु० (सं०) रण, लड़ाई, युद्ध, संघारना--*स० कि० दे० (सं. संहार ) समर, सँगराम (दे०)। "करु परितोष मोर ! संहार करना, नाश या प्रलय करना, संग्रामा"-- रामा।
मार डालना । "ताडुका सँघारी, तिय न संग्राह्य---वि० (सं०) संग्रह करने योग्य । विचारी"-राम । संघ-संज्ञा, पु० (स.) समुच्चय, समुदाय, संघाराम--संज्ञा, पु. ( सं० ) बौद्धमत के समूह, वृन्द, झंड, दल, समिति, समाज, भिक्षुओं या साधुनों के रहने का मठ, सभा, प्राचीन काल में भारत का एक प्रकार विहार। का प्रजातंत्र राज्य, बौद्ध श्रमणों का एक संच*-पंज्ञा, पु० दे० (सं० संचय ) रक्षा, धार्मिक समाज, साधुओं के रहने का मठ, संचय, संग्रह करना, देख-भाल करना । संगत (दे०) साथ, संग।
संचकर* --संज्ञा, पु० दे० (सं० संचयकर ) संघट-संज्ञा, पु. (सं०) युद्ध, संग्राम, संचय करने वाला, कंजूस । राशि, समूह, टेर, झगड़ा, संयोग, संघट्ट संचना*-स० क्रि० दे० (सं० संचयन )
एकत्र करना, संचय या संग्रह करना, रक्षा संघटन--संज्ञा, पु० सं०) संयोग, सम्मेलन, करना । मेल-मिलाप, नायक नायिका का संयोग, संचय-ज्ञा, पु. (सं०) समुदाय, समूह, बनावट, रचना, संगठन, सम्बन्ध, सम्पर्क। झंड, ढेर संग्रह या एकत्र करना, जमा वि.--संघटनीय, संघटित । __करना या जोड़ना। संघट्ट-संघट्टन-संज्ञा, पु. ( सं० ) रचना, | संचयन--संज्ञा, पु. (सं०) भली भाँति बनावट, सयोग, सम्मिलन, मेल-मिलाप, चुनना, संचय करना । वि०-संचयनोय। संघटन, मिलन । वि०-संघट्टनीय।। संचरण--संज्ञा, पु० (सं०) चलना, गमन संघती-संघाती-संज्ञा, पु० (दे०) संगी, करना, टहलना, घूमना, भ्रमण करना, साथी, मित्र, सखा, सहचर ।।
फिरना, संचार करना। वि०-संचरित, संघरना--स. क्रि० दे० (सं० संहार ) संचरणीय ।
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