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षडरिपु
ठीवन स्वाद या रसः-मधुर, तिक्त, लवण, कटु, अंगों के सहित पूरी पूरी पूजा, श्रावाहन, कषाय, अम्ल।
पालन, अर्ध्य, पाद्य, श्राचमन, मधुपर्क परिपु-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) काम, क्रोध, स्नान, वस्त्राभरण, यज्ञोपवीत, गंध, पुष्प, लोभ, मोह, मद, मत्सर नामक जीव के ६ धूप, दीप, नैवेद्य तांबूल, (द्रव्य, दक्षिणा) शत्र या मनोविकार । " पड्रिपु जीते बिना परिक्रमा (प्रदक्षिणा), वंदना, पोडशोपचार। लोग सुख पावत सपनेहुँ नाहीं''-~-मन्ना०। पोडशमुजा--- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) दुर्गा पड्वदन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) षडानन,
देवी। कात्तिकेय, सेनानी. षणमुख ।
पोडशमातृका--संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक षड्वर्ग--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) क्रोधादि ।
प्रकार की १६ देवियां, " गौरी, पद्मा, शची, ६ शत्रु । " जितारि पड़वर्गजयेन मानवी
मेधा, सावित्री, विजया, जश।" देवसेना, --किरा.
स्वधा, स्वाहा, शांति. पुष्टि, तिस्तथा । पडविधि- संज्ञा, पु. यौ (सं०) छः भाँति
तुष्टि, मातरश्चैव श्रामदेवीति विश्रुता. का. ६ प्रकार, ६ रीति ।
" पाइशमातृकाः पृज्याः मंगलार्थ पा-वि० (सं.) छठा, छटवाँ।
निरंतरम ।
पोडशभंगार---पंज्ञा, पु० यौ० (सं०) पूरा पूरा षष्टी-- संज्ञा, स्त्री० (सं०) शुक्ल या कृष्ण पक्ष ।
शृंगार, शृंगार के सोलह प्रकारः --- उबटन. की छठवीं तिथि, छठि (दे०), पोडश
स्नान, वस्त्र धारण, चोटी, अंजन, दो, मातृकाओं में से एक, दुर्गा, कात्यायनी, .
सिंदूर, अंगरागादि। संबंध कारक, (व्या०), बालक के उत्पन्न होने
पोडशी-वि० सी० (सं.) सोलहवीं, सोलह से छठवाँ दिन तथा उस दिन का उत्सव,
वर्ष की स्त्री । संज्ञा, स्त्री०–दश महाछट्टी, छठी, (दे०)।
विद्यानों में से एक, एक मृतक संबंधी कर्म पाडव--संज्ञा, पु० (सं०) वह राग जिसमें
जो प्रायः १० वें या ११ वें दिन होता है। केवल छः स्वर ही लगें।
पोडशोपचार--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पूजन पाणमातुर-संज्ञा, पु० (सं०) षडानन..
के पूरे सोलह अगः अावाहन, श्रासन. कार्तिकेय, सेनानी।
अर्य-पाद्य, याचमन, मधुपर्क, स्नान, पागमासिक-वि. (सं०) छमाही, छः वस्त्राभरण, यज्ञोपवीत, गध, पुष्य, धूप.
महीने का, छठे महीने में पड़ने वाला। दीप, नैवेछ, तांबूल, परिक्रमा और बंदना । पोडाग---वि. (सं०) सोलहवाँ । वि. पोडश संस्कार-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ( सं० षोडशन् ) छः अधिक दस, सोलह । गर्भाधान से मनुष्य के मृतक-कर्म पर्यन्त संज्ञा, पु०-सोलह की संख्या, १६। पूरे सोलह संस्कारः---- गर्भाधान, पुंसवन, पोडशकला-संज्ञा, स्त्री. यौ० (सं०)। सीमन्त, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, चन्द्रमा के सोलह भाग जो शुक्ल पक्ष में अन्नप्राशन, चूडाकरण, कर्ण-वेध, यज्ञोपवीत,
और कृष्ण पक्ष में एक एक करके क्रमशः | वेदारंभ, समापवर्तन, विवाह, द्विरागमन, बढ़ते और घटते हैं ।
मृतक, प्रौद्ध देहिक । षोडशपूजन-संज्ञा, पु. रौ० (सं०) सोलह टीवन ----संज्ञा, पु० (सं०) थूकना ।
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