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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पटचरगा षडरस भीतर कुंडलिनी से ऊपर के ६ चक्र, पडंग-संज्ञा, पु० यौ० (सं० षट् + अंग) वेद श्राधार स्वाधिष्ठान. मणिपूरक, अनाहत, के ६ अंगः - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छंद, विशुद्धि, प्रज्ञा (हठ्यो०), षड़यंत्र। निरुक्त, ज्योतिष, शरीर के ६ अंगः - शिर, पटचरण-संज्ञा, पु० चौ. (सं०) भ्रमर. धड़. दो हाथ और दो पैर । वि०- अंग भौरा, पटपट वि०-६ पैरों वाला। या अवयव वाला । " षडंगेषु व्याकरणं पतिला-संज्ञा, स्त्री. (स.) माघ कृष्ण प्रधानम्"-महाभा०। एकादशी। षडंघ्रि-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० षट् + अंधि ) पटपद ...- संज्ञा, पु. यो. (सं.) भ्रमर, भौंरा, भ्रमर, भौंरा । वि० -जिसके ६ पैर हों। द्विरेफ, मधु । वि.-६ पैरों वाला। षडानन-संज्ञा, पु० यौ० (सं० षट् । प्रानन) पद पदी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) भौंरी, पणमुख, कार्तिकेय । वि०-६ मुखों वाला। भ्रमरो, छप्पय छंद (पि.)। पडूमि - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) ६ प्रकार की पटप्रयोग-संज्ञा, पु. यो. (सं०) तांत्रिकों तरंगें (प्राण और मन की ):-भूख, के ६ प्रयोग, मारण, मोहन, उच्चाटन, प्यास, शोक, मोह (शरीर की) जरा, मृत्यु । वशीकरण, स्तंभन, शान्ति । " बुभुक्षा च पियासा च प्राणस्य मनसः षट्नुख, पणमुख-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) स्मृती। शोक-मोही शरीरस्य जरा-मृत्यू षडूम यः।" पड़ानन, कार्तिकेय, सेनानी, शिव-सुत जो | देव-सेना-पति हैं : “गिरि वेधिषणमुख जीत पड्ऋतु-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वर्ष की ६ तारकनन्द को जब ज्यों हस्यों''.--राम ।। ऋतुयें । " ग्रीषम, वरषा, शरद, हेमन्त, शिशिर और जानिये वसन्त ॥" पटस--संज्ञा, पु. यो० (सं०) सृष्टि के ६ पड्गुण -- संज्ञा, पु० सं०) छः गुणों का रसः-खट्टा, खारा, कड़वा, कसैला, मीठा, समूह, ६ गुण, राजनीति के छः गुण:तीखा, इन सब रसों का मिश्रण, एक सधि, विग्रह यान, प्रासन, द्वैधीभाव, प्रचार । "पस भोजन तुरत करावा", संश्रय। “षड्गुणाः शक्तयस्तिस्त्रः सिद्धयश्चो---- स्फुट । दयास्त्रयः"-माघ । घटाग-संज्ञा, पु० (सं.) संगीत विद्या के संगीत विद्या के षड्ज-संज्ञा, पु० (सं०) सात स्वरों में से ६ राग-भैरव, मलार, श्री, हिंडोल, प्रथम स्वर (संगीत)। " षडज संवादिनी: दीपक, मालकोस (संगी०), बखेड़ा, झगड़ा, . केका द्विधा भिन्ना शिखंडिभिः "-रघु० । व्यर्थ का झमेला, झंझट, खटराग (दे०)। षड्दर्शन-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) न्याय, पारिपु-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) प्रात्मा के वैशोषिक, सांख्य, योग, पूर्व मीमांसा और सहज ६ वैरी:-काम, क्रोध, लोभ, मोह, उत्तर मीमांसा या वेदांत, नामक भारतीय मद, मत्सर । ६ शास्त्र, षट्शास्त्र । पटशास्त्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) प्रसिद्ध पडदर्शी - संज्ञा, पु. ( सं० षड्दर्शन + ई६ दर्शन-शास्त्रः-न्याय, वैशेषिक, सांख्य, प्रत्य० ) दार्शनिक, दर्शनों का पूर्ण ज्ञाता, योग, मीमांसा, वेदान्त या उत्तरीय ज्ञानी। मीमांसा, षड्दर्शन। षड्यंत्र - संज्ञा, पु. (सं०) छद्म-योजना, पटवांग-संज्ञा, पु. (सं.) एक राजर्षि भीतरी चाल, गुप्त रूप से किसी के विरुद्ध जिन्होंने दो घड़ी की साधना से मुक्ति की हुई कार्रवाई, जाल, कपटभरी सामग्री। प्राप्त की। | षड्स -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ६ प्रकार के For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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