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संकलपना
म-संस्कृत और हिन्दी की वर्णमाला के संकना, सकाना*- अ० कि० दे० (सं० ऊष्म वर्गों में तीसरा वर्ण, इसका उच्चारण- शंका ) डरना संदेह या शंका करना । स्थान दंत है-श्रतः यह दंत्य या दन्ती संकर -- संज्ञा, पु. (सं०) मिला-जुला, कहाता है, "लुतुलसाना दन्तः' । संज्ञा, पु. मिश्रण, दो या अधिक पदार्थों का मेल, (सं०) पक्षी, सर्प, जीवामा, शिव, ईश्वर, भिन्न भिन्न जाति के माता-पिता से उत्पन्न वायु, ज्ञान, चंद्रमा, पडज स्वर-सूचक वर्ण । व्यक्ति, दोगला, जारज, यज्ञ 'जायते वर्ण(संगी०), सगण का संक्षिप्त रूप (छं०) । संकरः"-भ० गी० । एक प्रकार का उप० (सं० सह) विशिष्टार्थ-सूचक संज्ञानों अलंकार-संमिश्रण (काव्य.) । संज्ञा, पु० के पूर्व लगने वाला एक उपपग, जैसे --- दे० (सं० शंकर ) शिवजी। सदेह, सपूत, सगोत्र।
संकर-घरनी--संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० ( सं० सं-ग्रव्य० ( सं० सम् ) यह शब्दों की श्रादि । शंकर-गृहिण, घर--नी-प्रत्य० हि० ) शिवमें लगकर संगति, शोभा, समानता, पत्नी पार्वती जी। निरंतरता, उत्कृष्टतादि का अर्थ प्रकट करता संकरता-संझा, स्त्री० (सं०) स कर का भाव है। जैसेः --- संतुष्ट, सताप, संयोग, संमान । या धर्म, मिलावट, धोल-मेल, समिश्रण । सँइतना-स० कि० दे० ( सं० संचय ) सँकरा - वि० दे० ( सं० स कोर्ण ) तंग, सतना (ग्रा०) सहेजना, संचय करना, | पतला । स्त्रो० सकरी । संज्ञा, पु०-दुःख, जोड़ना, इकट्ठा करना, पोतना, लीपना, कष्ट, संकट, विपत्ति, श्राफत, साँकर (दे०)। रक्षित रखना।
यौ० --गाढ़-साकर । *-संज्ञा, स्त्री० सँउपना* ---स० क्रि० द० ( हि० सौपना) दे० (सं० शृंखला) साँकरी, साँकल, जंजीर । सिपुद करना, सहेजना, सौंपना। संकर्षणा --- संज्ञा, पु० (सं०) हल से जोतने संक*-संज्ञा, स्रो० ६० (सं० शंका ) या किसी पदार्थ के खींचने की क्रिया, कृष्ण शंका, संदेह, भ्रम, डर, भय । " लेत-देत जी के बड़े भाई बलराम, वैष्णवों का एक मन संक न धरहीं"-- रामा० !
संप्रदाय । "सकर्षण इति श्रीमान् " संकट----वि० (सं० सम् + कृत) तंग, सँकरा, -भा० द० ।। संकीर्ण । सज्ञा, पु०--विपत्ति, आपत्ति, संकला - संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शृंखल ) दुःख, कष्ट । “कौन सो संकट मोर गरीब । सँकड़ी, सँकरी जंजीर, पशु बाँधने का को जो प्रभु श्राप मों जात न टारर्यो" सिक्कड़, सांकर, साँकल (ग्रा०)। ~संक० । दो पर्वतों के मध्य का संकीर्ण संकलन-संज्ञा, पु. (सं०) योग करना, पथ, दर्श, शटी ।
जोड़ना, संग्रह करना, जमा करना, संग्रह, संकटा--- संज्ञा, स्त्री. (सं०) एक देवी, एक ढेर, गणित में योग करने की क्रिया, जोड़, योगिनी दशा (ज्यो०) । सदा संकटा कट- अच्छे ग्रन्थों से विषयों के चुनने का कार्य । हारिणि भवानो".--संक्टा० ।
वि०-संकलनीय, संकलित। संकत* --- संज्ञा. पु. ६० (सं० संकेत ) संकलप-- संज्ञा, पु. द० (सं० संकल्प ) इशारा, इंगित, सहेट या मिलने का संकल्प, विचार, निश्चय । “सिव सकलप निश्चित स्थान, चिह्न, पता, निशान, कीन्ह मन माहीं"--राम० । पते की बातें।
संकलपना*/---स० क्रि० दे० (सं० संकल्प)
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