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श्रोत
श्वासा श्रौत-वि. (सं०) वेदानुकूल, श्रवण श्लेषोपमा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) एक संबंधी, श्रुति या वेद-संबंधी, यज्ञ-संबंधी। अर्थालंकार जिसमें ऐसे डिलष्ट, शब्द हों श्रौतसूत्र-संज्ञा, पु. यो. (सं०) कल्पग्रंथ कि उनके अर्थ उपमान और उपमेय दोनों का वह विभाग जिपमें यज्ञों की विधान में घटित हो (काव्य०, केश०) । कहा गया है, जैसे-गोभिल श्रौत सूत्र । श्लेष्मा-संज्ञा, पु. ( सं० श्लेष्मन् ) का, श्रीन* --- संज्ञा, पु० दे० ( सं० श्रवण ) सौन, देह की ३ धातुओं में से एक बलराम, कान, श्रवन, स्त्रवन (दे०)।
लामोढ़े का फल, लभेरा, लिसोड़ा (दे०) । श्लथ---वि० (स०) शिथिल, ढीला, अशक्त, " हंप पारावतगतिं धत्ते श्लेष्म-प्रकोपतः" मंद, दुर्बल, धीमा !
-भा०प०। श्लावनीय-वि० (सं०) प्रशंसनीय, बहाई श्लोक-संज्ञा, पु० (सं०) श्राह्वान ; शब्द, के लायक, श्रेष्ठ, उत्तम ।
पुकार, स्तुति, बड़ाई, प्रशंसा, यश, कीर्ति, श्लाघा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) प्रशंसा. बड़ाई, अनुष्टुप छंद, संस्कृत का कोई पद्य । स्तुति, तारीफ़, चाटुकारी, चापलूमी, चाह, "पुण्यश्लोक-शिखा मणि:"-भा० द० । इच्छा, खशामद । 'त्यागे श्लाघाविपर्ययः" श्वन्-संज्ञा, पु० (सं०) कुत्ता, श्वान । स्त्री. .. रघु.।
श्वनी। इलाध्य-वि० (सं० प्रशंसनीय, बढ़ाई या
श्वपच, श्वपाक-संज्ञा, पु० (सं०) कुत्ते स्तुति के योग्य । " भवान् श्लाध्यतमः
का मांस खाने वाला, डोम, चांडाल,
डुमार। शूरैः " --भा. द.। रिलय-वि० (०) मिला हुआ, मिश्रित,
श्वाल्क--संज्ञा, पु० (सं०) वृष्णियादक के जुड़ा हुआ, (साहिल में) दो या अधिक
पुत्र तथा अक्रूर के पिता, सुफलक (दे०)। अों वाला श्लेषयुत्त पद, श्शेषालंकार युक्त।
श्वशुर ---- ज्ञा, पु० (सं०) ससुर । यौ. संज्ञा, खो०-शिलता।
श्वशुरालय, ससुराल, ससुरार (दे०)। श्लीपद--संज्ञा, पु. (सं०) फीलपाँव पाँव ।
श्वथ-संज्ञा, स्त्री० (सं.) पति या पत्नी की के मोटे हो जाने का रोग (वैद्य०)।
माता, साल, सासु (ब० अ०)। श्लील-वि० (सं०) उत्तम, श्रेष्ठ, बढ़िया,
श्वसन-झा, पु० (सं०) साँस लेना, वायु,
दमा रोग "हरति श्वसनं कसनं ललने" शुभ, सुन्दर, जो भद्दा न हो, शिष्ठ । संज्ञा, .
----लो० स० स्रो० --श्लीलता।
श्वान-संज्ञा, पु० (सं०) कुत्ता, कुक्कुर, कूकुर इतेष --- संज्ञा, पु० सं०) मिलान, प्रालिंगन.
दोहे का २१ वाँ तथा छप्पय का १५ वाँ जुड़ना, मिलना, जाड़, संयोग. एक गुण भेद (पि.)। स्त्री०-श्वानी। (दाम), एक अलंकार जिसमें एक शब्द
श्वापद-हांज्ञा, पु० (स०) व्याघ्रादि हिंसक, के दो या अधिक अर्थ घटित हो सके। जंतु। (अ० पी०)।
श्वास-संक्षा, पु० (सं.) उसाँस, साँस. दम, श्लेषक--वि० (सं०) जोड़ने वाला, मिलने नाक से वायु खींचने और बाहर निकालने वाला । संज्ञा, पु०-मिलना, प्रालिंगन, का कार्य, हाँफना, दमा रोग, साँस फूलने श्लेषालंकार ।
का रोग, स्वाँस, स्वासा (दे०)। "श्वासश्लेषण --- संज्ञा, पु० (सं०) मिलाना, संयुक्त कास-हरश्चैव-राजाहं बल-बर्द्धनम् "-भा०
करना, जोड़ना, आलिंगन, भेटना । वि०-- प्र.। श्लेषणीय, श्लेषित, श्लेषी, श्लिए। श्वासा--संज्ञा, स्त्री० ( सं० श्वास ) साँस,
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