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श्रमी
श्रमी संज्ञा, पु० (सं० श्रमिन् ) मेहनती, परिश्रमी, मजदूर, श्रमजीवी ।
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श्रवण - संज्ञा, पु० (सं० ) शब्द का बोध करने वाली इंद्रिय, कर्ण, कान, सवन, ata (दे०), शास्त्रादि या देव-चरित्रादि सुनना तथा तदनुकूल करना, एक प्रकार की भक्ति, वैश्य-तपस्वी अंधकमुनि का पुत्र, सरवन (दे०), वाणाकार २२ वाँ नक्षत्र ( ज्यो०)। यौ० - श्रवणकुमार | श्रवन – संज्ञा, पु० दे० (सं० श्रवण ) कान, कर्ण, वन, स्रौन (दे० ), २२ वाँ नक्षत्र, एक अंध वैश्य तपस्वी का पुत्र, सरवन (दे० ), एक प्रकार की भक्ति । श्रवना* - स० क्रि० दे० (सं० स्राव ) बहना, रसना, चूना, टपकना, स्रवना (दे० ) | स० क्रि० - गिराना, बहाना ।
श्रवित - वि० दे० ( सं० नाव ) बहता या बा हुआ, वित
श्रव्य - वि० (सं०) सुनने योग्य, जो सुना जा सके । यौ० - श्रव्य काव्य - वह काव्य जो केवल सुना जा सके, नाटक के रूप में देखा या दिखाया न जा सके।
श्रांत - वि० (सं०) क्लान्त, शिथिल, शांत, जितेंद्रिय, परिश्रम से थका हुआ, दुखी ! श्रांति - संज्ञा, स्त्रो० (सं०) परिश्रम, क्लांति, थकावट, विश्राम, शिथिलता । श्राद्ध - संज्ञा, पु० (सं०) जो कार्य्यं श्रद्धाभक्ति से प्रेम-पूर्वक किया जावे, पितरों के हेतु पितृ यज्ञ, पिंडदान, तर्पण, भोजादि शास्त्रानुकूल कृत्य, सराध (दे०), पितृ पक्ष । श्राद्धपक्ष संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पितृ पक्ष | श्राप -- संज्ञा, पु० दे० (सं० शाप ) स्त्राप, सराप (दे०), कोसना, बददुधा देना, धिक्कार, फटकार |
श्रावक - श्रावग - संज्ञा, पु० (सं० श्रावक ) बौद्ध मत का साधु या संन्यासी, नास्तिक, जैनी । वि० - श्रवण करने या सुनने वाला | श्रावगी - संज्ञा, पु० दे० (सं० श्रावक ) जैनी, सरावगी (दे० ) ।
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श्रीगिरि
श्रावण - संज्ञा, पु० (सं०) सावन (दे०) का महीना, आषाढ़ के बाद और भादों से पूर्व का महीना |
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श्रावणी - संज्ञा, खो० (सं०) सावन महीने की पूर्णमासी, रजाबंधन स्यौहार, साँवनी (दे०) ।
श्रावन - स० क्रि० दे० ( हि० स्रवना ) गिराना, टपकाना |
श्रावस्ती - संज्ञा, त्रो० (सं०) उत्तर कोशल में गंगा तट की एक प्राचीन नगरी जो अब सहेत महेत कहलाती है । श्राव्य - वि० सं०) श्रोतव्य, सुनने के योग्य । त्रिय - संज्ञा, खो० दे० (सं० श्रिया ) मंगल, कल्याण | संज्ञा, स्रो० ( सं० श्री ) शोभा, आभा, प्रभा ।
श्री - संज्ञा, खो० (सं०) विष्णु पत्नी, लक्ष्मी, रमा, कमला, सरस्वती, गिरा, सफ़ेद चंदन, कमल, पद्म, धर्म, अर्थ, काम, त्रिवर्ग, संपत्ति, ऐश्वर्य विभूति, धन, कीर्ति, शोभा, कांति, प्रभा, श्राभा, खियों के सिर की बंदी, नाम के यादि में प्रयुक्त होने वाला एक श्रादरसूचक शब्द एक पद-चिन्ह, सिरी (दे०) । संज्ञा, पु० - वैष्णव का एक संप्रदाय. एक एकातर छंद या वृत्त (पिं०) रोरी, एक सम्पूर्ण जाति का राग (संगी० ) । " भयो तेज हत श्री सब गई' रामा० । श्रीकंठ - संज्ञा, पु० (सं०) शंभु, शिवजी । श्रीकांत - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) विष्णु । श्रीकृष्ण - संज्ञा, पु० (सं०) कृष्णचंद्र | श्रीक्षेत्र - संज्ञा, पु० (सं०) जगन्नाथपुरी | श्रीखंड - संज्ञा, पु० (सं०) सफेद चंदन, हरि चंदन शिखरण, सिकरन । " श्रीखंडमंडित कलेवर वल्लरीणाम् " - लो०रा० । श्रीखंड-शैल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रीखंडाचल, मलय पर्वत, श्रीखंडादि । श्रीगदित - संज्ञा, पु० (सं०) १८ प्रकार के उपरूपकों में से एक भेद (नाट्य ० ) श्रीरासिका ।
श्री गिरि-- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मल्लयाचल |
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