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श्यामा
श्रमित
"श्यामसुन्दर ते दास्यः कुर्वाणि तवोदितम्" श्रद्धास्पद -वि• यौ० (सं०) श्रद्धेय, पूज्य, -भा० द० ।
पूजनीय, श्रादरणीय । श्यामा--- संज्ञा, स्त्री. (सं० राधिका, राधा श्रदेय - वि० सं०) पूज्य, शृद्धास्पद ।
जी एक गोपी मधुर और मृदु स्वर वाला श्रम-संज्ञ', पु० सं०) मेहनत, परिश्रम, एक काला पती, सोलह वर्ष की नी, सुरमा मशक्कत (फ़ा०) क्लाति, थकावट, दुख, केश, चुप. तुलसी, काली गाय, कोयल, यमुना, कष्ट, पसीना, परेशानी, दौड़धूप, प्रयास, रात, स्त्री। वि०-काली, श्याम रंग वाली. स्वेद, व्यायाम, एक संचारी भाव (सा०) साँवली। " यो भजेत्समुधुश्यामाम् "..-- किसी कार्य के करने से संतुष्टि तथा शैशिल्य, लो० रा । "श्यामा वाम सुतर पर देखी" स्त्रल (दे०)। " गुरुहिं उरिन होतेउ श्रम -रामा० ।
थोरे "-रामा० । श्यामाक- संज्ञा, पु. (सं०) सावाँ नामक श्रमकण- संज्ञा, पु. यौ० (सं०)श्रम-सीकर, एक प्रकार का अन्न ।
पसीने की बद । " श्रम-कण सहित श्याम श्याल-संज्ञा, पु. (सं०) स्त्री का भाई तनु पेखे " रामा० । साला, बहनोई, बहिन का पति । संज्ञा, श्रमजल--- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) स्वेद, पु० दे० ( सं० शृगात ) स्थार, सियार। पसीना, धन-सलिल, श्रम-विदु। श्यानक --- संज्ञा, पु० (सं०) साला, बहनोई। श्रमजित--वि० (सं०) अति परिश्रम से भी न श्याला- संज्ञा, पु० सं०) साला, बहनोई। थकने वाला !
" श्यालाः संबंधिनस्तथा"-भ० गी। श्रमजीवी--वि. (सं० श्रमजीविन् ) श्रम श्येन--संज्ञा, पु. ( सं०) बाज़ या शिकरा से पेट पालने वाला, परिश्रम करके जीवनपक्षी, दोहे का चौथा भेद (पि०) निर्वाह करने वाला। श्यनिका संज्ञा, स्त्री. (सं०) मादा बाज़, श्रमण- संचा, पु. ( सं०) बौद्धमत का श्येनी, ११ वर्णों का एक वर्णिक छंद या संन्यासी, मुनि, यति, मज़दूर । वृत्त (पि०)।
श्रमविदु-सज्ञा, पु० यो० (सं०)श्रम-सीकर, श्येनी संज्ञा, स्रो० ( सं०) मादा बाज़, पसीने की बूंद। "श्यामगात श्रम-विन्दु श्येनिका. पक्षियों की माता तथा कश्यप सुहाये"--रामा० । की एक कन्या ( मार्क० पु.)।
श्रमवारि-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) स्वेद, श्योनाक-संज्ञा, पु. (सं०) लोध्र, सोना- पसीना, श्रम-सलिल । पाढ़ी वृक्ष, लोध।
श्रमविभाग-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) किसी श्रद्धा-संज्ञा, स्त्री० (२०) बड़ों के प्रति पूज्य कार्य के भिन्न भिन्न विभागों के लिये अलग भाव, श्रादर, प्रेम, सम्मान, भक्ति, आस्था, ! अलग व्यक्तियों की नियुक्ति । श्राप्त पुरुषों तथा वेदादि के वाक्यों में श्रम-सलिल'--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पसीना। विश्वास, कर्दममुनि की कन्या जो अत्रिमुनि श्रमसीकर--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) पसीने को व्याही यो। " श्रद्धा बिना भक्ति नहि, की बूंद। " श्रम-सीकर साँवरे देह लसैं तेहि बिनु द्रवहिं न राम"-- रामा०। । मनो रात महातम तारक में"-कविः । श्रद्धान् संज्ञा, पु. (सं०) श्रद्धा।
श्रमार्जित-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) परिश्रम से श्रद्धालु-वि० सं०) श्रद्धावान्, श्रद्धायुक्त। प्राप्त, श्रमोपार्जित । श्रद्धावान्-संज्ञा, पु. ( सं० श्रद्धावत् ) श्रमित-वि. (सं०) श्रांत, थका हुआ, श्रम श्रद्धायुक्त, धर्मनिष्ट, श्रद्धालु । | से शिथिल, कृत श्रम।
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