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शील
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शील- संज्ञा, पु० (सं०) व्यवहार, स्वभाव, थाचरण, चाल ढाल, चरित्र, प्रवृत्ति, सद्वृत्ति, सदाचार, स्वभाव, संकोच, मुरौवत, (फ़ा० ), सील (दे० ) । 'लखन कहा मुनि शील तुम्हारा " - रामा० । यौ०-शील संकोच ।
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शीलवान् - वि० सं० शीलवत्) अच्छे स्वभाव या आचरण का, सुशील, शीलवन्त । स्त्री० - शीलवती ।
शीश - संज्ञा, पु० (सं०) शिर, शीर्ष, माथा, मूँड, मुंड, शीशा, सोस, सीसा (दे०) । कर कुठार आगे यह शीशा
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रामा० ।
शीशम - संज्ञा, पु० (फ़ा० ) एक पेड़, सिंसपा शीशमहल - संज्ञा, पु० यौ० ( फ़ा० शीशा + - मद्दल = घर ) वह महल जिसकी दीवालों में शीशे लगे हां, सीस-महल (दे० ) । शीशा संज्ञा, पु० ( फा० ) खारी मिट्टी, रेह या बालू के गलाने से बनी एक पारदर्शी मिश्र धातु, काँच, श्रईना, दर्पण, धारसी, झाड़-फानूस आदि, काँच से बना सामान सीसा (दे० ) !
शीशी
शीशी - संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा० शीशा ) काँच का छोटा पात्र, सीसी (दे०) । मुहा०शीशी सुँघाना - औषधि-भरी सुंघाकर बेहोश करना । शीस - संज्ञा, पु० दे० ( सं० शीश ) शिर, सिर, सीस, सीसा (दे०), मुंड, मूँड़ । "तिय मिसु मीचु शीस पर नाची " - रामा० । शुंग - संज्ञा, पु० (सं०) मगध का एक क्षत्रियराज-वंश (मौय्यों के पीछे ) ।
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- स्फु० 1
शंठि, शंठी- संज्ञा, त्रो० (रु० ) सोंठ | " वचाभया शुंठि शतावरी समः “शुंठी करणा पुष्करजः कषायः' - लो०रा०| शुंड - संज्ञा, पु० (सं०) हाथी की सड़, सुंड (दे०) ।
शुंडा - संज्ञा, स्त्री० (सं० शुंड ) हाथी की सूंड शराब | शुंडादंड - संज्ञा, पु० (सं०) हाथी की सूंड |
शुक्राचार्य
शंडी-संज्ञा, पु० ( सं० शुडिन् ) हाथी, गज, शराब बनाने वाला, कलवार । शुभ संज्ञा, पु० (सं०) एक दैत्य जो दुर्गा जी के हाथ से मारा गया । शुक-संज्ञा, पु० (सं०) तोता, सुगना, सुग्गा, (दे० ) शुकदेव जी, कपड़ा, वस्त्र, सुक (दे० ) । " शुकमुखादमृतद्रव संयुतम् । "शुक्रस्तुतो पिच " - नैष० ।
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शुकदेव - संज्ञा, पु० (सं०) व्यास जी के पुत्र जो बड़े ज्ञानी थे. सुकदेव (दे०) । शुकराना -- संज्ञा, पु० दे० ( अ० शुक्र ) कृतज्ञता, धन्यवाद, शुक्रिया, धन्यवाद रूप में दिया गया धन । शुकाचार्य - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) शुकदेव जी ।
शुक्त संज्ञा, पु० (सं०) सड़ा कर खट्टी की गई काँजी, खटाई, मिरका । वि० - अम्ल, खट्टा, प्रिय, कठोर, नापसन्द, उजाब, सुनसान |
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शुक्ति, शुक्ती – संज्ञा, स्त्री० (सं०) सीपी, सीप, एक नेत्र रोग, बबासीर रोग, उँगलियों के प्रथम पर्व के चिन्ह ( सामु० ) | रजत शुक्ति में भास जिमि " शुक्तिका - संज्ञा, स्त्री० (सं०) सीपी, सीप, एक नेत्र रोग ।
-- रामा० ।
शुक्तिज, शुक्तिवीज- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मोती, शुक्तिजात ।
शुक्र -संज्ञा, पु० (सं० ) शुक्राचार्य, दैत्य-गुरु ( पुरा० ) एक चमकीला ग्रह, सामर्थ्य, श्रग्नि, शक्ति, वीय्य, बल, गुरुवार के बाद और शनि से पूर्व का एक दिन, सूक, सुक्र, सुक्कर (दे० ) । संज्ञा, पु० (अ०) धन्यवाद । शुक्रगुज़ार - वि० यौ० ( अ० शुक्र + गुज़ार फा० ) कृतज्ञ, आभारी, एहसानमंद । शुक्रांग- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) गोरा, गौर शरीर । शुक्राचार्य - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दैश्यों के गुरु एक ऋषि (पुरा० ) ।
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