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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिस्त BIHARSHIMALURanamananeamannamaina शीर्ष विन्दु शिस्त--संज्ञा, स्त्री० (फ़ा०) लक्ष्य, निशाना, शीतला-संज्ञा, स्त्री० [सं०) चेचक, माता, मछली पकड़ने का काँटा । बिस्कोटक रोग, बिस्फोटक की अधिष्ठात्री शीकर-संज्ञा, पु. (सं०) जल-कण, ओस- एक देवी विदु, फुहार कण, सीकर (दे०)। "श्रम- शीतलाई --- संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० शीतलता) शीकर श्यामल देह लसैं '"--क० रामा० । शीतलता, शितलाई, सितलाई (दे०)। शीघ्र-क्रि० वि० (सं० ) सत्वर, तुरंत, शीतलाष्टमी-- संज्ञा, स्त्री० यौ० (०) चैत्रतत्क्षण, जल्दी, जल्द, तत्काल, चटपट, कृष्ण अष्टमी झटपट, बिना बिलंब या देर, बेगि (वज.)। शीतांग --रज्ञा, पु. यौ० (सं०) एक रोग, शीघ्रगामी-वि० सं० शीघ्रगामिन् ) तेज़ पक्षाघात, लकवा, अद्धींग ।। या जल्द चलने वाला, वेगवान । . | शीतांशु-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) हिमांशु, शीघ्रता .... संज्ञा, स्त्री० (सं०) जल्दी, फुरती। चंद्रमा, चाँद, हिमकर, शीतकर : "याति शीत-वि० (सं०) सर्द, ठंढा, शीतल । शीतांशुरस्तम्'- स्फु०। संज्ञा, पु...-- सर्दी, जाड़ा, ठंढ, तुषार, योग, शीतात-वि० यौ० (सं०) शीत-पीड़ित, जाड़े की ऋतु, प्रतिश्याय, सरदी, जुकाम, ठंढ से कंपित, जाड़े से दुखी। संनिपात । | शीतोष्ण---- वि० यौ० (सं०) ठंढा गर्म, सर्दशीतकटिबंध-संज्ञा. पु० यौ० (सं० ) गर्म, सुख-दुख । गात्रास्पर्शास्तु कौंतेय पृथ्वी के गोले में भूमध्य रेखा से २३३ शीतोष्ण सुग्व-दुःखदः "-भ० गी। अंश उत्तर के बाद और इतना ही दक्षिण शीरा--प्रज्ञा, पु० (फा०) चीनी या गुड़ को के बाद के कल्पित विभाग जहाँ सर्दी अधिक पानी में मिलाकर आग पर श्रौटा कर गाढ़ा पड़ती है (भू०)। किया पदार्थ, चाशनी। शीतकर---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चन्द्रमा । शीरी---वि० (फ़ा०) मीठा, मधुर, प्रिय । शीतकाल-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सरदी या यो०-वापाशीरी। जाड़े की ऋतु, अगहन और पूष के महीने ! शीरीनी-ज्ञा, स्त्री० ( फा०) मिठाई, शीताकरमा--संज्ञा, पु. यो० (सं.) चंद्रमा। मिष्टान्न, मिठास । शीतज्वर---संज्ञा, पु. यौ० (सं०) जाड़ा देकर आने वाला ज्वर, जड़ी (दे०) शीर्ण-संज्ञा, पु० (सं०, जीर्ण, पुराना, टूटाशीतदीधित-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चंद्रमा । 'फूटा, फटा पुराना, मुरझाया हुआ, दुर्बल, शीतमयुख- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चन्द्रमा, कृश, पतला। "शीर्णपर्ण-फलाहारः"--- कपूर, शीतांशु, शीतकर। स्फु० । यौ--जीर्ण-शीर्ण । शीतरश्मि-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) चंद्रमा।। शीय - वि० (सं०) नश्वर, भंगुर, नाशवान । शीतल - वि० (सं०) सर्द, रंढा. प्रसन्न, । शोष-संज्ञा. पु० (सं०) सिर, मूंड, मुंड, सीतल (दे०) । " तुमहिं देखि शीतल भई माथा, अग्रभाग, चोटी, सिरा, सामना। छाती"-रामा०। शीर्षक-संज्ञा, पु० (सं०) चोटी, मस्तक, शीतलचीनी-संज्ञा, स्त्री(सं० शीतल लिर, सिरा, किसी विषय का वह परिचायक चीन-देश) कबाब-चीनी, सीतलचीनी(दे०)। संक्षिप्त शब्द या वाक्य जो बहुधा लेखादि शीतलता--संज्ञा, जी. (सं०) ठंढापन, के ऊपर रखा जाता है। सरदी, सीतलता (द०)। शीर्ष-बिन्दुः---संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सिर के शीतलताई*-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० शीतलता) ऊपर की ओर सब से ऊँचा स्थान, शिखरशीतलता, ठंढापन, ठंढक, शितलाई (दे०)। विंदु । विलो ~पदतल-विन्द । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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