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शरत् , शरद
शराबखाना
शरत्, शरद-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सरद पक्षी, विष्णु । मणिगुण, शशिकला छंद (दे०) एक ऋतु जो कार और कार्तिक में (पि०), दोहा का एक भेद. शेर । मानी जाती है, वर्ष, संवतार । “ शरदि शरम, शर्म-संज्ञा, स्त्री० द० ( फा० शर्म ) हंसरवा परुषी कृतस्वर मयूरमयरमणीयताम्" लज्जा ब्रोडा, हया, सरम (दे०)। वि०---माधः ।
शरमीना, शरमदार । महा०-शरम शरत्काल--संज्ञा, ५० यौ० (सं.) शरद् ऋतु। से गड़ना या पानी पानी होना बहुत शरद-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० शरद् ) कार- ही लज्जित होना । गरम के मारे मरनाकार्तिक की ऋतु, सरद (दे०)। "शरद लिहाज, मान मर्यादा, प्रतिष्ठा, संकोच । ताप निशि शशि अपहरई "--रामा० शरम धोकर पी जाना-निर्लज्ज हो शरदऋतु संज्ञा, पु० यौ० (हि. शरद + ऋतु) जाना। कार और कार्तिक की ऋतु । " जानि शरद शरमाना-अ. क्रि० दे० ( फा० शर्म + ऋतु खंजन आये" - रामा०
ग्राना--प्रत्य०) लज्जित या ब्रीड़ित होना, शरदपूणिमा ---- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं.) शर्मिदा होना । म. क्रि० -- लज्जित या कार माप की पूर्णमासी. शरद पूनो, सरद
बीड़ित करना. शर्मिंदा करना, मरमाना पूनो (दे०)।
(दे०)। शरदचंद्र--संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शरच्चंद्र) । शरमिंदगी-संज्ञा, स्त्री० (फ़ा० लाज, शरलचंद्र, शरद ऋतु का चंद्रमा : "शरद- लज्जा, बीड़ा, नदामत, शर्मिदगी। चंद्र निंदक मुख नीके''...-रामा०। शरमिंदा--वि० (फ़ा०) लज्जित, शर्मिन्दा । शरदुत-संज्ञा, पु० (सं०) एक ऋषि : शरमीला-- वि० (फा. शर्म - ईला---प्रत्य०) शारपट्टा----संज्ञा, पु. द. (सं० शर। पट्टा लज्जालु, जिसे शीघ लज्जा लगे. लजीता हि० ) एक शस्त्र विशेष ।
(दे०) । स्त्री०-शरशीली। शरपंच-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सरफों का | शरह- संज्ञा, स्त्री० (१०) भाष्य, व्याख्या, (औष०) बाग के पीछे लगा हुआ पंख । टीका, भाव, दर।। साराक-पंख ।
शराकत --- संज्ञा, स्त्री. (अ.) हिस्सेदारी, शरबा -संज्ञा, पु. (अ०) मीठा पानी, साझा, शरीक होने का भाव । मीठा रस, चीनी में मिला या पका किसी शरापना -स० कि०६० ( स० श्राप ) श्राप
औषधि या फलादि का अर्क, शक्कर या देना, सरापना (दे०) । 'मति माता करि खाँड घुला पानी।
क्रोध शरापै नहिं दानव धिग मतिको" शरवती-संज्ञा, पु. ( अ. शरबत + ई--- -सूर० । प्रत्य० ) हलका पीला रंग, एक नगीना, शराफ़त-संज्ञा, स्त्री. (अ.) सज्जनता, एक नींबू विशेष, एक बढ़िया, वस्त्र । भले मानुपी. भलमंसी, बुजुर्गी, सौजन्य, शरभंग -- संज्ञा, पु० (सं०) एक पि जिनके सभ्यता. शिष्ठता। यहाँ रामचंद्रजी वनवाल की दशा में दर्शनार्थ शराब-संज्ञा, स्त्री. अ.) मधु, मदिरा, गये थे (रामा०).
सुरा, मद्य, सराब (दे०) । "ग़ालिब शास-- संज्ञा, पु. (सं०) हाथी का बच्चा, छुरी शराब पर अब भी कभी कभी"पतिगा, शलभ, टिड्डी, रामदल का एक ग़ालिब । बानर विशेष, एक कल्पित अष्टपाद मृग, एक ! शराबखाना --- संज्ञा, पु. यौ० (अ० शराब+
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