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शंकरी
शंबर प्रांत में सन् ७८८ में जन्में और ३२ वर्ष शंखपुष्पी - संज्ञा, स्त्री. (सं०) शंखाहुली, की अल्पायु में स्वर्ग वापी हुए। शंकरी .. ज्ञा, स्त्री० (सं०) पार्वती जी। | शंखत --- संज्ञा, पु० (सं०) विष्णु । शंका संज्ञा, स्त्री. (सं.) भय, भीति, डर
शंखासुर --- ज्ञा, पु० यौ० (सं.) ब्रह्मा जी की आशंका, खटका, चिंता, सन्देह,
के पास से वेदों को चुराकर समुद्र में जा संशय, अनुचित व्यवहारादि से होने वाली
छिपने वाला एक दैत्य जिसे विष्णु ने मत्स्य
अवतार ले कर मारा था (पुव०)। इष्ट-हानि या अनिष्ठ का भय, साहित्य में
शंखाली- संज्ञा, स्त्री० (सं०) शंखपुष्पी, एक संचारी. भाव, संका (दे०)। " देखि |
सखोली. कौड़ियाला, श्वेत अपराजिता, प्रभाव न कपि मन शंका''---रामा० !
संखाहुली, (दे०)। शंकित वि० (सं.) भयभीत, डरा हुया, शंविनी--संज्ञा, सी. (सं०) शंखाहुली, संदेह युक्त, चिंतित, अनिश्चित : स्त्री० --..
सखौली (दे०) शंखपुष्पी, कौडियाला शंकिता।
( प्रान्ती० ) श्वेत अपराजिता, मुख की शंकु -- संज्ञा, पु० (सं.) कील, मेव, गाँली. नाड़ी, सीप, एक देवी, पद्मिनी श्रादि स्त्रियों खा, ग्वटी, बरछा, भाला, कामदेव, शिव, के ४ भेदों में से एक भेद ( कोक० ), एक वह खटी जिससे सूर्य या दीपक की छाया वन औषधि । " गुड़-च्यपामार्ग विडंग नाप कर समय जाना जाता था ( प्रचीन०) | शंखिनी"- भा० प्र०। शंख, दश लाख कोटि की संख्या (लीला०)। शंखिनी-डंकिनी----संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक शंग्य ---- संज्ञा, पु० (सं०) कंबु बड़ा सामुद्रीय प्रकार का उन्माद रोग ( वैद्य० )। घोंघा ग्रह (विशेषतया ) देवतादि के शंजर:-संहा, पु० दे० ( फ़ा० सिंगरफ़ ) सामने बजाया जाता है, पवित्र माना इगुर। जाता है, दग या सौ खर्व की संख्या, हाथी शंठ-संज्ञा, पु० (सं०) मूर्ख, बेवकूफ़, साँड़, का गडस्थल, शंखासुर दैत्य, ६ निधियों में |
नपुसक, हिजड़ा, संठ (दे०)। से एक निधि, १४ रगों में से एक, छप्पय | शाह-सज्ञा, ७.० (स०) साड़, पढ, नपुसक, का एक भेद, दडक छंदान्तर्गत प्रावत्त का
हिजड़ा, वह पुरुष जिसके संतान उत्पन्न न
हो। एक भेद (पि.)। " शंखान् दध्मौ पृथक
शंडामर्क --- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शंड और पृथक् -भ० गी।
मर्क नामक दो दैत्य, संडामा (दे०)। शंखचूड़ संज्ञा, पु० सं०) कुबेर का मित्र !
शंतनु- संज्ञा, पु० दे० ( सं० शांतनु ) एक या दत एक दैत्य जिसे श्रीकृष्ण ने मारा चंद्रवंशीय राजा. भीष्म पितामह के पिता । था।
शंतनुतुत .. संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० शांतनुसुत) शवद्राव--सज्ञा, पु० स०) शंख को भी । भीष्म पितामह । " तौ लाजौं गंगा-जननी गला देने वाला एक अर्क ( वैद्य०)।
को शंतनुसुत न कहाऊँ-..- राजा रघु० । शंखधर संशा, पु० सं०) विष्णु, श्रीकृष्ण ।। शंपु-- वि० (स.) प्रसन्न , हर्षित, आनंदित । शंखध्वनि....संज्ञा, पु. यौ० (सं०) विजय- शंख-वि० (०) सुकृती, एण्याम, धर्मी । ध्वनि, शंख का शब्द ।
शंबर--संज्ञा, पु० (स.) एक दैत्य जिसे इन्द्र शंखना----संज्ञा, स्त्री० यौ० (स.) ६ वौँ ।
ने मारा था, एक प्राचीन शस्त्र, युद्ध, संग्राम । का सोमराजी छंद (पि.)।
" शंबर कायमाया"-नैष । वि०शंखपाणि-संज्ञा, पु० यौ० (२०) विष्णु। } शांबरीय ।
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