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वैचक्षण्य
वेधमुख्या वेधमुख्या-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कस्तूरी, कपूर।। वेष्टन-संज्ञा, पु. ( सं०) बेठन (दे०), वेधा - संज्ञा, पु. ( सं० वेधस् ) विष्णु, ब्रह्मा, लपेटने या घेरने की क्रिया, पगड़ी, उष्णीष, विधि, सूर्य, शिव । 'तं वेधा विदधे नूनं किसी वस्तु के ऊपर लपेटने का कपड़ा। महाभूत समाधिना"-- रघु० ।।
वि०- वेटनीय, वेष्टित ।। वेधी--संज्ञा, पु. ( सं० वेधिन् ) वेध या छेद वेशित-- वि० सं०) चारों ओर से लपेटा या करने वाला जैसे-शब्दवेधी गगनवेधी घिरा हुआ। स्त्री० वेधिनी ! वि०-वेधनीय, वेधित। बैंकना - स० कि० (दे०) छीलना उधेड़ना, वेपथु, वेपथुः-संज्ञा, पु. (सं०६प, कॅप- काढ़ना, काटना। कॅपी। "वेपथश्च शरीरे में रोम-हर्षश्च -अव्य० सं०) निश्चय-सूचक शब्द । जायते"-गीता।
सर्व० (७०) वे, वह का बहुवचन । “तत्र वै वेपन-संज्ञा, पु. (सं०) कंप. काँपना।
विजयो ध्वम् " वि० वेपित, वेपनीय ।
वैकलिक वि० (सं०) जो इच्छानुसार वेला -- संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) रात दिन का
ग्रहण किया जा सके, जो एक ही पक्ष में २४ वाँ भाग, समय, काल, वक्त, बेरा.
हो, एकांगी, संदिग्ध बेला (दे०), समुद्र का किनारा, सीमा, समुद्र वकल्प-संज्ञा, पु० (सं०) विकलता : की लहर । " वेलानिलः केतकरेणुभिस्ते "
वैकाल-संज्ञा, पु० (दे०) दो पहर के बाद
का समय, अपरान्ह, चौथा पहर।। -रघु०।
कंठ--संज्ञा, पु. (सं०) विष्ण, विष्णु लोक वेश-संज्ञा, पु. (सं०) वेष, वनादि से अपने
(पुरा०) स्वर्ग। वि. चैकंठीय । वैकंठ को सजना या सजाना पहनने का ढंग, भेस
कृष्ण मधु सूदन पुष्कराह ' - शंकरा० । (दे०) गुहा-किसी का वेश धारणा
वैकंवाम- संज्ञा, 'पुयौ० (०) मृत्यु, करना (बनाना)---किसी के रूप रंग और
मरण । वि. कंठवासी- मृत।। पहनावे धादि की नक़ल करन" । पहिनने के
वैकृत -- संज्ञा, पु० (स०) विकार, विगाड़, वस्त्र या कपड़े, पोशाक, खेमा, डेरा, घर,
ख़राबी, वीभत्सरस, वीभत्सरप का पालंबन मकान, तंबू । यौ०-वेश-भूषा--पहनने के
विभाव :-जैसे-तादि । वि०--विकार कपडे श्रादि ।
से उत्पन्न, जो शीघ्र वन न सके, दुःसाध्य, वेशधारी - संज्ञा, पु. (सं० वेशधारिन् )
कष्ट साध्य । वेशधारण करने वाला।
वैकगीय–वि० (सं०) विक्रम संबंधी, वेशवध्र, वेशवनिता - संज्ञा, स्त्री० यौ० |
विक्रम का संवत्) विक्रमीय । (सं०) रंडी, वेश्या, गणिका।
वैकात -- संज्ञा, पु० (६० चुन्नी मणि । वेशर, वेसर-संज्ञा, पु० (दे०) नथ, नथुनी। वैखरी-- संज्ञा, स्त्री० (सं०) वाग्देवी, वाक्वेष, वेषम-संज्ञा, पु० (सं०) घर, मकान, शक्ति, गंभीर, ऊँचा और स्पष्ट स्वर । गृह, वेश, भेख।
वैखानस--संज्ञा, पु. (सं०) वाणप्रस्थ वेश्या-संज्ञा, स्त्री. (सं०) रंडी, पतुरिया,
थाश्रम वाला वनवासी तपस्वी, एक गणिका गाने-नाचने और कसब कमाने वनवासी तपस्वी या ब्रह्मचारी। वाली स्त्री, तवायफ
वैगंध--- संज्ञा, पु० (सं.) गंधक नामक धातु | वेष-संज्ञा, पु० (सं०) वेश, भेम (दे०). रंग- वैवतण्य-संज्ञा, पु० (सं०) चातुर्य, दक्षता, मंच पर, नेपथ्य (नाट्य०) । “स तत्र मंचेषु प्रवीणता, विचक्षणता, चतुरता, कुशलता, मनोज्ञ वेषान"-रघु० ।
पटुता।
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