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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir D HARRORIES रामा०। बृषभानुसुता वेतन वृषभानुसुता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वृहत्-वि० (सं०) महान्, बड़ा, भारी, राधिका, वृषमानुतनया, वृषभानुजा। विशाल । वृषल-संज्ञा, पु० (सं०) शूद, नीच, पतित, वृहद्रथ-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) इन्द्र, सामवेद, पापी, दुष्कर्मी, घोड़ा, राजा चंद्रगुप्त का । यज्ञ-पात्रा एक नाम । वृहनला---संज्ञा, स्त्री. (सं०) अज्ञातवास में वृषला--- संज्ञा, स्त्री० (सं०) रजस्वला, कुलटा, राजा विराट के यहाँ स्त्री वेशधारी अजन दुराचारिणी, नीच जाति की स्त्री, रजस्वला का नाम । हुई कुमारी कन्या ( स्मृति), विपती वृहस्पति-संज्ञा, ० (सं० बृहस्पति) (दे०)। "सदाचार बिनु वृषली स्वामी" देव गुरु वृहस्पति, जीव ६ ग्रहों में से ५ वाँ -रामा० । ग्रह (ज्यो०)। वृषवामी-संज्ञा, पु० (सं०) शिव, शंकर ।। घंकट गरि-संज्ञा, पु० यौ० सं०) दक्षिण __ भारत का एक पहाड़ ! वृषाकपि----मंझा, पु. (सं०) शिव, विष्णु । वेग---संज्ञा, पु० (सं०) तेज़ी बहाव, प्रवाह, वृषाकपायी- संज्ञा, स्त्री. (सं०) पार्वती, देह से मल मूत्रादि निकलने की प्रवृत्ति, लक्ष्मी । शीघ्रता प्रसन्नता, श्रानंद, जल्दी, वेगि वृषादित्य, विषादित (दे०)—संज्ञा, पु. (व.)। " वेग करहु वन-गवन-माजा''--- (सं० विषादित्य ) वृष राशि के सूर्य । “जेठ विषादित की तृषा, मरे मतीरन खोज"-वि० । वेगवान् ---वि० (सं० शीघ्रगामी, तेज चलने वृषासुर--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक दैत्य, | या बहने वाला, वेगवन्त । स्त्री०-वेगवती। भस्मासुर। वेगि---क्रि० वि० (ब) शीध्र, जल्दी, बेगि। वृषोत्सर्ग-संज्ञा, पु० (सं०) मृत पितादि के वेगि करह किन आखिन पोटा"--- नाम पर चक्रादि दाग कर साँड छोड़ने की | रामा० । एक धार्मिक रीति या विधि (पुरा०) वेगी- संज्ञा, पु. ( सं० वेगिन् ) अधिक वेग वृष्टि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) वर्षा, बरसा (दे०) वाला, वेगवान् । वारिश, मेह, ऊपर से किसी वस्तु का कुछ वेण -- संज्ञा, पु. (सं० राजा प्रथु के पिता । देर तक बराबर गिरना, किसी क्रिया का “लोक-वेद ते विमुख भा, नीच को वेण कुछ काल तक लगातार होना । "महा वृष्टि । समान "--रामा० एक वर्ण-संकर प्रचीन चलि फूटि कियारी"---रामा० । जाति । वृष्टिमान, वृधिमापक-संज्ञा, पु. यौ० | वेणि, वेणी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) स्त्रियों की (सं०) वर्षा के पानी नापने का यंत्र। गूंधी हुई चोटी, बेगी, वेनी (दे०)। वृष्णि-संज्ञा, पु० (सं०) बादल, मेघ, “कृश तनु, शीस जटा इक वेणी"-रामा० ! यदुवंश, श्रीकृष्णजी, अग्नि, वायु, इन्द्र। वेणु-संज्ञा, पु. (सं०) बाँस, बाँस की वृष्य-संज्ञा, पु. (स०) वीर्य, बल और हर्ष, मुरली, वंशी । “वेणु हरित मणिमय सब उत्पादक वस्तु या पदार्थ ।। कीन्हे"-- रामा०। वृहती-संज्ञा, स्त्री० (सं०) बैंगन, बड़ी वेणुका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) बाँसुरी। भटकटैया, बनभाँटा, कंटकारी, बड़ी कटाई, वेत-संज्ञा, पु० दे० ( सं० वेत्र ) बेंत । भ, म, स (गण) का एक वर्णिक छंद वेतन संज्ञा, पु० (सं०) किसी काम के बदले (पिं०) । " देवदारु, घना, विश्वा बृहती है। दिया गया धन, तनख़्वाह, महीना, दरमहा, पाचनम्"-लो। मासिक उजरत, पारिश्रमिक, वेतन (दे०)। For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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