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वृत्त्यनुप्रास
वृषभानु साधन या कार्य, रोजी, जीविका, उद्यम, . वृद्धश्रवा --संज्ञा, पु० (सं० वृद्धश्रवस् ) इन्द्र। उजीफ़ा, दीन या छात्रादि को सहायतार्थ | "स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा"-य. वे । दिया गया धन, सूत्रों का अर्थ स्पष्ट करने वृद्धा--संज्ञा, स्रो० (सं०) प्रायः ६० वर्ष से या खोलने वाली व्याख्या या विवेचना ऊपर की 'अवस्था, बुड्ढी स्त्री, बुदिया। ( विवरण ), नाटकों में विषय-विचार से वृद्धि -- संज्ञा, खी० (सं०) उन्नति, बढ़ती, ४ प्रकार की वर्णन की रीति या शैली अधिकता, अधिक होने या बढ़ने का भाव नाट्य०), चित्त की दशा जो पाँच प्रकार श्री या क्रिया, सूद, व्याज सूदक, संतान-जन्म मानी गयी है--क्षिप्त, विक्षिप्त, निरुद्ध, मूढ़, पर घर का अशौच, अभ्युदय, समृद्धि, अष्ट एकाग्र (योग०), कार्य, व्यापार, एक संहारक | वर्ग की एक लता एक अलभ्य श्रौषधि । शस्त्र या अस्त्र, प्रकृति, स्वभाव ।
वृश्चिक-- संज्ञा, पु. (सं०) बिच्छू नामक वृत्त्यनुप्रास---संज्ञा, पु. यौ० (सं०) एक | एक विपैला कीड़ा जो डंक मारता है, शब्दालंकार जिसमें 'प्रादि या अंत के एक बीछु , बीछी (ग्रा०)। बिच्छू या वृश्चिया कई वर्ण वृत्ति के अनुकुल एक या भिन्न काली लता, मेपादि १२ राशियों में से रूप से बार बार पाते हैं, यह अनुप्रास का (विच्छू के से श्राकार वाले तारों की स्थिति
वाली) ८ वीं राशि (ज्यो०)। वृत्र- संज्ञा, पु० (सं०) अँधेरा, बादल, मेघ, वृश्चिकाली-संज्ञा, स्रो० (सं०) बिच्छू बैरी, शक्र, वृत्त, इन्य से मारा गया त्वष्टा का नामक लता जिसके काँटे या रोएँ देह में पुत्र, एक असुर इसीलिसे राजा दधीचि (ऋषि)
लगकर जलन उत्पन्न करते हैं। की इडियों का वज्र बना था पुरा०)।
वृष-- संज्ञा, पु० (सं०) बैल, साँड़, ४ प्रकार वृत्रसूदन--संज्ञा, पु. (सं०) इन्द्र जिसने
के पुरुषों में से एक काम०). श्रीकृष्ण, १२ वृत्तासुर को मारा था।
राशियों में से २ री राशि (ज्यो०)। यो०वृत्रहा, वृत्तहा-संज्ञा, पु० (सं०) इन्द्र ।
अपस्कंध । "व्यूटोरस्कः वृषस्कंधः"-रघु० । वृत्तारि, वृत्रारि -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०)
| वृषकेतन, अपकेनु-संज्ञा, पु. यो० (सं०)
महादेव, शिव, शंकरजी। इन्द्र, वृत्तहंता।
वृषण ---संझा, पु० (सं०) विष्णु, इन्द्र, कर्ण, वृत्रासुर वृत्तासुर . - संज्ञा, पु० यौ० (सं०)
बैल, साँड़, घोड़ा, पोता, अंडकोष । स्वष्टा का पुत्र एक विख्यात दैत्य जिसे इन्द
वृषध्वज-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) महादेव, ने मारा था (पुरा०)।
शिव, एक पहाड़ (पुरा०), गणेशजी । वृथा-वि० (सं०) व्यर्थ, निष्प्रयोजन, फ़जूल,
"भृगी कि वृषध्वज टेरे"-रामा० ! बेमतलब, नाहक । संज्ञा, पु०--वृथात्व ।।
| वृषभ - संज्ञा, पु० (सं०) साँड़, बैल, श्रेष्ठ, वृद्ध ... संज्ञा, पु० (सं०) प्रायः ६० वर्ष से
पुरुष । यौ०-वृषभकंध, वृषभस्कंध । उपर की अंतिम अवस्था का बूढ़ा, बुड्ढा,
"वृषभकं उर बाहु विशाला'---रामा० । जरा, बुढाई, बुढ़ापा । विद्वान, अनुभवी ।
४ प्रकार के पुरुषों में से एक ( काम०), वृद्धता--संज्ञा, स्त्री० (सं०) बुढ़ापा, बुढ़ाई,
वैदर्भी रीति का एक भेद (सा०)। वृद्धत्व, बूढ़े का भाव या धर्म, पांडित्यानु
वृषभधुज*-संज्ञा, पु. दे॰ यौ० (सं० भव।
वृषभध्वज ) महादेवजी। वृद्धत्व-संज्ञा, पु. (२०) जरावस्था, बुढ़ापा, वृषभध्वज--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शिवजी । बुढ़ाई, वृद्धता । “ तस्य धर्म रतेरासीत् वृषभानु-पंज्ञा, पु० (सं०) नारायणांशजात, वृद्धत्वं जरसा विना"-रघु०।
राधाजी के पिता।
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