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वृत्ति
वीरमाता वीरमाता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० वीरमातृ) वृंदावन--संज्ञा, पु० (सं०) श्रीकृष्णजी का वीरप्रसू, वीर-जननी, वीरों की माँ। क्रीडा स्थल जो हिन्दुओं का तीर्थ-स्थान वीररस-संज्ञा, पु० (सं०) रत्माह स्थायी है (मथुरा-प्रान्त) विंदावन (दे०) । “यत्र
भाव का एक विशेष रस (काव्य)। वृदावनं नास्ति यत्र न यमुना नदी" - वीरललित-संज्ञा, पु० यौ० (०) वीरों का गर्ग संहिता। सा किन्तु मृदु स्वभाव वाला।
वृक-संज्ञा, पु. (सं०) भेड़िया, सियार, वीरशय्या-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) संग्राम- गीदड़, शृगाल, क्षत्रिय, कौश्रा।। भूमि, रणस्थली।
वृकोदर · संज्ञा, पु. गौ० (सं०) भीमसेन । वीरशैव-संज्ञा, पु० (सं०) शैवों का भेद । "भीम का वृकोदरः "--भ० गी० । वीरा- संज्ञा, स्त्री० (सं०) मदिरा, शराब, । वृत्त -संज्ञा, पु. (सं.) विटप, पेड़, दुम, पति और पुत्र वाली स्त्री।
पादप, रूग्व, किसी वस्तु ( व्यक्ति के वंश ) वीराचारी-संज्ञा, पु० यौ० (सं० वीराचारिन। के उद्गम तथा शाखादि-सूचक वृक्ष --जैसा वामग्गियों का एक भेद जो देवताओं की चित्र या शाकृति। जैसे-वंश-वृत्त। पूजा वीर-भाव से करते हैं।
वृक्षायुर्वेद --संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पेड़ों के वीरान -- वि० (फ़ा०) श्री-हत, उजड़ा हुधा. रोगों की चिकित्सा का शास्त्र । उजाड़, वह स्थान जहाँ श्राबादी न रह वृत - संज्ञा, पु० दे० (सं० बज । व्रज । गई हो, निर्जन।
वृजिन-संज्ञा, पु. (सं.) पाप, कष्ट, दुख, वीरासन-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) बैठने का तकलीफ, खाल, चमड़ा। एक ढंग या श्रासन अर्थात् मुद्रा । " जागन वृत्त --- संज्ञा, पु० (सं०) चरित, चरित्र, समाचार, लगे लखन वीरासन"--- रामा० !
याचार, वृत्तांत. चाल-चलन, हाल, वृत्ति, वीर्य-संज्ञा, पु. (सं०) प्राणियों के शरीर समाचार जीविका-साधन, रोजगार. वर्णिक में बल और कांति उत्पन्न करने वाली छंद, मंडल, गोलाकार क्षेत्र जो एक सीमा सात धातुओं में से एक प्रमुख पातु, रेत, से जिसे परिधि कहते घिरा हो तथा शुक्र, बीज (दे०) पराक्रम, शक्ति, बल, जिसके केंद्र से परिधि की दूरी सर्वत्र बीया (दे०)।
समान हो ( रेखा), दंडिका, गंडका, २० वुराना-अ० कि. (दे०) उराना, समाप्त वर्णो का एक सम छंद, नियत वर्ण संख्या होना।
तथा लघु-गुरु के क्रम के निश्चित नियम वृंत-संज्ञा, पु० (सं०) बोंड़ी, ढेंडी, नरुत्रा, | से नियंत्रित पदों वाला छंद (पि.)। स्तनाग्रभाग।
वृत्तखंड-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वृत्त या वृताक-संज्ञा, पु. (सं०) बैगन भाँटा। गोल क्षेत्र का कोई भाग, वृत्तांश ।
"वृताकं कामलं पथ्यं'' - भा० प्र०। वृत्तगंधि-संज्ञा, स्त्री. (स०) गद्य का एक वृंद--संज्ञा, पु० (सं०) समुदाय, झंह, समूह. भेद (सा०)। एक प्रसिद्ध हिन्दी-कवि । ' और भाँति वृत्तांत--संज्ञा, पु० (सं०) वर्णन, समाचार, पल्लव लगे हैं बंद बूंद तरु --द्विजः। हाल. घटनादि का विवरण । “सुनि वृत्तांत वृंदा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) तुलसी, राधिका मगन सब लोगू"--रामा। का उपनाम ।
| वृत्ता -- संज्ञा, पु. यो० (सं०) वृत्त या वृंदारक-संज्ञा, पु. (सं०) एक प्रकार के गोलाकार क्षेत्र का ठीक साधा भाग। देवता । " जय वृंदारक-वृंद-वंद्य "--- रत्न। वृत्ति-सज्ञा, स्त्री० (सं०) जीविका निर्वाह का
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