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प्ररूरना
अर्कट अरूरना-अ० क्रि० (दे० ) व्यथित होना, वि० (सं० ) जो न रुचै, अरुचिकर । दुखी होना।
| अरोड़ा-वि० संज्ञा अ. (दे०) पंजाबी अरूलना--अ० कि० दे० ( सं० अरुस- खत्रियों की जाति विशेष । तत् = घाव) दिना, चुभना, पीड़ित होना, रोदन-वि० ( सं० ) रोदन-रहित, घाव होना, छिल जाना।
रोदनाभाव । अरूला-संज्ञा, पु० (दे० ) अडूसा, रुप, वि० अरोदित-न रोया हुआ। बासा।
अरे।पन--संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रारोपण ) वि० (दे० अ+ रूसा ) अरुष्ट।
ऊपर रखना। (सं० ) स्त्रो० अरुसी।
अरोपित-वि० ० (सं० भारोपित) श्ररे-अव्य. (सं० ) संबोधन-शब्द, ए, पारोपण की हुई, जिस पर या जिसका श्रो, रे, थारचर्य-सूचक श्रव्यय, सकोप पारोपण किया गया हो । तिरस्कृत श्राह्वान शब्द।
राम-वि० (सं० ) रोम या बाल रहित, अरेचक-वि० ( सं० ) जो रेचक या निलीम। दस्तावर न हो।
अरोष-वि० (सं० ) रोष-रहित । अरेणु- वि० (सं० ) रेणु या धूलि से अरास-वि० दे० (सं० अरोष ) रोप रहित, गर्द के बिना।
या क्रोध-रहित, यौ० अरास-परोसअरेफ-वि० ( सं० ) २फ या रकार-रहित । अड़ोस पड़ोस ।। अरेव - संज्ञा, पु० (दे० ) पाप, अपराध, अरोहन *-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रारोहण ) दोष, ऐब (दे०)।
चढ़ना। अरेरना*---अ० कि० ( अनु० ) रगड़ना, अंगहना ----अ० कि० दे० (सं० प्रारोहण ) मलना।
चढ़ना। अरेरा-संज्ञा, पु० (हि. अरेरना ) दरेरा, ' अरोही-संज्ञा, पु० दे० (सं० प्रारोही) दबाव, रगड़।
सवार। अरोक-वि० दे० ( हि० अ+रोकना ) जो अर्क-संज्ञा, पु० (सं० ) सूर्य, इन्द्र, ताम्र, रुक न सके, जो रोका न जा सके। ताँबा, स्फटिक, पंडित, ज्येष्ठ भ्राता, रविवार, "रोंकि झरि रंचक अरोक बर बाननि श्रावृक्ष, मंदार, विष्णु, बारह की सख्या । की"-" रत्नाकर"
" अर्क-जवाम पात बिन भयऊ - क्रि० वि०-बिना रोक टोक के।
रामा० । प्ररोग-वि० (सं०) रोग-रहित, निरोग, संज्ञा, पु. (अ.) उतारा या निचोड़ा हुआ भला, चंगा, पाराग्य ।
रस, अरक, (दे०) पाउव, अरिष्ट । (सं० ) वि० अरोगी--निरोगी। अकज-संज्ञा, पु० (सं०) सूर्य-पुत्र, यम, अरोगना-अ. क्रि० दे० ( मेवाड़ी) शनि, अश्विनीकुमार, सुत्रीव, कर्ण, सावर्णि खाना, भोजन करना।
मनु । अरोत्र -संज्ञा पु० (दे० ) अरुचि, अजा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) सूर्य-वन्या, अनिच्छा, अरुचिर।
यमुना, तापती, रवितनया, तरनि तनूजा, अरोचक- संज्ञा, पु० (सं० ) अरुचि का रविनंदिनी। रोग, जिसमें भोजनादि नहीं रुचता, अर्कर-संज्ञा, स्त्री. (सं०) सतर्कता, अनिच्छा।
सावधानी।
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