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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्कतनय १५२ अर्य अकरनय-संज्ञा, पु० यो० (सं० ) सूर्य के लिये जल देना, मूल्य, भाव, भेंट, पुत्र, यमादि । सम्मान के लिये जल से सींचना, घोड़ा, स्त्री० अकतनया, यमुनादि। मधु, शहद। अर्कनाना-संज्ञा, पु. (अ.) सिरके के (दे० ) अरघौती या रधोती-भावसाथ भबके से उतारा हुआ पुदीने का अर्क। दर, बाज़ार-भाव, बाज़ार-दर । अर्कमण्डल-संज्ञा, पु. यो. ( सं०) सूर्य अघेपात्र-संज्ञा, पु. ( सं०) शंख के आकार मण्डल, रवि-मंडल, सूर्य का घेरा। __का ताँबे का एक पात्र जिससे सूर्यादि देवों अकवत-संज्ञा, पु. ( सं० यो०) प्रजा की को अर्घ दिया जाता है, अर्धा । । वृद्धि के लिये प्रजा से राजा का कर लेना, अर्घा--संज्ञा. पु० दे० ( सं० अर्घ) अर्घ-पात्र, आरोग्य सप्तमी का व्रत। जलहर।। अर्काचिषि-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) सूर्य अय---वि० (सं० ) पूजनीय, बहुमूल्य, किरण, सूर्य-प्रभा। पूजा में देने के योग्य, (जल, फल, फूल, अर्कोग्ल-संज्ञा, पु. (सं० ) सूर्यकान्त मूल ) भंट या उपहार देने के योग्य, मणि, लाल, पद्मराग, आतिशी शीशा। अकोभा--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) सूर्य दर्शनी, नज़राना। प्रभा, रवि प्रकाश, अर्क द्युति, सूर्य-प्रतिभा । अर्चक-वि० ( सं०) पूजा करने वाला. अर्गजा---सज्ञा, पु० (दे०) अरगजा। पुजारी, पूज। अर्गनी--संज्ञा, स्त्री० ( दे० ) अरगनी। अचन ( अचना)-संज्ञा, पु. (स्त्री० ) अगल--संज्ञा, पु. (सं० ) किवाड़ बंद (सं० ) पूजा, पूजन, आदर, सत्कार, करने पर लागाई जाने वाली बाड़ी लकड़ी, __ सम्मान, अाराधना, सेवा-सुश्रूषा । अरगल, अगरी, ब्योंडा, किवाड़, अवरोध, अर्चनीय–वि० (सं०) पूजनीय, पूजा कल्लोल, सूर्योदय या सूर्यास्त पर पूर्व या __ करने योग्य, आदरणीय, श्रद्धास्पद । पश्चिम के श्राकाश पर दिखाई देने वाले अचमान----वि० (सं०) अर्चनीय, पूजनीय, रंग-विरंगे बादल, अंबर-डंबर, मांस, हुड़का । (दे० ) खोल, पागल ( दे०)। अर्चा-संज्ञा, स्त्री० ( सं० ) पूजा, प्रतिमा, अर्गला-संज्ञा, स्रो० (सं० ) अरगल, देव-मूति ।। अगरी, बेवड़ा, बिल्ली, सिटकिनी, किल्ली, अर्चित---वि० (सं०) पूजित, प्रादृत, हाथी के बाँधने की जञ्जीर, दुर्गासप्तसती के पूर्व पाठ किया जाने वाला एक स्तोत्र, अचिमान----वि० (सं० ) प्रकाशमान । मत्स्य-सूक्त, अवरोध, बाधक। संज्ञा, पु. (सं० ) सूर्य, अग्नि, चन्द्र। अर्गली-संज्ञा, स्त्री. ( दे० ) मिस्र, अचिराजमार्ग-संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) स्यामादि देशों में पाई जाने वालो एक देवयान, उत्तर मार्ग, मुक्त जीवों के भगवान भेड़ की जाति। के समीप जाने का मार्ग। अर्घ-संज्ञा, पु० (सं० ) षोडशोपचार में अर्चिष्मान-संज्ञा, पु. ( सं० ) अग्नि. से एक, जल, दूध, कुशाग्र. दही, सरसों, सूर्य ।। तंदुल, और जौ को मिला कर देवता को वि० दीप्तिमान, प्रकाशमान । अर्पित करना, अर्घ देने का पदार्थ, अच्य–वि. ( सं० ) पूजनीय, पूज्य, अलदान, सामने जल गिराना, हाथ धोने सेवनीय । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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