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विष्टंभन
विषमता तिजारी, चौथिया श्रादि। "कै प्रभात कै विपांगना--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) विष. दुपहर श्रावै के संध्या, अधिरात । बायकंप कन्या । ज्वर स्वैद बियापै यही विषम ज्वर तात" - विपाक्त वि० (सं०) विष-युक्त, विष. स्फु० । 'अमृताब्द शिवं मधुमद्विषमे विषमे मिश्रित, विषपूर्ण, जहरीला, विषैला ।। विषमषु विलास-रते"-लो। | विषाण-- संज्ञा, पु० (सं०) पशु का सींग, विषमता-संज्ञा, स्त्री. ( सं० ) असमता, शूकर का दाँत । " मख, विषाण अरु शस्त्रविरोध. बैर, शत्रुता, वैमनस्य । " राम- युत, तासों जनि पतियाय-नीतिः ।
प्रताप विषमता खोई'. रामा०। विषाद-संज्ञा, पु० (सं०) निश्चेष्ट या जड़ विषमवाण-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) कामदेव, । होने वा भाव, दुख, ज, खेद. शोक । विषमायुध ।
वि० ---विषादी । “नहिं विपाद कर अवसर विषमवृत्त संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह छंद
श्राजू" रामा० । जिसके चरण समान (सम) न हों (पिं०)।
विपुव-संज्ञा, पु. ( सं०) सूर्य के ठीक (विलो०-सम)।
भूमध्य रेखा के सामने पहुँचने का समय विषमशर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कामदेव ।
जब सारे संसार में दिन-रात बराबर होते
हैं । २१ मार्च और २३ सितम्बर को ऐसा विषमायुध- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कामदेव।
होता है (भू०)। विषय-संज्ञा, पु. (सं०) जिस पर कुछ
विषुवतरेखा संक्षा, स्त्री० यौ० (सं०) एक विचार किया जावे, प्रबंध, निबंध, मैथुन,
कल्पित रेखा जो दोनों ध्रयों से बराबर दूरी स्त्री-प्रसंग, कर्मेंद्रियों के कार्य, धन, संपत्ति,
पर पृथ्वी के मध्य में चारों ओर पूर्व-पश्चिम बड़ा राज्य या प्रदेश, भोग विलास, वासना।
खिंची हुई मानी जाती है, विषुववृत "अथ स विषय व्यावृत्तारमा यथाविधि
भूमध्य रेखा (ज्यो०, भू०)। सूनवे"- रघु.।
विचिका-संज्ञा, स्त्री० द० (सं० विसूचिका) विषयक- वि० (सं०) विषय का, संबंधी।।
विसूचिका (रोग)। विषय-वासना--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०).
| विकंभ- संज्ञा, पु० (सं०) एक योग (ज्यो०), भोग-विलास, काम की इच्छा या कामना । |
विस्तार, विघ्न, बाधा, नाटक के ग्रंक का "विषय-वासना ना दिन छूटी- स्फु० ।
एक भेद, जिसमें गत और प्रागत घटना विषयी-संज्ञा, पु. (सं० विषयिन् ) जो
( कथा ) की सूचना मध्यम पात्रों की द्वारा सदा भोग-विलास में लगा रहे, कामी.
दी जाती है नाय० । विलासी, धनी, अमीर, कामदेव । " विषयो । विष्कमक-संज्ञा, पु. (सं० विष्कंभ) विष्कम, को हरि-कथा न भावा" - स्फु०।
विस्तार, विघ्न, बाधा, नाटक के अंक का विषविद्या-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) मंत्रादि
___ एक भेद। से विष उतारने की विद्या का ज्ञान ।
विष्कीर--संज्ञा, पु० (सं०) चिड़िया, पक्षी, विष-विज्ञान-संज्ञा, पु. यौ० (सं०, विषोप
खग, विहंग। विष सम्बन्धी शास्त्र, विष-विद्या। विष्टंभ-संज्ञा, पु. (सं०) विघ्न, बाधा रुका. विषवैद्य-संज्ञा, पु. यौ० (सं० तंत्र-मंत्रादि वट, अनाह, आध्मान, पेट फूलने का एक
से विष उतारने वाला, बिषवैद (दे०)। रोग (वैद्य० । विषहरमंत्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह मंत्र विटंभन - संज्ञा, 'पु० (सं०) रोकने या सिको. जिसके द्वारा विष उतारा जावे। __ ड़ने की क्रिया । वि०-विटंभित ।
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