________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
विटप
विटप - संज्ञा, पु० (सं०) लोक | विटर - संज्ञा, पु० (सं० ) बिछौना, बिस्तर । विश- संज्ञा, स्त्री० (सं०) मल, मैला,
१६०७
पाखाना
विष्टि - संज्ञा, स्त्री० (सं०) भद्रा, अशुभ समय, बेगार |
विष्णु - संज्ञा, पु० (सं०) परमात्मा के तीन रूपों में से दूसरा, त्रिदेव में से एक जो विश्व का भरा-पोषण करते हैं, ब्रह्मा का एक विशेष रूप, १२ श्रादित्यों में से एक । विष्णुकांता - संज्ञा, खो० (सं०) नीली
अपराजिता, नीली कोयल- लता । विष्णुगुप्त संज्ञा, पु० (सं०) एक वैयाकरणी ऋषि, कौटिल्य, प्रख्यात राजनीतिज्ञ चाणक्य का वास्तविक नाम । विष्णुपद - संज्ञा, पु० (सं०) श्राकाश | विष्णुपदी-संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) गंगाजी ! विष्णुलोक - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बैकुंठ, स्वर्ग । 4. विष्णुलोकं स गच्छति " - स्फु विष्वक्सेन - संज्ञा, ५० (सं०) विष्णु, शिव,
एक मनु ।
विस - सर्व ० (दे० ) वह उस | संज्ञा, पु० (दे०) विष ।
विसदृश - वि० (संc) प्रतिकूल, विपरीत, विरुद्ध. उलटा, अद्भुत, विलक्षण अनोखा । विसर्ग - संज्ञा, पु० (सं०) त्याग, दान, देना, ऊपर-नीचे दो विन्दु जो अक्षर के श्रागे लगते हैं और प्रायः श्राधे ह के समान बोले जाते हैं । "द्विविन्दुर्विसर्ग: " --- ( व्या०स० ) । मृत्यु, मोक्ष, मुक्ति, प्रलय, वियोग, विरह । विसर्जन संज्ञा, पु० (सं०) छोड़ना, परित्याग, चला जाना, विदा होना, पोडशोपचार पूजन में अंतिम उपचार, श्रावाहन किये देवता को फिर निज स्थान जाने की प्रार्थना समाप्ति । कथा विसर्जन होति है सुनौ वीर हनुमान विसर्जनीय, विसर्जित । विसर्जनीय संज्ञा, १० (सं०) स्यागने योग्य,
6:
करना,
33
-
- स्फु० 1 वि० -
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
देने योग्य, - कौ० व्या० ।
1
विसर्जित -- वि० (सं०) कृतसमाप्ति, परित्यक्त । विसर्प - संज्ञा, पु० (सं०) फुंसियों का रोग जिसमें ज्वर भी होता है विसपी वे० (सं० विसर्पिन् ) फैलने वाला | विसारना- - स० क्रि० दे० (सं० विस्मरण ) भूल जाना, बिसराना । विसासिन -- संज्ञा, स्त्री० (दे०) सौत, सपत्नी, दुष्टा । पु० - विसासी विश्वासघाती, दुष्ट "कबहूँवा विसासी सुजान के श्राँगन” —घना० । उन हाय विसासिन कीन्ही
६६
विसर्ग 1
विस्तृत
" विसर्जनीयस्य सः "
For Private and Personal Use Only
,"
दगा - रत्ना० ।
विसाल--- संज्ञा, पु० (श्र०) मिलाप संयोग, मृ, मौत । "हु विसाल जो हासिल तो फिर फ़िराक़ नहीं " -स्फु० । संज्ञा, पु० दे० ( [सं० विशाल ) बड़ा, विस्तृत | विसूचिका - संज्ञा स्त्री० (सं०) दस्तों का एक रोग, हैजा । "सपदि निंबुरसेन विसूचिकाम् ' - लो० ।
विसूची - पंज्ञा, स्रो० (सं०) एक रोग, हैजा । विसूरा -- संज्ञा, पु० (सं०) चिंता, शोक | वि०-- विरणीय, विसूरित । विसुरना स० क्रि० दे० (सं० त्रिसूरण) शोक करना, रोना, दुविधा में पड़ना, सरवेद स्मरण करना, बिसूरना । सूरति बैठी बिसूरत राधा " - रसाल । विस्तर - वि० दे० (सं० विष्टर ) बिछौना,
66
विस्तारयुक्त, विस्तृत |
विस्तार - संज्ञा, पु० (सं०) फैलाव, विशालता, प्रसाद, प्रस्तार । विस्तारित - वि० (सं०) फैला या बढ़ाया हुथा, विस्तृत ।
विस्तीर्ण - वि० (सं०) विशाल विस्तृत, बहुत बड़ा, लंबा-चौड़ा, श्रति अधिक । विस्तृत - वि० (सं० ) विस्तार युक्त, बहुत लंबा-चौड़ा, विशाल, यथेष्ट विवरण वाला, बहुत फैला हुआ । (सं० विस्तार, विस्तृति ।)