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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्वव्यापी १६०५ विषमज्वर विद्यालय जहाँ सब प्रकार की विद्याओं की विश्वेश, विश्वेश्वर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) उच्च शिक्षा दी जावे, यूनीवर्सिटी (अं०)। परमेश्वर, शिव. विश्वनाथ । विश्वव्यापी-संज्ञा, पु. यौ० (सं० विश्व विष --- सज्ञा, पु० (सं०) गरल, जहर, जो व्यापिन् ) परमात्मा, भगवान । वि०-- किसी की सुख या शांति में बाधा करे। विभु, जो सारे संपार में फैला या व्याप्त हो " विष-रस मरा कनक-घट जैसे'---रामा० । विश्वश्रवा-- संज्ञा, पु. ( मं० विश्वश्रवस् । मुहा- ---विप की गाँठ-बड़ा उपद्रवी कुबेर और रावण के पिता एक मुनि । या अपकारी, दुष्ट ! विष का घुट-बड़ी विश्वसनीय-वि०(सं.) विश्वास याप्रतीति बुरी या कड़ो बात ! वच्छनाग, संखिया, विष दो प्रकार के हैं: - स्थावर-जैसेकरने योग्य, जिसका एतबार हो सके। विश्वसित-वि० (सं०) विश्वस्त, जिसका | | संखिया, श्रादि. जंगम-जैसे-सर्पादि का विष । विश्वास किया गया हो। विश्वस्त - वि० (सं० विश्वसनीय, प्रतीति | विषकन्या --संज्ञा, स्त्री. यौ० (सं०) वह या एतबार के योग्य, विश्वामी (दे०)।। ली जिसके शरीर में इस लिये विष प्रविष्ट किया जाता है कि उससे प्रसंग करने वाला विश्वात्मा-संज्ञा, पु० चौ० (सं० विश्वात्मन) म मर जाये, विषकन्यका (चाणक्य)। परमात्मा, विष्णु, ब्रह्मा, शिवब्रह्म । ब्रह्मा, शिवब्रह्म । विपगण-वि० (सं०) दुखी, उदास, विषाद- . "विश्वात्मा विश्वसंभवः "..-य. वे० पूर्ण । यौ० विषण्णवदन-उदास मुख । विश्वाधार संज्ञा, पु० यौ० (सं०) परमेश्वर वर ! विपदंड --- संज्ञः, पु० यौ० (सं०) कमल-नाल : " विश्वधार जगत पति रामा "-रामा० । विषधर--संज्ञा, पु० (सं०) शिव जी, साँप । विश्वामित्र--संज्ञा, पु. (सं०) गाधेय या विषमंत्र-ज्ञा, पु० यौ० (सं०) सादि के गाधितनय, राम चंद्र जी के धनुविद्यागुरु विष को दूर करने का मंत्र, विष तथा ऐसे कौशिकमुनि ये बड़े क्रोधी और शाप देने ___ मंत्रों का ज्ञाता, वैद्य, सँपेरा ।। वाले कहे गये हैं । " विश्वामित्र महामुनि विषम---वि० (सं०) जो तुल्य, सम, समान ज्ञानी" रामा० । या बराबर न हो, अतुल्य, असम, वह विश्वास - पंज्ञा, पु० (सं०) भरोसा, प्रतीति, संख्या जो दो ये पूरी बँट न सके और एक यकीन, एतबार, विस्वास (दे०) । "कौनिउ शेष बचे. ताक (फा०), अति कठिन, सिद्धि कि बिनु विश्वासा"--रामा० । तीव या तेज़, संकट, विकट, भयंकर, भीषण विश्वासघात- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) छल विषमज्वर, धापत्ति-काल । संज्ञा, पु०-वह करना, धोखा देना, विश्वास करने वाले छंद जिपके चरण में समान मात्रायें या के साथ विश्वास के विपरीत कार्य करना । वर्ण न हों वरन् न्यूनाधिक हों। (विलो० -- वि. विश्वासघातक, विश्वासघाती। सम) एक अर्थालंकार जिसमें दो विरोधी विश्वासपात्र-- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विश्वस्त पदार्थों का संबंध या यथायोग्यता का अभाव विश्वसनीय । कहा गया हो। "जरत सकल सुर-वृन्द, विश्वासी-- संज्ञा, पु. ( सं० विश्वासिन् ) विषम गरल जेहिं पान किय"-रामा० ! विश्वास करने वाला, विश्वासनीय। विषमज्वर --संज्ञा, पु. यौ० (सं०) नित्य विश्वेदेव-संज्ञा, पु. (सं०) देवताओं का अनियत समय पर पाने वाला एक बुखार, एक गण जिसमें इन्द्र, अग्नि आदि नौ जाड़ा देकर और उतर चढ़ कर पाने वाला देवता हैं ( वेद०) परमेश्वर, अग्नि। ज्वर जैसे:-जूड़ी, एकजुनियाँ, एकतरा, For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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