________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
विश
१६०४
विश्वविद्यालय
|
विश- संज्ञा, स्त्री० (सं०) प्रजा, रिश्राया । विशुपति, विशांपति - संज्ञा, पु० यौ० (सं०)
राजा ।
विश्रंभ - संज्ञा, पु० (सं०) विश्वास, भरोसा, प्रतीति, प्रेमिका प्रेम में रति के समय की प्रेम कलह, प्रेम । " माधुर्य विश्रंभ विशेष भाजा " - किरा० ।
विश्लेषण - संज्ञा, पु० (सं०) किसी पदार्थ के संयोजकों को अलगाना या पृथक करना, पृथक्करण | वि० विश्लेपणीय, विश्लिष्ट । विश्वंभर- -संज्ञा, ५० (सं०) परमेश्वर, विष्णु भगवान, एक उपनिषद्, विसंभर (दे० ) । " का चिन्ता जगजीवने यदि हरिर्विश्वंभरो गीते 1
"
विश्रब्ध - वि० (सं० ) विश्वास योग्य, विश्वासनीय, शांत, निडर, निर्भय । " विश्रब्धं परि चुंव्य जातपुलकाम्
जगत,
विश्वंभरा – संज्ञा, स्रो० (सं० ) वसुंधरा, पृथ्वी, वसुधा, भूमि। "विश्वंभरः पितायस्य माता विश्वंभरा तथा " । विश्व-- संज्ञा, पु० ( सं० ) विष्णु, समस्तब्रह्मांड, चौदहों लोकों या भुवनों का समूह, संसार, देवतों का एक गण जिसमें वसु सत्य, ऋतु दव, काल, काम, धृति, कुरु, पुरूरवा, माद्रवा ये दस देवता हैं, शरीर, विस्व (दे० ) । वि० - सब बहुत समस्त | 6. विश्व भरण-पोषण कर जोई" - रामा० । विश्वकर्मा-संज्ञा, पु० (सं० विश्वकर्मन् ) परमेश्वर, ब्रह्मा, सूर्य, समस्त शिल्प शास्त्र के कर्ता एक विख्यात देवता कारु, देवबर्द्धन, तक्षक, शिव जो, लोहार, बढ़ई, राज, मेमार | "मनहु विश्वकर्मा की रची" - स्फु० ।
विश्वकोश - संज्ञा, पु० (सं०) वह कोशग्रंथ जिसमें सब प्रकार के शब्दों या विषयों का सविस्तार वर्णन हो । यौ० संसार का कोष । विश्वनाथ - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) महादेव, शिवजी, विष्णु भगवान ।
विश्वपाल, विश्वपानक-संज्ञा, पु० (सं०) परमात्मा, परमेश्वर, विश्वपोषक, विश्वपति |
विश्वरूप - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शिव, विष्णु | विश्व ही है रूप जिसका वह परमात्मा, गीतोपदेश के समय अर्जुन को दिखाया गया श्रीकृष्ण का विराट रूप | " विश्वरूप कल" नैप० । नादुपपन्नं विश्वलोचन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूर्य और चंद्रमा, विश्वविलोचन, जगन्नेत्र । विश्वविद्यालय - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह
66
55
श्रमरुक० ।
जैसे
- पद्मा० ।
कुबेर के पिता
46
विश्रब्धनवोढ़ा -संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) वह नवोदा नायिका जो पति पर कुछ विश्वास अनुराग करने लगी हो, ( काव्य० ) । -" प्रीतम पान खवाइ बे को परिजंक के पास लौं जान लगी है " ---- विश्रवा - संज्ञा, पु० (सं०) एक प्राचीन ऋषि | विश्रांत - वि० सं०) श्रमित, क्लांत, थकित, थका हुधा, जो धाराम कर चुका हो । दिवं मरुत्वन्निव भोक्ष्यते भुवं दिगन्तविश्रान्त रथो हि तत्सुत - रघु० । विश्रांतघाट - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मथुरा में यमुना जी का एक घाट । विश्रांति - संज्ञा, त्रो० (सं०) धाराम, विश्राम विश्राम - संज्ञा, पु० (सं० ) थकी मिटाना, श्रम दूर करना, श्राराम करना, सुख-चैन, ठहरने का स्थान, श्राराम. टिकाश्रय, विस्राम, विसराम (दे० ) । संग रघु वंशमणि, करि भोजन विश्राम -- रामा० । यौ० विश्रामस्थान- "विश्राम स्थानम् कविवर वचसाम् "
ऋपय
د.
विश्रुत - वि० (सं० ) विख्यात प्रसिद्ध । विश्लिष्ट - वि० (सं० ) विश्लेषण-युक्त, शिथिल, वियोगी, अलग रहने वाला विकसित प्रस्फुटित, खिला, प्रकाशित, प्रकट, मुक्त, ढीला, विभक्त । विश्लेष- संज्ञा, पु० (सं० ) वियोग, विरह लगाव, भेद ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private and Personal Use Only