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विशाखदत्त
विशोक कार्तिकेय के वन चलाने से प्रगट एक अनपच । " सपदि निम्बुरसेन विचिका देवता।
हरित भो रति-भोग-विचक्षणे"-- लो० स० विशाखदत्त-संज्ञा, पु० (सं०) संस्कृत भाषा विशृंखल-वि० (सं०) जिसमें शृंखला या के एक कवि जिन्होंने मुद्राराक्षस नामक ___ क्रम न पाया जावे, स्वच्छंद, स्वतंत्र । संज्ञा, संस्कृत-नाटक बनाया है।
स्त्री० - विचला। विशाखा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) २७ नक्षत्रों में विशेष - संज्ञा, पु. (सं०) साधारण से परे से १६ वाँ नक्षत्र, राधा, कौशांवी के समीप या अतिरिक्त (अधिक), अंतर, भेद, पदार्थ, का एक पुराना प्रदेश।
वस्तु, अधिकता, अधिक, विचित्रता, विशार-संज्ञा, पु० (सं.) गली।
अनोखापन, सार, तस्व, एक अर्थालंकार विशारद-संज्ञा, पु० (सं०) निपुण, दक्ष, जिसमें (१) आधार के बिना प्राधेय (२) कुशल, ज्ञाता, पंडित, बिमारद (दे०)।। थोड़े श्रम या यत्न से अधिक लाभ या "शिव नारद सनकादि विशारद'-स्फु०।। प्राप्ति (३) तथा एक ही वस्तु का कई विशाल-वि० (सं०) सुविस्तृत, बहुत बड़ा स्थानों में होना कहा जाये ( श्र० पी० )। या लंबा-चौड़ा, वृहत्, सुन्दर, प्रसिद्ध ।। ७ पदार्थों में से एक । “ द्रव्य-गुण-क्रियासंज्ञा, स्त्रो०-विशालता।
सामान्य - विशेष - समवायाभावाः सप्तैव विशालात - संज्ञा, पु० यौ० सं०) महादेव
पदार्थाः"--वैशे०। जी, शिव, गरुड़, विष्णु ।
विशेषज्ञ संज्ञा, पु. (सं०) किसी विषय का विशालाती - संज्ञा, मो. यौ० सं०) सुन्दर
विशेष या मार्मिक ज्ञाता। संज्ञा, स्त्रीऔर बड़ी बड़ी आँखों वाली स्त्री, पार्वती
विशेषज्ञता । जी, देवी की एक मूनि ।
विशेषण-रज्ञा, पु० (सं०) जो किसी वस्तु विशिख-संज्ञा, पु. (सं०, तीर, बाण,
की कुछ विशेषता प्रगट करे, किसी संज्ञा बिसिख (दे०)। "विशिख माश्रवणं परिपूर्य
की बुराई-भलाई या विशेषता-सूचक विकारी चेदविचलद्भुज मुभितुमीशिपे"-नैप० ।।
शब्द जो उपकी व्याप्ति को मर्यादित करता "संधान्यो तब विशिख कराला".--रामा।
है। यह तीन भाँति का है, गुण-वाचक, विशिष्ट--वि० (सं०) युक्त, मिश्रित, मिला
संख्या-वाचक, सार्वनामिक (व्या०)। हुआ, जिसमें कुछ विशेषता हो, विलक्षणा.
विशेषतः-प्रव्य. (सं०) विशेष रूप से.
अधिकता से, विशेषतया। श्रेष्ठ, उत्तम । संज्ञा, स्त्री-विशिष्टता।
विशेषता संज्ञा, स्त्री० (सं०) विशेष का विशिष्टाद्वैत- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक
| धर्म या भाव, ख़सूसियत (फा०) अधिकता, दार्शनिक मत या सिद्धान्त जिसमें माया,
अमाधारणता प्रधानता, मुख्यता । जीव, ब्रह्म तीन अनादि तथा जीव और
विशेषना-प्र. क्रि० (सं० विशेष ) विशेष जगत् ब्रह्म से भिन्न होते हुए भी भिन्न
रूप देना, निर्णय या निश्चय करना । नहीं माना जाता है, विशिष्ठाद्वैतवाद । विशेषोक्ति- संज्ञा, स्त्री. यौ० (सं०) एक वि०-विशिष्ठाद्वैतवादी।
अर्थालकार लहाँ पूर्ण कारण के होते हुये भी विशुद्ध-वि० (सं०) बिलकुल निर्दोष या कार्य के न होने का कथन हो (१०पी०)।
साफ़, सत्य, सच्चा । संज्ञा, स्त्री०-विशुद्धता। विशेष्य-संक्षा, पु. (सं०) वह संज्ञा जिसके विशुद्धि-संज्ञा, स्त्री० (सं०) शुद्धता, सफ़ाई। साथ उसका विशेषण भी हो (व्या०) । विशुचिका-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० विसूचिका) विशोक--वि० (सं०) शोकरहित, विगतरस्त पाने का रोगा, हैजा, बदहजमो, | शोक : वि० (दे०) विशोकी।
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