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विशाख
विवसा विवसा-संज्ञा, पु० (सं०) इच्छित, वांछित, विवृत-वि० (सं.) विस्तारित, विस्तृत, चाहा हुथा।
फैला या खुला हुअा। संज्ञा, पु०-ऊष्म स्वरों विवाद-संज्ञा, पु. (सं०) शास्त्रार्थ, वाक् के उच्चारण का एक प्रयत्न (व्या०)।
युद्ध, बहस, कलह, झगड़ा, मुकदमेबाजी। विवृतोक्ति--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) एक विवादास्पद -- वि० यौ० (सं०) विवाद- अर्थालंकार जिसमें श्लेष से गुप्त किये अर्थ योग्य, विवादयुक्त, बहस के लायक, जिस को कवि स्वयं अपने शब्दों से प्रगट कर पर बहस हो सके।
देता है (अ० पी०)। विवादी-संज्ञा, पु० (सं० विवादिन् ) विवाद | विवेक-संज्ञा, पु० (सं०) भले-बुरे की पहि
या बहस करने वाला, झगड़ा-फसाद करने चान या ज्ञान, सदसत् ज्ञान की मानसिक वाला । ( मुकदमें में ) पक्षी या प्रतिपक्षी। शक्ति, ज्ञान, विचार, समझ, बुद्धि । विवाह -- संज्ञा, पु० (सं०) स्त्री-पुरुष को विवेकी-- संज्ञा, पु. (सं० विवेकिन्) विवेकदांपत्य-सूत्र में बाँधने की एक सामाजिक
वान् , ज्ञानी, समझदार, प्रवीण, चतुर, रीति, व्याह, शादी, श्राज-कल ब्राह्म विवाह
सदसत् या भले-बुरे का ज्ञान रखने वाला, प्रचलित है, यों विवाह के ८ भेद हैं, ब्राह्म, बुद्धिमान, न्यायी, न्यायशील । “बपति दैव, पार्ष, प्राजापत्य, प्रासुर, गांधर्व, राक्षस यदि विवेकी पंच वा षट् दिनानाम्'-स्फु०।
और पैशाच (मनु०), पाणिग्रहण, परिणय, | विवेचन--संज्ञा, पु. (सं०) आलोचन, विवाह (दे०) । "टूटत ही धनु भयो मीमांसा, निर्णय, तर्क-वितक, सत्यासत्य, विवाहू"-रामा० ।
औचित्यानौचित्य की गवेषणा, परीक्षा या विवाहना-स० क्रि० दे० (सं० विवाह )
जाँच । स्त्रो.---विवेचना। वि०-विवेचव्याहना, शादी करना, पाणि-ग्रहण या
नीय, विवेचित । परिणय करना।
विवेचक-संज्ञा, पु. (सं०) मीमांसक, विवाहित-वि० अ० (सं०) व्याहा हुआ,
विचारक, बुद्धिमान् । जिसका व्याह हो चुका हो । स्त्री० विवाहिता ।
विवेचना --- संज्ञा, श्री० (सं०) विचार, ज्ञान। विवाही-वि० सी० ( ० विवाहिता )
विवेचनीय- वि० (सं०) विचार या विवेचन जिसका व्याह हो चुका हो. व्याही, परि
करने योग्य, विचारणीय, पालोचनीय । णीता।
विवेचित-वि० (२०) पालोचित, विचारा विवि-वि० दे० (सं० द्वि०) दो, दूसरा।
हुया, निर्धारित, वर्णित, निश्चित । विविक्त-संज्ञा, पु. (सं०) पवित्र, एकांत,
विवोक-संज्ञा, पु० (सं०) एक हाव जब निर्जन।
स्त्रियाँ संभोग के समय प्रिय का अनादर विविचार-वि० (सं०) विचार-हीन, विवेक करती हैं (सा०)। या प्राचार से रहित ।
विशद-वि० (सं०) निर्मल, विमल, स्वच्छ, विविध--वि० (सं०) अनेक प्रकार या बहुत साफ़, व्यक्त, स्पष्ट, सफेद, सुन्दर । संज्ञा, भाँति का।
स्त्री०-विशदता “विरस विशद गुणमय विविर--संज्ञा, पु. (सं०) गुफा, खोह, दरार, फल जासू"..-रामा० । बिल, छिद्र, छेद।
विशांपति- संज्ञा, पु. (सं०) राजा । "तवैव धित्रुध-संज्ञा, पु० (सं०) देवता । "अमराः | संदेशहराद्विशांपतिः शृणोति लोकेश तथा निर्जराः देवाः त्रिदशाः विबुधाः सुराः" --- विधीयताम्"-- रघु० । अमर० । “अभून्नृपो विवुधसखा"-भट्टी० । विशाख-संज्ञा, पु. (सं०) कार्तिकेय, शिव,
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