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विभात
विप्रचित्ति विप्रचित्ति--संज्ञा, पु. (पं०) राहु-जननी विभक्त-वि० (सं०) विभाजित, बँटा हुआ,
सिंहिका का पति, एक दानव (पुरा । पृथक या विलग किया हुआ ! "विभुर्विभक्ताविप्रपद, विप्र-पाद-संज्ञा, पु. यो० (सं०) वयवं पुमानिति " --~-माध० । विप्र-चरण, भृगुलता ।
विभक्ति---संज्ञा, स्त्री. (सं०) बाँट विभाग, विप्रराम--संज्ञा, ५० यौ० (सं०) परशुराम । पार्थक्य, बिलगाव, कारकों के चिह्न या वाक्य विप्रलंभ--संज्ञा, पु. (सं०) अभीष्ट की के किसी शब्द का क्रिया-पद से सम्बन्ध
श्रप्राप्ति, वियोग, प्रिय का न मिलना, सूचक प्रत्यय या शब्द ( जो शब्द के विछोह, जुदाई, विरह, पार्थक्य, विच्छेद, । आगे लगाया जाता है - व्या० )। छल, धूर्तता, धोखा, विच्छेद, शृंगार रस विभव---- पंज्ञा, पु० (सं०) प्रताप, धन, संपत्ति, का एक भेद वियोग (सा ।
अधिकत", ऐश्वर्य, उन्नति, बहुतायत, विप्रलब्ध-वि० (सं०) अभीष्ट वस्तु जिसे न मुक्ति. गोक्ष । " भव-भव-विभव पराभव मिली हो, वंचित रहित, वियोगी, विरही. कारिणि "---रामा० ।। वियोग को प्रात:
विभवणानी ---वि० (सं०) विभववान् , विप्रलब्धा--संज्ञा, खी० (सं०) वियोगिनी, प्रतापी. धनी, संपत्तिशाली ऐश्वर्य या संकेत-स्थल पर मिय को न पाकर दुखी वैभव वाला। हुई नायिका।
विभाँचक-संज्ञा, पु० (सं०) ऋषि शृंग के विप्लव--संज्ञा, पु० सं०) उत्पात, अशान्ति, पिता, एक महर्षि । क्रांति, विद्रोह, बलवा. उपद्रव, उथल- विभाँनि--संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० वि - भाँतिपुथल, जल की बाद, धापत्ति ।
हि० ) भेद, प्रकार, किस्म । वि.---अनेक विफल-- वि० (२०) व्यर्थ, निष्प्रयोजन, भाँति क । अन्य ०-अनेक भाँति से। निस्सार, जिसमें फल न लगा हो, परिणाम- विभा - सज्ञा, स्त्री० (सं०) कांति, शोभा, रहित, प्रयत्नवान, असफल, निष्फल ! संज्ञा, फिरण, प्रकाश । स्त्री०-विलना!
विगाकर --संज्ञा, पु० (सं०) प्रभाकर, सूर्य, विवुध-संज्ञा, पु. (सं०) देवता, चंद्रमा, । चंद्र, अति, भाग, राजा। बुद्धिमान, पंडित । "अभून्नपो विबुधसखः विभाग-- संज्ञा, पु. (सं०) बँटवारा, बाँट, परंतपः"--भती ।
हिस्ता अंश, भाग, बस्वरा, सर्ग. प्रकरण विबुधनदी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सुर- अध्याय, मुहकमा, कार्य क्षेत्र ।
नदी, गंगा जी, देवापगा। “तिन कह विमाजल-- संज्ञा, पु० (सं०) अंश या विभागविवुधनदी बैतरनी "---रामा० ।
कर्ता, हिस्सा करने वाला, पृथक या अलग विबुधविलासिनी- ज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) करने वाला, बाँटने वाला। देव-वधुटी, देवगना, अप्सरा।
विभाजन ----संज्ञा, पु० (सं० बटने की क्रिया, विधवलि- संज्ञा, स्त्री० गौ० (सं०) देव- भाजन, पात्र । वि०-विभाजनीय, लतिका, कल्प लता, विधवारी,
विभक्त विभाजित। विवुधवल्लरी, देवदल्ली।
विभाजित- वि० (सं०) बँटा हुआ, विभक्त । विवोध- संज्ञा, पु० सं०) जागना, जागरण, विभाव्य -- वि० (सं०) बाँटने-योग्य, विभाग पूर्ण धौर अच्छा ज्ञान या बोध, सावधान करने योग्य, जिसे बाँटना हो, जिसका हिस्सा या सचेत होना, सतर्क था सजग होना या विभाग करना हो, विभाजनीय । विभंग-संज्ञा, पु० (सं०) उपल, प्रोला विभान--संज्ञा, पु० सं०) प्रभात. प्रातःकाल, भा० श० को०-२००
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