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विभाति १५६४
विभेटन भोर, सवेरा, तड़का। " स्वाभाविक परगुणेन हुश्रा, बभीषन (दे०), "विभीषणोऽभाषत विभात-वायुः - रघु०।
यातुधानान् "-भही। विभाति--संज्ञा, स्त्री० ( सं० विभा ) शोभा, विभीषिका--संज्ञा, सं० (सं०) भीति, भय, कांति, छवि, छटा, दीप्ति ।
डराना, भयंकर दृश्य गा कांड । " भोपन विमाना* --- अ० क्रि० दे० (सं० विभा+ विभीषन विभीषिका सो भीति मानि" - ना-प्रत्य० ) प्रकाशित होना, झलकना, शिव० । चमकना, शोभा देना।
विभु-वि० (सं०) सर्वत्र गमनशील. सर्वत्र विभारना* -- अ० क्रि० दे० (सं० विभार । सर्वकाल वर्तमान या व्यापक, विस्तृत, ना ) सोहना, चमकना, झलकना, शोभा महान, मन, दृढ़, अचल, नित्य, शाश्वत, देना।
सर्वशक्तिमान, समर्थ । संज्ञा, पु०-प्रभु, विभाव-संज्ञा, पु० (सं०) रसों के रत्यादि जीवात्मा, ब्रह्म, ईश्वर, विष्णु, शिव, ब्रह्मा । स्थायी भावों के श्राश्रयी तथा उत्पन्न या विभुर्विभक्तावयवं पुमानिति"---माघ० । उद्दीप्त करने वाले पदार्थादि (काव्य०): विभुना-संज्ञा, स्त्री० सं०) सर्व-व्यापकता, विभावना - संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक अर्थालंकार प्रभुत्व, ऐश्वर्य, प्रताप।
जहाँ कारण के बिना या विपरीत कारण से विभूति-संज्ञा, स्लो० (सं०) वृद्धि-समृद्धि, कार्य को होना कहा जाये । जैसे- ऐश्वर्य, विभव, धन, संपति, बढ़ती, योग "सहि तनै शिवराज की, सहज टें। यह ऐन। की दिव्य शक्ति जिसमें अणिमा, महिमा, बिनु रीझै दारिद हरै, अनखीझै अरि-सैन ॥" लघुमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व -भूष।
और वशित्व ये पाठ सिद्धियाँ हैं, राख, विभावरी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) निशा, रात, भस्म, शिवांग-रज, लपी, सृष्टि, विश्वामित्र रात्रि, तारकित रजनी, कुटनी, कुहनी, दूती। द्वारा राम को दिया गया एक दिव्यास्त्र । "भाई तू विभावरी मैं कान्ह की विभावरी विभूषण--संज्ञा, पु० (सं०) भूषण, अलंकार, ह"-मन्ना।
गहना, शोभा। वि०--विभूषणीय, विभूविभावसु--- संज्ञा, पु. (सं०) वसुधों के पुत्र, पित ! " गये जहाँ त्रैलोक्य-विभूषण "-- सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, मदार का पेड़ । रामा० । 'विभावसुः सारथिनेव वायुना''.-- रघु०। विभूषन --- संज्ञा, पु० दे० ( सं० विभूषण ) विभास-संज्ञा, पु० (सं०) चमक, प्रकाश । गहना, शोभा। विभासना* --अ० कि० दे० ( पं० विभास | विभूषना --स० कि० इ० (सं० विभूषण )
+ना-हि० प्रत्य० ) चमकना, शोभित या सँवारना, गहने आदि से सजना या सुशोप्रकाशित होना, झलकना।
भित करना, अलंकृत करना। विभिन्न-वि० (सं०) पृथक्, विलग, जुदा, विभूषित---वि० (सं०) अलंकृत, सुसज्जित, अनेक प्रकार का । " पृथक् विभिन्नश्रुति | गहनों आदि से सुशोभित, शोभित, अच्छी मंडलै स्वरैः "---माघ ।
वस्तु (गुणादि) से युक्त. सहित । " करहु विभीतक-संज्ञा, पु. (सं०) बहेरा फल । विभूषित नगर सब, हाट-बाट चौहाट"विभीति-संज्ञा, स्रो० (सं०) भय, डर, संशय, कं० वि०।। संदेह, शंका, विभीतिका ।
विभेदन*-संज्ञा, पु० दे० (हि. भेंट) विभीषण-संज्ञा, पु० (सं०) रावण का छोटा समालिंगन, गले मिलना । ' भरत राम की भाई जो रावण के बाद लंका का राजा देखि विभेटन प्रेम रह्यो सिर नाय..---स्फु०।
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