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लोकलाज
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लोकलाज-संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० (सं० लोकलज्जा) संसार की शर्म, समाज की लज्जा । लोकलीक* -- संज्ञा, त्रो० यौ० ( हि० ) संसार की मर्यादा, समाज या लोक की रीति । लोकव्यवहार-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लोकाचार लोक रीति । लोकलोचन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूरज, सूर्य, भास्कर, चंद्रमा, विश्व-नेत्र विश्वविलोचन | लोकश्रुति--संज्ञा, खो० यौ० (सं०) अफवाह | लोकसंग्रह - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) संसार के लोगों को प्रसन्न रखना, सब की भलाई । लोकहार - वि० दे० ( सं० लोकहरगा ) संसार का नाश करने वाला, लोक संहारक । लोकहित - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विश्व - | मांगल्य । "सर्वे लोक-हिते रताः" वाल्मी० | लोकहित - वि० दे० यौ० (सं०) लोक-हित या संसार की भलाई करने वाला । लोकहितैषी - वि० यौ० (सं०) विश्व हित
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का चाहने वाला | लोकांतर- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) परलोक, मरने पर जीव के जाने का लोक |
लोकांतरित - वि० (सं०) मृत, मरा हुआ, परलोकवासी ।
लोकाचार -- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लोकव्यवहार, संसार या समाज का व्यवहार, दुनिया का बर्ताव |
लोकाधिप, लोकाधिपति--संज्ञा, पु० यौ०
(सं०) राजा, लोकप ! लोकापवाद संज्ञा, पु० यौ० (सं०) संसारसंबंधी निदा, निंदा, अपकीर्ति अयश बदनामी । "लोकापवादी बलवान् मतो मे' - रघु० ।
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लोकाट - संज्ञा, पु० (चीनी - लुः + क्यू एक पेड़ जिसके फल बड़े बेर के से मीठे और गूदेदार होते हैं, काट | लोकाना - स० क्रि० दे० ( हि० लोकना का
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लोचन
प्रे० रूप ) उछालना, ऊपर को आकाश में फेंकना ।
लोकायत : संज्ञा, पु० (सं०) केवल इस लोक का मानने वाला और परलोक को न मानने वाला, चार्वाक दर्शन, दुर्मिल छंद (पिं० ) । लोकेश लोकेश्वर - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लोक-पाल |
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लोकपणा - संज्ञा, स्त्री० सं०) लौकिक बातों की चाह, यशाचा, कीर्ति लालसा । वि० (सं०) लोकैषी - यशांकाती ↓, लोकोक्ति - संज्ञा, स्रो० यौ० (०) कहावत, लोकोकति, लोकउकति (दे.), मसल, जनश्रुति, एक अलंकार जहाँ लोकोक्ति का प्रयोग रोचकता के साथ भाव-पोषणार्थ हो ( श्र० पी० ) । लोकांत्तर-वि० यौ० (सं०) जो लोक या संसार में न हो, लैौकिक, अत्यंत अद्भुत या विलक्षण, अनोखा, अपूर्व । लोखर संज्ञा, पु० दे० ( हि० लोह + खंड ) लोहार, बढ़यों आदि के लोहे के हथियार या ज्ञार, लोहे के बरतन, भाँड़े । लोखरी - संज्ञा, स्त्री० (दे०) लोमड़ी, हुँडार ( प्रान्ती ), लोवा । पु० (दे०) लेखरा लोग -- संज्ञा, पु० बहु० दे० (सं० लोग ) मनुष्य, आदमी जनता, जन स्त्री० लुगाई 'समय बिलोके लोग सब, जानि जानकी भीर " - - रामा० ।
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लोगाइत – संज्ञा, पु० (दे०) शान, घमंड | मुहा०- लोगाइन बुकना - शान जमाना ! लोगाई, लुगाई | संज्ञा, स्त्री० दे० ( हि० लोग ) नारी, स्त्री, औरत । श्रौध तजी ज्यों पंथ के साथ ज्यों
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मग चारा के रूख
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क० रामा० ।
लोग लुगाई ' लांच - पंज्ञा, स्त्रो० दे० ( हि० लचक ) लचक, कोमलता, लचलचाहट संज्ञा, पु० दे० ( ० रुचि ) रुचि, अभिलाषा । लोचन - संज्ञा, पु० (सं०) नेत्र, नयन, श्राँख | "लोचन जल रह लोचन कोना "रामा० ।
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