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लेह्य
सं०) चाटने योग्य वस्तु,
लेह्य - वि० चटनी, लेहनीय | लैंगिक - संज्ञा, पु० (सं०) वह ज्ञान जो लिंग या स्वरूप के वर्णन से प्राप्त हो, मान | वि० (सं०) लिंग संबंधी, लिंग का, लक्षण या चिन्ह सम्बन्धी ।
धनु
लै* - अव्य० दे० (हि० लगना) लों, पर्यंत, तक । पू० का ० क्रि० ( हि० लेना ) लेकर । लैस - वि० ( ० लेस ) वर्दी और हथियारों से सजा हुआ, कटिबद्ध तैयार सन्नद्ध । संज्ञा, पु० ( ० ) - कपड़े पर चढ़ाने का फीता | संज्ञा, पु० (दे०) एक तरह का बाण | लो- प्रध्य० दे० ( हि० लौं) लौं. तक, पश्यत ।
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लोंदा - संज्ञा, पु० दे० (सं० लुंठन ) किसी गीली वस्तु का गोला डला, या बँधा भाग । लोइ, लांग - संज्ञा, पु० दे० (सं० लोक )
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लोग | संज्ञा, स्त्रो० ( सं० रोचि ) दीप्ति. प्रभा, कांति, दीप शिखा, लव, लौ (दे०)
आँख |
लोइन - संज्ञा, ५० दे० ( सं० लावगय ) लावण्य, सुंदरता, मनोहरता | संज्ञा, पु० दे० (सं० लोचन) आँख, लोयन ( ० ) । लोई -संज्ञा, स्रो० दे० ( सं० मोली ) एक रोटी या पूरी के बनाने योग्य गुधे आटे की गोल टिकिया । संज्ञा खो० दे० (सं० लोनीय ) एक प्रकार का ऊनी कम्बल या चादर, लोइया (दे०) 1
लोकंजन * - संज्ञा, पु० दे० यौ० ( सं० लोपांजन ) लोपांजन, वह श्रंजन जिसके लगाने से लोग औरों को दिखाई नहीं देते । लोकंदा- संज्ञा, पु० दे० ( हि० लोकना ) व्याह के बाद कन्या के डोले के साथ भेजी गई दासी | खो० लोकंदी | लोकंदी - संज्ञा स्त्री० ( हि० लोकना ) जो
दासी कन्या के साथ ससुराल भेजी जाये । लोक - संज्ञा, पु० (सं०) जगत, संसार प्रदेश, स्थान, निवास स्थान, दिशा, जन, लोग,
लोकरीति
जीवधारी, प्राणी, समाज, कीर्ति, यश । इह लोक औौर पर लोक दो लोक हैं (उपनि० ) । भूमि, थाकाश, पाताल या पृथ्वी, अंतरिक्ष और लोक, तीन लोक हैं ( निरुक्त ) । भूलोक, भुवतीक, स्वर्लोक, मह, जनः, तप और सत्य लोक ये सात ऊपर के लोक ( पुरा० ) और फिर अतल, वितल, सुतल, महातल ( तल) रसातल ( नितल ), तलातल ( गभस्तिमान् ) पाताल ये सात नीचे के लोक ( पुरा० ), यों कुल चौदह लोक हैं।
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' चहहु लोक परलोक नसाऊ रामा० । लोककंटक संज्ञा, पु० यौ० (सं०) समाज की क्षति या हानि पहुँचाने वाला । लोकधुन - सज्ञा स्त्री० दे० यौ० (सं०
"
रामा० ।
लोकध्वनि ) शवाह, उड़ती हुई बात । लोकना - स० क्रि० दे० ( हि० लोपन ) ऊपर से गिरते हुये किसी पदार्थ को अपने हाथों से पकड़ या थाम लेना, बीच में से ही उड़ा लेना । स० रूप - लोकाना, प्रे० रूपलोकवाना | लोकनाथ - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) राजा, विष्णु, ब्रह्मा शिव, लोक नायक । लोकन, लोकपति-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) बना, इन्द्र, बरुण, कुबेर श्रादि, राजा, लोकाधिपति | लोकप रहहिं सदा रुख राखे " लोकपाल ले कपालक-संज्ञा, पु० (सं०) इन्द्रादि देवता दिकपाल, दिशाओंों के स्वामी, राजा लोकप्रवाद-पंज्ञा, पु० (सं०) कहावत, मसल लोक- प्रचलित उक्ति । "लोकप्रवादः त्योऽयम् पंडितैः समुदाहृतम् " -- वाल्मी० | लोकमाता संज्ञा, खो० यौ० (सं०) लक्ष्मी, देवी, रमा, कमला । लोकयात्रा-ज्ञा, खो० यौ० (सं०) लोकव्यवहार या रीति संसार यात्रा जीवन | लोकरीति- ज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) संसार या समाज में प्रचलित रीति, लोक-नीति /
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