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रसगुनी
रसगुनी | संज्ञा, पु० दे० यौ० (स०रगुणी)
काव्य और संगीत का ज्ञाता, रसन् । रसगुल्ला - संज्ञा, पु० दे० यौ० (हि० रस -+गोला) देने की एक मिठाई ।
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रसग्रह - संज्ञा, पु० (सं०) रसना. जीभ । रसज्ञ - वि० (स० ) भावुक, रसिक, रस-ज्ञानी, काव्य और संगीत का मर्मज्ञ, कुशल, दत्त, निपुण | संज्ञा, स्त्री० रसज्ञता । रसज्ञा - संज्ञा, स्रो० (सं०) रसना, जिह्वा । "येषामाभीर-कन्या-प्रिय गुण-कथने नानुरक्ता रसज्ञा । "
रसता - संज्ञा, स्रो० (सं०) रस का धर्म या भाव, सत्व (सं०) |
रसद - वि० (सं०) सुख या श्रानंद देने वाला, स्वादिष्ट, मज़ेदार | संज्ञा, स्त्री० ( फ़ा० ) बखरा, बाँट, खाने-पीने की सामग्री। मुहा० - हिस्सा रसद विभा जन में उचित हिस्सा मिलना, बिना पकाया
कच्चा अनाज ।
रसदार - वि० (सं० रस + दार फा०) रसपूर्ण, रस- युक्त, स्वादिष्ट, मजेदार, रसीला ! रसन -- संज्ञा, पु० (सं०) चावना, स्वाद लेना, ध्वनि, जिह्न ।
रसवत
क्रमशः उपमालंकार का वह भेद जिसमें पूर्वगत उपमेय प्रागे क्रमशः उपमान होते हुए उत्तरोत्तर उपमा माला बनावें ( श्र० पी० ) । रसपति - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चन्द्रमा, रसाधिप, रसाधिपति, राजा,
पारा,
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शृङ्गार रस | रसप्रबंध - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) नाटक, एक ही विषय का सरस सम्बद्ध काव्य-वर्णन | रसभरी -- संज्ञा, स्त्री० दे० यौ० ( ० रेप्स बेरी) एक स्वादिष्ट फल | रसमीना - वि० यौ० ( हि० रस | मीनना) हर्ष- मग्न, थाई, गीला, तर । खो०रसभीनी । रसम रस्म-संज्ञा स्त्री० ( फा० ) रीतिरिवाज, चाल, प्रथा ।
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रसमसा वि० दे० ( हि० रस - मस - अनु० ) अनुरक्त, थानंद-मग्न, गीला । त्रो० रसममी।
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रसना - संज्ञा, स्त्री० (सं०) जिल्हा, जीभ, ज़बान । रसना कसना ग्राम से " । मुहा० - रसना - खोलना - बोल चलना । रसना (जीभ ) तालु से लगानाबोलना बंद करना । रस्सी, लगाम जिहा नुभवित स्वाद । प्र० क्रि० ( हि०) गीला होकर द्रव वस्तु छोड़ना, धीरे धीरे टपकना या बहना। मुहा० रस-रस या रसे-सेधीरे-धीरे । “रसरस सूख सरित-सर- पानी ” - रामा० । रस लेना या रस में निमग्न तन्मय होना, प्रेम में अनुरक्त होना, स्वाद लेना ।
रसमि- संज्ञा, स्री० | २०, रश्मि, किरण | रमराज - संज्ञा, पु० ० (सं०) पारा, पारद, शृङ्गार रस |
र
रसराय* -संज्ञा, पु० दे० (सं० रसराज ) रसराज, पारा, श्रृंगार रस । "हम तुम सूखे एक से, हूजत है रमराय' - गिर० । रसरी- संज्ञा स्त्री० दे० (हि० रस्सी) रस्पी, डोरी, जौरी, लस्सी (दे०) "रपरी थावत जात तें, सिल पर परत निपान" - वृं० । रसल वि० दे० (हि० रसीला ) रसीला | रसवंत संज्ञा, पु० (सं० रसवत्) रसिक, प्रेमी । वि० -- रसीला, रस-भरा रसवंती-- संज्ञा, पु० ० (सं० रसवती) रसोई, रसवती, रसौत |
रसवत्संज्ञा, पु० (सं०) वह अलंकार जिसमें एक रस किमी दूसरे रस या भाव का अंग हो ( ० पी० ) । वि० - रस युक्त, या रस तुल्य, रसवाला । "कवीनाम् रसवद्रचः स्फु० सा० ।
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रसनंद्रिय - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) जीभ, जिह्वा, रसना ।
रसनोपमा - संज्ञा, पु० (सं०) गमनोपमा, रमवत -- संज्ञा, पु० (०) रसौत ( श्रौष ० ) ।
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