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रविक
रविक - संज्ञा, पु० (दे० ) पेड़ | रविकुल- संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूर्य - वंश | रविचंचल - संज्ञा, पु० (सं०) काशी का लोलार्क तीर्थ ।
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रविज- रविजात- संज्ञा, पु० (सं०) यम, शनिश्चर, सुग्रीव, कर्ण, श्रश्विनीकुमार | रविजा - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) यमुना | रवितनय - संज्ञा, पु० यौ० (स० ) यमराज, शनिश्चर, सुप्रीव, क, अश्विनीकुमार ! रवितनया - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) यमुना । "रवितनया-तट कदम वृक्ष सोहत छवि छायो " - स्फुट । रविनंदन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) यम, शनिश्चर, सुग्रीव, कर्ण, श्रश्विनीकुमार । रविनंदिनी - संज्ञा, स्रो० यौ० (सं०) यमुना । 'राम-कथा रविनंदिनि बरणी' - रामा० । रविपुत्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सूर्य का बेटा, यम यादि रवितनय |
रविप्रिय - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कमल, अकवन |
रविप्रिया - संज्ञा, त्रो० (सं०) सूर्य की स्त्री या पत्नी ।
रविपुत* - संज्ञा, पु० यौ० दे० (सं० रविपुत्र) यम, शनिश्चर, सुग्रीव, कर्ण, अश्विनी
कुमार |
रविमंडल - संज्ञा, ५० यौ० (सं०) सूर्य का गोला, सूर्य के चारों श्रोर का लाल गोला, • रवि-बिव । "रविमंडल देखत लघु लागा" । रविमणि - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) सूर्यकांतिमणि, श्रातशी शीशा ।
रविवाण - संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) जिम वाण के चलाने से सूर्य का सा प्रकाश हो । रविवार - संज्ञा, पु० चौ० (सं०) एतवार, आदित्य वार |
रविश - संज्ञा, स्त्री० (फ़.०) चाल, गति, ढंग, तरीका, क्यारियों के बीच की छोटी राह । रविसुन- रविसुवन - संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं०) रवितनय, सूर्य - पुत्र |
रसकोरा
रवैया - संज्ञा, पु० दे० ( फा० रविश, रवाँ ) रीति, चलन, व्यवहार, चाल-ढाल, ढंग, प्रथा । यौ० -- रीति रवैया । रशनोपमा - रसनोपमा - संज्ञा, स्त्री० (सं०) गमनापमा या उपमामाला, उपमालंकार का एक भेद, जिनमें कई उपमेयोपमान उत्तरोत्तर उपमानोपमेय होकर चलते हैं (श्र० पी०) । रश्क - संज्ञा, पु० ( फा० ) डाह, ईर्ष्या । रश्मि -संज्ञा, पु० (सं०) किरण, घोड़े की लगाम, बाग। ' रविरश्मि संयुतं " - स्कु० । यौ० - रश्मिमाली - सूर्य, चन्द्र । रस - संज्ञा, पृ० (सं०) रसना का ज्ञान, स्वाद, रस छै प्रकार के हैं, मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय (वैद्य ० ) छः की संख्या, देह की ७ धातुनों में से प्रथम धातु, तत्व या सार, काव्य और नाटक से उत्पन्न मनका एक भाव या आनंद ( साहित्य ० ) काव्य में शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, श्रद्भुत और शान्त हरस हैं, नौ की संख्या, आनंद। मुहा० - रस भीजना या भीगन:- जवानी का प्रारंभ होना । प्रीति, प्रेम, स्नेह । यौ० - रसरंगप्रेम-क्रीड़ा, कलि । वेग, जोश। रसरीतिस्नेह का व्यवहार । यौ० - गोरस - दूध दही यादि। केलि, विहार, काम-क्रीड़ा, उमंग, गुण, द्रवपदार्थ, पानी, शरबत, पारा, धातुओं की भस्म ( वैद्य० ), रगण श्रौर सगण (केश ० ), भाँति, प्रकार, मनकी मौज या इच्छा, हृदय की तरंग | क्रि० वि० (दे०) धीरे धीरे रसे रसे (दे० ) । "रस रस सूख सरित सर पानी" - रामा० । रसकपू ८- संज्ञा, पु० दे० (सं० रस + कर्पूर) एक श्वेत औषधि जो उपधातु मानी जाती है (वै० ) |
रसकेलि संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) कामक्रीड़ा, बिहार, दिल्लगी, हँसी । रसकोरा - रुज्ञा, पु० (दे०) एक मिठाई, रसगुल्ला ।
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