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रत्यो संज्ञा, स्त्री० दे० सं० रथ ) अस्थी। राक -संज्ञा, पु. यौ० (सं०) शिविका, टिकठी प्रान्ती) अंतिम संस्कारार्थ शव के पालकी ।
लेजाने का सन्दूक या बाँय का ढाँचा। रक्षगुन्ति ---संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) रथ का रह-ज्ञा, पु० (सं०) कांतिमान, बहुमूल्य परदा या योहार !
खानिज चमकीले पत्थर, मो, जवाहिर. रथावरणचरमा-रथचक्र--संज्ञा, पु० यौ० नगीना, माणिक, लाल. सर्वश्रेष्ठ । "कृत्स्नाच (सं०) पहिया, चाका । भूर्भवति संनिधि रत्नापूर्णा"---भ. श०। रथयात्रा.....संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) हिन्दुओं रनार्म--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) पमुद्र, सागर। का एक पर्व जो अपाद शुक्ल द्वितीया को स्त्री० -- रत्नगर्भा।
होता है, र जात्रा (दे०)। रलार्भा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) भूमि, रमवान --- (सं०) पु. ( सं० रथवाह ) सारथी, पृथ्वी. वसुंधरा
रथ हाँकने या चलाने वाला। रत्न बदित-- वि० यौ० (0) वाहिरात से रवाह-रयवाहक--संज्ञा, पु. यौ० (सं०)
जड़ा । " रत्न जटित मकराकृत कुंडल"- रथ चलाने वाला, मारथी घोड़ा। साट ।
रथांग--संज्ञा, पु० यौ० (सं.) पहिया, रथ का रत्ननिधि-संज्ञा, पु. 2 ० (सं०) समुद्। एक अंग । " रथांगनानो इब" ---रघु० । रत्नपरीक्षक-संज्ञा, पु० या ० (सं०) जौहरीरांगना-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) चक्रवाक, रत्नपारसी-संज्ञा, पु. दे० ये सं० रत्न " रथांगनाम्नोरिव भाव-बंधनम्" रघु० ।
+ पारखी हि०) रत्नपरीक्षक (सं०) जौहरी, राशाि --संज्ञा, पु० यौ० (सं.) विष्णु, रलनपारखी (दे०)
श्रीकृष्ण । “रथांग पाणोः पटलेन रोचिपाम्" रत्नपाला---संज्ञा, स्त्री० या० (सं०) रत्नों,
हीरों या मोतियों की बनी माला रत हर! रधिका---संक्षा, पु. (सं०) स्थी, रथ का रत्नसानु - संज्ञा, पु० या ० (सं०) सुमेरु पर्वत,
सवार देवलोक।
रथी-संज्ञा, पु० (सं० रथिन् ) रथ का सवार, रत्नसिंहासन - संज्ञा, पु० यै० सं०) रत्न
एक महल वीरों से अकेले लगने वाला । जटित सिंहायन, राज-सिंहार न, रतन ।
वि.---रथारुढ़ । संज्ञा स्त्री० (दे०) मृतक की सिंहासन (दे०)।
अस्थी रन्थी। रत्नाकर--संज्ञा, पु० या०रा० समुद, रजों की खानि, रतनाकर (दे०) · रत्नाकर
रोहता--संज्ञा, स्त्री० (सं०) ११ वर्णों का सेवै रतन, सर सेवै सालूर"- नीति
एक वाणिक छंद । रानराविह रथोद्धता रत्नावली--संज्ञा, स्त्री० यो००) ना
लगो'... (पिं०)। बत्नी (दे०) मणिमाला. रत्नाजि, मणि रा --संज्ञा, सी० (स०) रास्ता, राह, सड़क, समूह या श्रेणी, मणि-पंत्ति, ए अलंकार गली. मार्ग नाली । " रच्या काट-विरचित जिसमें अन्य वस्तु-समूह के नाम प्रस्ततार्थ कथा "-च० ५० के अतिरिक्त प्रगट होते हैं (अ० पी० रन्द ---क्षा, पु. (सं०) दाँत ।" रद पुट रथ -संज्ञा, पु० (सं०) चार या दो पहियों की फरकत नरन रिमोहैं ".-रामा० । वि. एक प्राचीन गाड़ी (हिन्दू) बहन रच्या (फा०) ---जिया काट-छाँट या परिवर्तन (प्रान्ती०) शरीर, चरण, ऊँट शतरंज किया गया हो र (दे०)। "जिसे राज रद रणकार-संना, पु० (सं०) रथ बनाने वाला, कर चुके थे वह पत्थर'- हाली । बेकाम, बढ़ई, एक वर्ण-संकर जाति विशेष । निकम्मा, बेकार ।
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