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रताना
के एक ही शब्द का बारम्बार वहना, बिना माना-अ० कि. (दे०) बजना। समझे याद वरना। "चातक स्टत तृषा न संज्ञा, पु. (२०) स्त्री प्रसंग, मैथुन, अति श्रोही" रामा० । बार बार शब्द प्रेम, प्रीति । वि०-पासक्त, अनुरक्त, लिप्त । करना या बजना, ज़बानी याद करने को “नरन रत हो विषय में लागु हरिकी बारम्बार कहना।
शरण'- कु. वि० । *-संज्ञा, पु. ( सं० रठ-वि० (दे०) शुभक, रूखा सूखा । रक्त) रक्त, खून । रढ़ना*-स० कि० दे० हि० रटना) रटना। रतजगा -- संज्ञा, पु० यौ० दे० ( हि० रात +रण-- संज्ञा, पु० (सं०) युद्ध. संग्राम, जंग, जागना ) विहार, उस्तव या किसी त्योहार
रन (दे०)। "जो रण हहि प्रचारै कोई" में सारी रात जागना। -- रामा०।
रतन--- संज्ञा, पु. दे. (सं० रत्न : रन, जवारणक्षेत्र... संज्ञा, पु० यौ० (०) युद्धस्थल, हिर, मणि । “रतन रमा रन रेत में, कंकर लड़ाई का मैदान ।
विनि बिनि खाय"-कबो। रणछोड़-संज्ञा, पु० दे० यौ० (सं० रण रतनजोलि- संज्ञा, स्त्री. द. यौ० सं०
छोड़ना-हि० ) श्रीकृष्ण का एक नाम । रत्नज्योति ) एक प्रकार की मणि, एक छोटा रणखेत*- संज्ञा, पु० दे० यो० (सं० रणक्षेत्र) तुप जिसकी जड़ से लाल रंग निकलता है। युद्धस्थल ।
ग्तनाकर, रतनागर--संज्ञा, पु० दे० रणभूमि - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) रण-क्षेत्र,
(सं० रत्नाकर) समुद्र । “ग कियो रतनागर युद्ध-स्थल।
सागर जल खारो करि डारो"--- स्फुट । रणरंग-संज्ञा, पु० यो० (सं०) यद्ध, युद्ध का
रतनार, रतनारा--- वि० दे० (सं० रक्त) उत्साह, युद्ध-क्षेत्र, रनरंग (१०) । "कुम्भ
कुछ कुछ लाल. सुर्वी लिये हुये । " प्रामी, करण रणरंग विरुद्धा"-रामा० । वि०
हलाहल, मद-भरे, स्वेत, स्याम, रतनार" रणरंगी।
-वि.। रणलक्ष्मी -संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं.) विजयलघमी, विजय, जय-श्री।
रतनारी- संज्ञा, पु० दे० (हि. रतनार + रणसिंघा--- संज्ञा, पु. यौ० (सं० रण--- ई-प्रत्य० ) एक प्रकार का धान । संज्ञा. स्त्री० सिंघा-हि०) नरसिंघा, तुरही, रनसिंगा
लाली, लालिमा, सुखी । " रतनारी अँखियाँ (दे०) एक बाजा। "बाजत निसान ढोल निरखि, खंजरीट, मृग, मीन'' क०वि० । भेरी रणसिंधा घने "..--. वि०। रतनालिया -वि० दे० (हि. रतनारा) रणस्तंभ- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) विजय के रतनारा, लाल, सुर्व । स्मारक रूप में बनाया गया स्तंभ। रलनियाँ- संज्ञा, पु. (दे०) एक प्रकार का रण-स्थल-संज्ञा, पु. यो० (सं०) रण भूमि, चावल । युद्ध-क्षेत्र । स्त्री०-रण-स्थाली।
रतमुहाँ-वि० दे० यौ० (हि. रत= रणहंस-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) एक वर्णिक लाल --- मह ) लाल या रक्तमुख वाला । छंद (पि०)।
स्त्रो०-रतमुहीं। रणांगण--संज्ञा, पु० यौ० (सं.) रण-प्रांगण रतवाही--संज्ञा, स्त्री० (दे०) सुरैतनी, रखेली। युद्ध क्षेत्र, रण-भूमि, रनाँगन (दे०)। अव्य-रातोंरात, रात ही रात । रणित-वि. (सं०) शब्दित, नादित, बजता रताना -अ० कि० दे० सं० रत) कामातुर हुमा । “रणित शृंग घंटावल्ली झरत दान होना, रत या प्रास्त होना। स० कि०मदनीर"-वि० श०।
किसी को अपनी भोर रत करना ।
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