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यामना
यामना - संज्ञा, पु० (दे० ) अंजन, सुरमा । यामल - संज्ञा, पु० (०) यमज, जुड़वाँ, एक तंत्र ग्रंथ ।
यामि - संज्ञा स्त्री० (सं०) धर्म - पत्नी । यामिक - संज्ञा, पु० (सं० ) पहरुथा यामिका - संज्ञा, खी० (सं०) रात | यामिनि यामिनी संज्ञा स्त्री० (सं०) रात, रात्रि, जामिनि, जामिनी (द०) । "चंद बिनु यामिनी त्यों कंत बिनु कामिनी है ' - स्फुट० ।
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याम्य - वि० (स० ) यम का, यम- संबन्धी, दक्षिण का । याम्योत्तर दिगंश संज्ञा, पु० यौ० (सं०) लंबांश, दिगंश दक्षिणोत्तर दिग्विभाग ( भू०, ख० ) ।
याम्योत्तर रेखा - संज्ञा स्त्री० यौ० (सं०) सुमेरु कुमेरु से होती हुई भूगोल के चारों ओर की कल्पित रेखा (भू० ) ! यार - संज्ञा, पु० ( फ़ा० ) मित्र, प्रिय दोस्त, उपपति, जार । यार वही दिलदार वही जो करार करें श्रौ करार न चूके - स्फु० । यौ० यार-दोस्त |
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- स्फु० /
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याराना - संज्ञा, ५० (का० ) मैत्री मित्रता, दोस्ती | वि० मित्र या मित्रता का सा । यारी - संज्ञा, स्त्री० (फा० ) मित्रता, दोस्ती, मैत्री, प्रेम, स्नेह | को न हरि-यारी करे ऐसी हरियारी मैं " - जि० । यावज्जीवन - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) जीवनभर, जन्मभर । " यावज्जीवन दास रहूँगा आप का --कुं० वि० ।
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यावद् यावत् प्रव्य० (सं०) जब लग जब तक, जौलों (०), जितने ।
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यावनी - वि० (सं०) यवन-संबंधी । वदेत् यावनीम् भाषाम् कंठे प्राणगतैरपि
यासु -- स० "यासु राज प्रिय प्रजा दुबारी
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( सं० ) जासु, जिसके,
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'रामा० ।
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युग
SAVALIERE
यास्क - संज्ञा, पु० (सं०) वैदिक निरुक्तकार एक प्रख्यात ऋषि ।
याहि-याही ** - सर्व ० (दे० ) इसे इसको, इसी । " याही डर गिरिजा गजानन को गाइ रही --पद्मा० ।
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युंजान - संज्ञा पु० (सं० ) श्रभ्यास करने वाला योगी गुंजान: योगमुत्तमम् " -गीता० ।
युक्त - वि० (सं० ) मिला या जुड़ा हुआ, संमिलित नियुक्त, संयुक्त, उचित, उपयुक्त, ज़ुक्त (दे०) युक्ताहार बिहाराभ्याम् "
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- मा० नि० ।
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युक्ता - संज्ञा, स्त्री० (सं० ) एक वर्णिक छंद जिसमें दो नग और एक मगण होता है (पिं० ) ।
युक्ति - संज्ञा, सो० (सं० ) कौशल, वाल, उपाय, चातुरी, तदवीर, ढंग, प्रथा, न्याय, रीति, नीति, मिलन, तर्क, उचित, विचार, ऊहा योग । जुगुति जुक्ति (दे० ) । " युक्ति विभीषण कत बताई ". - रामा० स्वमर्म, गोपनार्थ किसी को युक्ति या क्रिया के द्वारा वंचित करने की सूचना देने वाला एक थलंकार (काव्य०), स्वभावोक्ति (केश० ) । युक्तियुक्त - वि० (सं०) युक्ति-संगत, तर्कपुष्ट, वाजिब, ठीक, चातुरी पूर्ण । युगंधर - सज्ञा, पु० ( सं० ) हरिस. एक पहाड़ गाड़ी का वम । युग -- संज्ञा, पु० (सं०) युग्म, जोड़ा, मिथुन, जुश्रा, जुआर ( प्रान्ती ० ), पाँसे के खेल में दो गोटों का एक ही घर में साथ था जाना, बारह वर्ष का समय, काल, समय, काल का एक दीर्घ परिमाण (पुरा० ) युग चार हैं : सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि, चार की संख्या । जुग (दे०) । यौ० युगयुगांतर । ग्रह नत्र युग जोरि अरधकरि सोई बनत अब खात सुर" । सुहा" - युग युगबहुत दिनों तक । यौ० - युगधर्म
कूबर.
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समायानुसार व्यवहार |