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यज्ञ
१४५०
| অখামনি यज्ञ-संज्ञा, पु. (सं०) मख, याग, अार्यो के यति या विराम के उपयुक्त स्थान पर न हवन-पूजनादि का वैदिक कृत्य, जग्य (दे०)।। पड़ने का दोष (पि० )। यज्ञकर्ता-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) यज्ञ करने यती-संज्ञा, स्त्री० पु. ( सं० यति ) संन्यासी. वाला।
त्यागी, विरागी। यज्ञकुंड-संज्ञा, पु. यौ० (सं.) हवन का यतीम-संज्ञा, पु० (१०) अनाथ, माता. गड्ढा या वेदी।
पिता-रहित । “ यतीमे किना करदा कुरा यज्ञपति-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विष्णु दुरुस्त '.-सादी। भगवान, यज्ञकर्ता, यजमान :
यत्किचित्-क्रि० वि० यौ० (सं.) थोड़ा, यज्ञपत्नी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) यज्ञ की
जो कुछ, रंच, तनिक । स्त्री, दक्षिणा
यत्न-संज्ञा, पु० (सं०) उपाय, उद्योग, पज्ञपशु-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) यज्ञ में बलि
प्रयत्न, तदबीर, रक्षा, रूपादि २४ गुणों में
से एक गुण ( न्याय०), यतन, जतन दान करने का पशु, बलिपशु । यज्ञपात्र--संज्ञा, पु. यो० (स०) यज्ञ में काम
यत्नवान् ---वि० ( सं० यत्नवत् ) उपाय या श्राने वाले बरतन ।
यत्न करने वाला। यज्ञपुरुष-संज्ञा, पु. यो० (सं०) विष्णु भग
यत्र---क्रि० वि० (सं०) जहाँ, जिस स्थान पर । वान, यजमान ।
(विलो. तत्र)। यो०-यत्र-तत्र। यज्ञभूमि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० यज्ञस्थल,
यत्रतत्र-कि० वि० यौ० (सं०) जहाँ-तहाँ। यज्ञक्षेत्र, यज्ञ करने का स्थान ।
यथा--अव्य० (सं०) जैपा. जैसे, जिस प्रकार, यज्ञमंडप -- संज्ञा, पु. यौ० (सं.) यज्ञ के
जया (दे०)। ( विलो. तथा )। लो०लिये बनाया हुआ मंडप, यज्ञशाला ।
"यथा राजा तथा प्रजा।" यज्ञशाला- संज्ञा, स्त्री० यो० (सं.) यज्ञमंडप,
यथाकथंचित्--अव्य, यौ० (सं०) जिस यज्ञस्थल, यज्ञालय।
किसी प्रकार से, बड़े कष्ट या परिश्रम से । यज्ञसूत्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) यज्ञोपवीत,
यथाकाल--संज्ञा, पु० यौ० (स.) समयाजनेऊ (दे०)।
नुसार, उपयुक्त समय, यथा समयः । यज्ञस्थल-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) यज्ञस्थान,
यथाक्रम-क्रि० वि० यौ० (सं०) क्रमशः, यज्ञ-मंडप । स्त्री० यज्ञस्थली ।
क्रमानुसार । " यथा क्रमम् पुंसवनादिका यझेश-यज्ञेश्वर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) विष्णु
क्रिया--रघु०। भगवान ।
यथातथ-अव्य० (सं.) ज्यों-त्यों, जैसे-तैसे, यज्ञोपवीत- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) यज्ञसूत्र. जैसा हो वैसा ही।
जनेऊ। "त यज्ञ-उपवीत सुहाई"-रामा० । यथातथ्य-प्रव्य . य. ( सं० ) ज्यों का यत्-अप. (सं०) यदि, जो, जैसा । त्यों, जैसा हो, वैसा ही, जैसा चाहिये वैला। यति-ज्ञा, पु० (सं०)योगी, त्यागी, सन्यासी. "यथातथ्य आतिथ्य करि, विनय कीन्ह ब्रह्मचारी, छप्पय का ६६ वाँ भेद (पि०)।
करजोरि"--कविः । संज्ञ', स्त्री० ( सं० यती) छंदों के चरणों में
( स० यता ) छदा के चरणों में | यापूर्व-- अव्य. यो. ( सं० ) जैसा पहले विराम या विश्राम, विरति । " दंडयतिनकर था वैसा ही, ज्यों का त्यों । “यथा पूर्वमभेद"--रामा० ।
कल्पयत्"--श्रति। यतिधर्म-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) संन्यास । यथामति-अव्यः यौ० (सं०) बुद्धि के अनु. यतिभंगा-संज्ञा, पु० यौ० (०) छंद में | सार। "राम-चरित्र यथामति गाऊँ'-रामा ।
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