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देगाती
मृषात्व मृगाक्षी- वि० स्त्री० यौ० (सं०) हरिण के से है, एक औषधि जो अनेक रोगों में चलती मेत्रों वाली।
है संजीवनी ( वै० )। मृगाशन-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सिंह, बाघ। मृताशौच-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) वह छूत मृगिन, मृगिनी* --संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० जो किसी संबंधी के मरने से लगती है। मृगी) हरिणी।
मृत्तिका-संज्ञा, स्त्री० (सं०) मिट्टी, माटी, मृगी-संज्ञा, स्त्री० (२०) हरिणी, हिरनी, धूलि । करयप ऋषि की १० कन्यायों में से एक मृत्यंजय- संज्ञा, पु० (सं०) मृत्यु को जीतने बिससे मृग उत्पन्न हुए (पुरा० ), कस्तुरी, वाला, शिव जी। प्रिय नामक वर्ण वृत्त । पि०), अपस्मार रोग, मृत्यु--संज्ञा, स्त्री० (सं०) मरण, मौत, जीवात्मा मिरगी (दे०) । " मृगी देखि जनु दव चहुँ का देह-त्याग, यम । मोरा"-रामा० ।
मृत्युलोक-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) यमलोक, मतेंद्र, मृगेश-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सिंह। मर्त्यलोक, संसार । अन्य-वि० (सं०) अन्वेषणीय, अनुसंधान मृशा-वि० वि० दे० (सं० वृथा, मृषा) करने योग्य, दर्शन।
व्यर्थ, था, नाहक, झूठ । मृजा-संज्ञा, स्री० (सं०) मार्जन, शुद्ध करण। मृदंग---संज्ञा, पु० (सं०) ढोलक-जै पा पखावज मृडा, मृडानी--संज्ञा, स्त्री० (सं०) दुर्गा जी बाजा।" बाजत ताल, मृदंग, झाँझ, डफ, मृणाल, मृगाली-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कमल- मंजीरा, सहनाई"--कुं० वि० ला०। पाल, कमल का डंठल, भपीड़ा। “मदर्थ मृदव---संज्ञा, पु. (सं०) गुणों के साथ दोषों संदेश मृणालमंथरः"--नैष ।
की विरुद्ध ताबा विषमता दिखाना (नाव्य०)। मृणालिका- संज्ञा, स्रो० (सं०) कमलडंडी, मृदु - वि० (सं०) दयालु, नरम, कोमल, कमल नाल।
मुलायम, सुकुमार, नाजुक, मंद, सुनने में मृणालिनी-संज्ञा, स्त्री० (सं०) कमलिनी, जो कर्कश या अप्रिय न हो। स्रो०-मृद्वी। यह स्थान जहाँ कमल हों।
" बार बार मदु मुरति जोही" --रामा। मृत- वि० (सं०) मुर्दा, मरा हुआ। मृदुता---संज्ञा, स्त्री० (सं०) कोमलता, नम्रता, मृतकंबल-संज्ञा, पु० चौ० (सं०) कफ़न । सुकुमारता, मदता, मिठाई। मृतक-संज्ञा, पु० (सं.) शव, मरा हुआ मृदुल---वि० सं०) सुकुमार, नरम, कोमल, बीव. मुर्दा, निर्जीव ।
। कृपालु । संज्ञा स्त्री. मृदुलता। "मृदुल मृतककर्म-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) अंत्येष्टि मनोहर सुन्दर गाता''- रामा० । किया, प्रेत-कर्म । " पूरण वेद-विधान तें । मृनाल* - संज्ञा, पु० दे० ( सं० मृगाल ) मृतक-कर्म सब कीन्ह ".---रामा० । कमलनाल। " तो शिव-धनु मृनाल की मृतकधूम--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) राख, नाई -रामा० । भस्म, शवदाह का धूम।
मृन्मय---वि० सं०) मिट्टी से बना हुआ। मृतजीवनी- संज्ञा, सो• यौ० (सं०) एक सपा-अव्य० (सं०) व्यर्थ, झूठ । वि०विद्या जिसके द्वारा मुर्दा जिला दिया जाता असत्य, झूठ, व्यर्थ । " मृषा होहु मम साप
कृपाला।" " मषा मरहु जनि गाल बजाई' मृतसंजीवनी-संज्ञा, सो० यौ० (सं.) एक ---रामा० ही जिसके खाने से मुर्दा जीवित हो जाता मृषात्व--संज्ञा. पु० (सं०) मिथ्यात्व ।
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