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मूसलधार, मूसलाधार
मृगांक धानादि कूटने का काठ का हथियार, बलराम मृगनयनी-संज्ञा, खो० (सं०) मृगनैनी, मग. का एक अस्त्र । वि० ( दे० व्यंग ) मूर्ख । लोचनी । मूसलधार-मुसलाधार-क्रि० वि० (हि०) मृगनाथ—संज्ञा, पु० यौ० (सं०) सिंह, बाघ । मूसल जैसी मोटी धार से (वर्षा), मृगनाभि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कस्तूरी। मुसराधार (दे०)।
मृगनैनी - संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० मृगनयनी ) मूसला-संज्ञा, पु० दे० (हि० मूसल) शाखा- मृगनयनी, मगदृशी। “दे मगनैनी कि दे रहित सीधी और मोटी जड़, मुसरा (दे०)। मृगछाला"- स्फुट । ( विलो०-भाखरा।)
मृगपति-संज्ञा, पु. (सं०) सिंह, मृगराज । मूसली-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मुशली) एक मृगभद्र-संज्ञा, पु० (सं०) एक जाति का पौधा जिसकी जड़ औषधि के काम आती है। हाथी। मूसा-संज्ञा, पु० (इबरानी) .खुदा का नूर मृगमद-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कस्तूरी, देखने वाले, यहूदियों के धर्म-गुरु या मृगम्मद (दे०) । " मृगमद बिंद घारु चटक पैग़म्बर, चूहा, मूस।
दुचंद भयो"-रना। मूसाकानी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० मूषाकर्णी, मृगमरीचिका - संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) एक लता जो औषधि के काम आती है।
मृगतृष्णा । मृग-संज्ञा, पु. (सं०) पशु, जंगली पशु.
मृगभित्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मृगसखा, हिरन, हाथियों की एक जाति, अगहन या चंद्रमा, मृगमीत (दे०)। मार्गशीर्ष मास, मकर राशे, मृगशिरा मृगमद-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कस्तूरी। नक्षत्र ( ज्यो०), कस्तूरी की नाभि, चार मुगया--संज्ञा, पु० (सं०) आखेट, शिकार । प्रकार के पुरुषों में से एक (काम०) पिरिग, "मृगया न विगीयते नृपैरपि धर्मागममर्म मिरगा (दे०)। सी० --मृगी । “रामहि
पारगैः । नैष । " वन मृगया नित खेलन देखि चला मृग भाजी"--रामा
जाही'.- रामा०। मृगचर्म--संज्ञा, पु. यो. (१०) हिरन का
मृगराज-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) सिंह। चमड़ा, अजिन, मृग-छाला।
"ठवनि जुवा मृगराज लजाये''-रामा० । मृगहाला-संज्ञा, स्त्री० द० यो० ( सं० मृगशाला ) भृगचर्म ( इसे पवित्र मानते हैं )।
मृगरोचन----संज्ञा, पु० यौ० (सं०) कस्तूरी । "चारु जनेउ-माल, मृगछाला --रामा० ।
मृगलांछन ... संज्ञा, पु. यौ० (सं०) चंद्रमा । मृगजल-संज्ञा, पु. यौ० सं०) मृगतृष्णा
" अंकाधिरोपित मृगश्चंद्रमा मृगलांछनः"
--माघ। की लहरें । " मृगजल निवि मरहु कत. धाई"-रामा०।
मृगलोचना, भृगलोचनी-वि० स्त्री० (सं०) भृगतृपा-मृगतृष्णा-संज्ञा, सी० यौ० सं०) मृगनयनी, हरिण के से नेत्रों वाली स्त्री। मृगजल, मृगमरीचिका, तेज़ धूप के कारण ___'मृगलोचनि तुम भीरु सुभाये"-रामा। प्रायः उसर मैदानों में जल को लहरों की मृगवारि-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मृगतृष्णा प्रतीति या भ्राँति।
का जल, मृगनीर । मृगदाव- संज्ञा, पु० यौ० (सं० मृग -- दाव - मृगशिरा, मृगशीर्ष-संज्ञा, पु० (सं०) २७ वन)काशी के समीप सारनाथ का पुराना नाम। नक्षत्रों में से श्वाँ नक्षत्र (ज्यो०)। मृगधर-संज्ञा, पु० (सं०) चंद्रमा। मृगांक-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) चन्द्रमा, मृगन-संज्ञा, पु० (सं०) खोज, तलाश । एक रस (वैद्य०)।
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