SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९४२२ मुताना मुताना-- स० क्रि० दे० (सं० सूत्र ) मूतने में प्रवृत्त करना, मुतावना (दे० ) । प्रे० रूपमुतवाना । मुतालबा - संज्ञा, पु० ( ० ) जितना धन पाना उचित हो, शेष रुपया, मता नवा (दे० ) । मुतास - संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० मूतना ) मृतने की इच्छा । वि० (दे०) मुनासा | मुताह--- संज्ञा, पु० दे० ( अ० मुला ) एक प्रकार का अस्थायी व्याह (मुसल० ) । सुतिलाइ संज्ञा, १० दे० यौ० ( हि० मोती + लड्डु ) मोतीचूर का लड्डू.. मुतीय - वि० ( फा० ) प्रसन्न या अनुरक्त । मुतेहरा संज्ञा, पु० दे० ( हि० मोती + हार ) कलाई का एक गहना । मुद- -संज्ञा, पु० (सं०) श्रानंद, हर्ष, मोद | "बहि लगनि मुद्र-मंगलकारी " - रामा० । मुदगर - संज्ञा, पु० दे० ( हि० मुगदर ) मुगदर | | 1 मुदर्रिस - संज्ञा, पु० ( ० ) अध्यापक संज्ञा, स्त्री० सुदरिसी । मुदा - श्रव्य० दे० ( ० मुद्दामा - अमि प्राय ) ता यह है कि, लेकिन. परंतु, मगर | संज्ञा, खो० (सं०) श्रानंद, हर्ष | मुदाम - क्रि० वि० ( फा० ) लगातार, सदैव. सदा, निरंतर, ठीक ठीक " बजा ही किया "सौदा | कोसे रेहलत मुद्दाम मुदामी - वि० ( फा० ) जो सदा होता रहा करे | मुद्रायंत्र SARE CHE has मुदगल संज्ञा, पु० (०) एक उपनिषद | मुद्रा - संज्ञा, पु० (०) तात्पर्य, उद्देश्य : जुदाई - संज्ञा, पु० ( प्र०) बादी, दावादार, कि विरोधी, शत्रु बैरी । खो० मुद्दइया ! लेकर क्या करें ख़त मुद्दई से मुद्दा समझें " . 4: १५ मुदित - वि० (सं०) प्रसन्न, खुश मुदित महीपति मंदिर थाये रामा० । मुदिता - संज्ञा, खो० (सं०) परकीया के अंतर्गत एक नायिका | वि० स्त्री० (सं०) हर्षित | मुदिर - संज्ञा, पु० (सं०) मेव, वन, बादल | मुदी - संज्ञा, स्त्री० (सं०) जुन्हाई चाँदनी । मुग- संज्ञा, पु० (सं०) मूँग, श्रम | संज्ञा, स्त्री० (सं०) मुद्दाली भूँग की दाल (प्राचीन) । मुद्गर - संज्ञा, पु० (सं०) एक अत्र, मुगदर, मुदगर (दे० ) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जौक | सुदन संज्ञा, स्त्री० (अ० ) अवधि अरसा. मिश्रा, बहुत दिन । विती । मुदायह मुद्दालेह - संज्ञा, पु० (प्र०) जिस पर दावा किया जाये प्रतिवादी । मुद्र- वि० दे० (सं० मुग्ध ) मुग्ध, मूर्ख | मुना -संज्ञा स्त्री० (दे०) खिमिक जाने वाली रस्पी की गाँठ | मुद्रक - संज्ञा, पु० (सं०) छापने वाला ! मुद्रा - संज्ञा, पु० (सं०) छपाई, छापना | वि०-मुद्रणोय यौद्रणयंत्र अपने की कल, मुद्रणकला । मुद्रांकित - वि० यौ० (सं० ) मोहर किया हुआ, शरीर पर तप्त लोहे से दागकर छपे विष्णु के श्रायुध-चिह्न वैष्णव ) । मुदा पर लिखा । मुद्रा संज्ञा, स्त्री० (सं० मोहर, छाप ल्ला, मुद्रिका, रुपया, अशरफ़ी श्रादि का, गोरख पंथियों का कर्णाभूषण, बैठने, खड़े होने, लेटने आदि का कोई ढंग, हाथ, मुख नेवादि की स्थिति विशेष सुख की आकृति या चेष्टा, हठ योग में विशेष प्रकार के अंगविन्यास, ये पाँच मुद्रायें हैं:- खेचरी, भूचरी, चाचरी, गोवरी और उन्मनी, एक अलंकार जिसमें प्रकृत या प्रस्तुत अर्थ के अतिरिक्त कुछ और भी भिवा संज्ञादि शब्द हों ( च० पी०, वैएवों के शरीरों पर दंगे हुए विष्णु के श्रायुधचिह्न | मुद्राच्व-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) एक शास्त्र जिसके आधार पर पुराने सिक्कों की सहायता से ऐतिहासिक बात ज्ञात की जाती हैं । मुद्रायंत्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) छापने या मुद्रण करने का यंत्र, छापे की कल. मुद्रणयंत्र | For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy