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मुद्राविज्ञान
मुद्राविज्ञान- संज्ञा, पु० (सं० ) एक शास्त्र जिसके अनुसार पुराने सिक्कों की सहायता से ऐतिहासिक बातें ज्ञात की जाती हैं । मुद्राशास्त्र - संज्ञा. पु० (सं०) मुद्रा विज्ञान | मुद्रिक - संज्ञा, स्रो० दे० (सं० मुद्रिका) अँगूठी, मदरी ।
मुद्रिका - संज्ञा, स्त्री० [सं०] अँगूठी, मं । "तब देखी मुद्रिका मनोहर " रामा० । पवित्री, पैंती (दे०) । पितृ कार्य में कुश की art अनामिका में पहनने की अँगूठी, मुद्रा, सिका, रुपया ।
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मुद्रित - वि० (सं०) छप: हुथा, अँकित या मुद्रण किया हुआ बंद, मुँदा या ढका हुआ | मुधा- क्रि० वि० (सं) वृथा, व्यर्थ । दि०पर्थ का, निरर्थक, निष्प्रयोजन, रूठ, मिथ्या, अत | संज्ञा, पु० श्रापत्य, मिध्या । मुनक्का - पंज्ञा, ५० ( अ० मि० सं० मृद्रीश ) द्वाज्ञा, दाख, एक तरह की बड़ी किमिसमुको सूखा बड़ा अँगूर |
मुनादी -- संज्ञा, स्त्री० (०) ढिढोरा, डुग्गी, वह घोषणा जो बोल यादि बजाकर सारे नगर में की जाती है
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मुनाफा -संज्ञा, पु० (०) लाभ, कायदा, नफ़ा ।
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मुबारकबाद
मुनीब ) सहायक, मददगार, सेठ साहूकारों के हिसाब किताब का लेखक या मुहर्रिर । मुनींद्र - संज्ञा, पु० यौ० (सं०) मुनिंद (दे० ) मुनिवर, श्रेष्ठ सुनि |
मुनोश, मुनीश्वर -संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रेष्ठमुनि पुनिराज सुनिनाथ, बुद्धदेव, विष्णु या नारायण मुनीस, पुनीसुर (दे० ) । ग्रहो सुनीश महाभट मानी -
रामा० ।
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मुनीसा पंज्ञा, पु० (दे०) पुनीश (दे० ) । मुन्ना, पुत्र झा, पु० (दे० ) प्रिय, प्यारा, छोटों के लिये प्रेम-सूचक शब्द | स्रो०- मुन्नी । मुफ़लिस - वि० (२०) बंगाल, निर्धन, दरिद्र, गरीब संज्ञा स्त्री० - मुफलिसी मुफ़स्सल- वि० (०) सविवरण, व्योरेवार, सविस्तार, विस्तृत | संज्ञा, पु० किसी केंद्रस्थ नगर के चारों ओर के ग्रामादि स्थान | वि० (प्र०) लाभप्रद, लाभकारी, फायदेमंद
सुफ्त - वि० (०) बिना मूल्य या दाम का, सेव का फल (दे० ) । " मुफ्त में किसको मिला है बदरका गालिब | विनुफ्ती । यौ० - मुफ्तखोर – जो दूसरों के धन का बिना कुछ किये भोग करे ( खाये) | संज्ञा, खो०- मुक्तखोरी। मुहा० - मुफ्त में बेदाम, बिना मूल्य, नाहक, व्यर्थ, बिना
मुनारा | संज्ञा, ५० दे० (अ० मीनार ) मीनार ... मुनासिव - वि० ( ० ) वाजिब, उचित, योग्य, उपयुक्त, समीचीन ।
मतलब ।
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मुफ्ती संधा. पु० ( प्र०) मुसलमान धर्मशाखी वि० ( ० मुक्त ई-प्रत्य० ) बिना दाम या मूल्य का संत का । मुबतिला वि० (०) फँसा हुआ ।
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"" रामाः ।
केवल ।
मुनि - संज्ञा, पु० (सं०) तपस्वी, त्यागी, सात की संख्या, धर्म्म, ब्रह्म, सत्यासस्य यादि का पूर्ण विचार करने वाला पुरुष ! जो तुम भवते मुनि की ना मुनिराय, सुनिराया - संज्ञा, ५० यो० (दे० ) | मुलग - वि० (०) रुपये की सख्या के मुनिराज (स० ) ! पूर्व आने वाला एक विशेषण शब्द, मुनियाँ - संज्ञा, स्रो० (दे०) लाल नामक पक्षी मुबारक - वे० (अ०) मंगलप्रद, शुभ, बरकी मादा । कत वाला, नेक। मुहा० - मुबारक होना - अच्छा होना शुभ हो, फलना : मुबारकबाद संज्ञा, पु० यौ० ( ० मुबारक + बाद फा० ) बधाई, धन्यबाद, किसी शुभ
मुनिंद प्रज्ञा, पु० यौ० (दे० ) नान्ड (सं०) "गावत सुनिंद गुनगन छनदा रहें "- रता० । मुनीब, सुनोम (दे० ) संज्ञा, पु० ( अ०
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