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महानाटक
महाबोधि महानाटक-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) दश महापातकिन ) महा पाप करने वाला, जैसेअंकों वाला नाटक जिसमें नाटक के संपूर्ण ब्रह्महत्यारा । लक्षण हों ( नाव्य०)।
| महापात्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रेष्ठ बाहाण, महानाभ-संज्ञा, पु. यौ० (सं० ) एक मंत्र (प्राचीन ) मृतक कर्म में दान लेने योग्य जिससे शत्रु के सब हथियार व्यर्थ हो जाते ब्राह्मण, महाब्राह्मण, कट्टहा (ग्रा.)। हैं ( तंत्र.)।
सहापुरुष-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) श्रेष्ठ पुरुष, महानाम-यौ० वि०, संज्ञा, पु. (सं०) महानुभाव, धूर्त, चालाक (व्यंग्य) महात्मा यश, अपयश, यशस्वी, निदिति ।
नारायण । महानिद्रा-संज्ञा, स्त्री० यौ० । सं०) मरण, महाप्रभु-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) वैष्णव मृत्यु ।
संप्रदाय के श्रेष्ठ पुरुषों की एक पदवी, जैसे महानिधान--संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) शोधा चैतन्य महाप्रभु, वल्लभ महाप्रभु । संज्ञा, पारा जिसे बावन तोले पाव रत्ती कहते हैं, स्री. महाप्रभुता-बड़ा ऐश्वर्य । बुभुक्षित धातु-भेदी पारा, मरण, मृत्यु। प्रहाप्रलय-संज्ञा, पु. यो. (सं०) सबसे महानिर्वाण-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) परम- बड़ा प्रलय जब प्रकृति और पुरुष या अनन्त मोक्ष, परिनिर्वाण जिसके अधिकारी केवल
जल के अतिरिक्त सब का विनाश हो बुद्ध और बहन माने जाते हैं. (बौद्ध, जैन) जाता है । महामुक्ति या मोक्ष।
महाप्रसाद-संज्ञा, पु. ( सं० ) नारायण महानिशा--संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) प्रलय
या देवातानों का प्रसाद, जगन्नाथ जी पर की रात्रि, काल रात्रि ।
चढ़ा हुआ भात, मांस ( व्यंग)। महानुभाव-संज्ञा, पु. ( सं०) महाशय,
महाप्रस्थान-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) शरीर.
त्याग की इच्छा से हिमालय की ओर जाना, महापुरुष, महात्मा, माननीय या प्रादरणीय
मरण, मृत्यु, शरीर त्याग, देहान्त । पुरुष । " महानुभाव महान अनुग्रह हम
महापागा-संज्ञा, पु. यो. (सं० ) अधिक
प्रेरित प्राण-वायु के द्वारा उच्चरित होने वाले महानुभावता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०)
वर्ण, हिन्दी वर्णमाला में प्रत्येक वर्ग के दूसरे श्रेष्ठता। " कहो कहाँ न रावरी महानु
और चौथे वर्ण, शेष पहले और तीसरे भावता रही"-सरस ।
अल्पप्राण हैं। महापथ-संज्ञा, पु० यौ० (०) राजमार्ग,
शा, पु० पा. (म० ) राजमाग, महाप्रयागा---संज्ञा, पु. यौ) (सं० ) महासड़क, पक्की सड़क, मृत्यु ।
प्रस्थान । महापद्म-संज्ञा, पु. ( सं० ) नौ निधियों में महाबल-- वि० यौ० (सं०) अत्यंत बली से एक निधि, (यौ०) स्वेत कमल, सौ पद्म या पराक्रमी । " जयत्यतिबली रागः की संख्या (गणि.)।
लघमणश्च महाबलः "---वाल्मी । महापद्मक-संज्ञा, पु. ( सं०) एक साँप, महावली-वि० चौ. (सं० महाबलिन् ) एक निधि ।
अत्यंतवली। महापातक, महापाप----संज्ञा, पु० यौ० (सं०) महाबाहु-वि० यौ० ( सं०) पाजानु लंबी बड़ामारीपाप, जैसे--गुरु-पत्नी गमन,ब्रह्महत्या, भुजाओं वाला, प्राजानुबाहु, बलवान । चोरी, मद्यपान तथा इन पापियों का संग। महाबोधि--संज्ञा, पु. यौ० (सं०) बुद्ध महापातकी-वि• संज्ञा, १० यौ० (सं० भगवान ।
पै कीन्ही"- ना।
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