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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir PREETEGMAYABIR o mamaARDEESIRames मनहरण, मनहरन १३८ मनुष, मनुस मनहरणा, मनहरन - संज्ञा, पु. (हि०) मन दर्शनीय, सुन्दर । " वरनौ कहा देम के हरने का भाव, १५ वर्णो का एक मनियारा'- पद्मा० । वर्णिक छंद भ्रमरावली (पिं०)। वि० - | मनिहार- संज्ञा, पु० दे० (सं० मणिकार ) मनोहर, सुन्दर । चुरिहारा, चूड़ी बेचने वाला । सी. मनहार, मनहारि-वि० दे० (सं० मनोहारी)। मनिहारिन । संज्ञा, पु० यौ० (दे०) मणियों मनोहारी, सुन्दर, मनहारी । स्त्री० ---- का हार । " मनिहार कहा मनिहार को मनहारिनी। जाने "--कु० वि० जा०।। मनहुँ, मनौ--अव्य० दे० ( हि० मानों ) मानहारिन, मनिहारी-- संज्ञा, सी० दे० मानौ यथा । "नूतन किसलय मनहुँ ( हि० मनिहारिन ) शरिहारिन । कृशानू"---रामा० । मनो -- संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० मान) घमंड। मनहूस---वि० [अ०) अशुभ, बुरा, अशकुन, अप्रियदर्शन । सज्ञा, स्त्री० सनहसी, संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं. मणि) मणि, रत्न, बल. वीर्य । संज्ञा, पु.० (अं०) धन । मनहसियत । मना, मने-वि० (१०) वर्जित, वारण मनीषा-संज्ञा, स्त्री० (सं.) बुद्धि, ज्ञान, किया, या रोका हश्रा, निषेध. अनुचित । मति, समझ । मनाक, मनाग---वि० दे० ( सं० मनाक्- मनीषि, मनीपी-वि० (सं० मनीषिन् ) मनावा ) थोड़ा, किंचित्, रंच, चक। ज्ञानी, पंडित. मेधावी. बुद्धिमान विचारमनाना-स० क्रि० ( हि० मानना ) अंगीकार चतुर । " मरम मनीषी जानत अहहूँ".-- करना, स्वीकार कराना, रूठे को प्रसन्न रामा० । कविमनीपी परिभूः स्वयंभूः " --- करना, देवता से मनोरथ सिद्धि की प्रार्थना वेद । करना, स्तवन करना । “ मनहीं मन मनाय मन----सज्ञा, 'पु० (सं.) ब्रह्मा के चौदह लड़के नकुलानी"-- रामा० । जो मनुष्यों के मूल पुरुष माने गये हैं, । मनार्य-वि० दे० (सं० मनोऽर्थ) विचारार्थ ।। स्वायंभू स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, मनावना ---- संज्ञा, पु. ( हि० ननाना ) रुष्ट चाक्षुष, वैवस्वत, पाणि, दक्ष पाणि, के प्रसन्न करने का भाव या कार्य . ब्रह्म नावर्णि, धर्माणि, रुद्रपाणि, मनाही-- संज्ञा, स्त्री० ( हि० मना ) न करने देवमाणि, इन्द्रयावणि, चौदह की संख्या. का हुक्म या श्राज्ञा, निषेध, लोक, वारण, मन या अंतःकरण, विष्णु, वैवस्वतमनु । अवरोध । मनू (दे०) "मनुष्य वाचा मनुवंशकेतुम्" मानि--संज्ञा, स्त्री० (दे०) मणि (सं०) रन । -रघु० । * अव्य० दे० (हि. मानना) मनिधर* -- संज्ञा, पु० दे० (सं० मणिधर ) मानो, मानहु ,मनों। साँप, सर्प, नाग। मनिमाला---संज्ञा, पु० यौ० (दे०) मणि मनुआँ ----सज्ञा, पृ० दे० (हि. मन ) माला। मन, चित्त । “मेरा रा मनुाँ बंदे कैसे मनिया----संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं०) माणिक्य ) एकै होयरी" कवी० । संज्ञा, पु० द० (हि. मनका. गुरिया, माला का दाना, माला, मानव ) मनुष्य । कंठी । “गुहि गुहि देते नंद जमोदा तनिक मनुज, मानुज--- संज्ञा, पु० (सं०) श्रादमी, काँच की मनिया''-भु० ।। मनुष्य । संज्ञा, स्त्री०--मनुजाई । “नेता राम मनियार*--वि० दे० (हि. मणि मनुज अवतारा" नामा० । भार---प्रत्य०) चमकीला, उज्वल, सुहावना, मनुष, मनुस - संज्ञा, पु० दे० ( सं० मनुष्य) For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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