SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनकना मनमोदक मनकना-- अ० कि० दे० (अनु.) हिलना, मनन संज्ञा, पु. (स.) सोचना, चिंतन. डोलना। ___ भली भाँति पढ़ना, गूदाध्ययन । मनकरा* --वि० दे० (हि० मणि -- कर ) मननशीन -वि० (सं.) विचारवान । संज्ञा, चमकदार। स्त्री० मननशीलता। मनका ---- संज्ञा, पु० दे० (सं० मणिका ) मननाना अ० कि.६० (अनु०) गुजारना । माला की गुरिया या दाना । संक्षा, पु० ( सं० । मनवांछित-वि० दे० यौ० सं० मनोवांछित) मन्यका ) गले के पीछे की हड्डी जो रीढ़ से | मनचाहा, इच्छानुकूल, अभीट,चितचाहा । मिली रहती है। “ मन का मन का फेर'' - .. मनभाया --- वि० यौ० दे० ( हि० मनभाना ) कबी०। मुहा०-धनका दलना या मनोनुकूल, जो पसंद थावे, अभीष्ट स्त्री० ढलकना-मरने के समय गरदन टेढ़ी हो मनमायी। जाना। मनभावना-वि. यो. । हि. मनभाना) मनकामना, मनोकामना ज्ञा, स्त्री० ___ जो अच्छा लगे, प्रिय, प्यारा । स्त्री. मनयौ० (सं० मनः । कामना ) इच्छा : " पूजै | भावती । " देहुँ तोहि मनभावत आली" मन कामना तुम्हारी" ---रामा० । - रामा० मनकला--वि० खी० अ०) 'वर, जंगम, मनभावन-वि• यो० ६० ( हि० मनभाना ) अस्थावर (विलो० स्थावर, गैर अनकला) मन का अच्छा लगन वाला, प्रिय, प्रमी । यो० --जायदाद मनाला . वर संपत्ति। स्त्री. मनभावनी । गैरमनकला-स्थिर संपत्ति, स्थायी (विलो०)। मनपत* ---वि० दे० (सं० मदमत्त ) मनगढ़----- वि० यौ० दे० (हि. नगढ़ना) मतवाला, मदोन्मत्त, अहंकारी, घमंडी। कपोल-कल्पित, वास्तविक पता होन । मनति - वि० यौ० (हि. मन- मति) सज्ञा, स्त्री-निरी या कोरी कल्पना। स्वेच्छाचारी, अपने मन का काम करने मनचला-वि० यौ० दे० ( हि० मनचलना ) वाला,स्वतंत्र निडर, धीर, साहसी, रसिक । स्त्री. मनमथ--संज्ञा, पु. द० (सं० मन्मथ) कामदेव, मदन, मनोज । मनचली। मनचाहा - वि० यौ० दे० (हे. मन - मनमानना-- वि० यो० (हि० मन | मानना) मनमाना । चाहना इच्छित, चाहा हुआ, वितचाहा। मनमाना - वि० यौ० (हि. मन मानना) स्त्री० मनचाही। यथेच्छ, दिल पसंद, जो मन को भावे । सी. मनचिता, मनचीता--वि० यौ० दे० मनमानी । मुहा० ---- नमाना घर (हि० मन । चेतना) चितचीता चितचेता जाना जो मन श्रावै करना, स्वेच्छाचार । मन चाहा, मन-सोचा । स्त्री. र.नचेती। मनमुखी-वि० यौ० ( हि० मन । मुख्य ) मनचार ---वि० (हि०) दिल चुरानेवाला स्वेच्छाचारी, स्वेच्छानुगामी। चित्तचोर । 'तीरथ गये तो तीन जन चित नमुटाव, मनमोटाव- संज्ञा, पु० यौ. चंचल मन चोर” कबी०। हि० मन- मोटाव ) वैमनस्य, मन में भेद मनजात-संज्ञा, पु. (सं०) कामदेव, पड़ना, विरोध भाव। मनसिज मनोज । “मननत किरात नभोदक-संज्ञा, पु० यौ० ( हि० मन । निपात किये"-- रामा मोदक ) मन का लाइ , प्रसन्नतार्थ कल्पित मनत, .नता-संज्ञा, पु० (दे०) मनौती। और असम्भव बात। मन-मोदक नहिं भूख मानता, मान्ता (प्रा०)। बुताई".--रामा० । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy