________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मध्यतायिनी
मन मध्यतायिनी- संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक “जहाँ बराबर बरनत लाज मनोज, मध्या उपनिपद् ।
तहहिं बखानत सुकवि समोज"-रही । मध्यदिवस--संज्ञा, पु० यौ० सं०) दोपहर । तीन वर्णो का एक छंद या वृत्त (पिं०) ।
मध्य दिवस जिमि ससि सोईई' रामा० । मध्यान्ह, मध्याह--संज्ञा, पु० (सं० मध्याह्न) मध्यदेश-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) मध्य भारत, ठीक दोपहर मध्यदिव। सी० पी०, कटि, कमर । "मध्यदेश केसरी मध्ये ... कि. वि. द. (सं० मद्ध) मद्धे, सुगज गति भाई है" । राम० । हिमालय विषय या सम्बंध में। से दक्षिण, विंध्याचल से उत्तर, कुरुक्षेत्र से मध्वारि---संज्ञा, पु० यौ० सं० मधु-अरि ) पूर्व और प्रयाग से पश्चिम का भारत । विष्णु, कृष्ण । मध्यग-वि. (सं०) बीचोबीच का, न मधाचार्य-संज्ञा, 'पु० यौ० सं०) वैष्णव मत बहुत बड़ा न छोटा, औसत दर्जे का, वीच के एक विख्यात प्राचार्य और मात्र का संज्ञा, पु० -- संगीत के स्वरों में से संप्रदाय के प्रवर्तक (१२वीं शताब्दी)। चौथा स्वर, नायिका के क्रोध दिखाने पर मनःशिल-संज्ञा, पु. (सं०) मैनपिल । धनुराग प्रकट न करने वाला उपपति सिंदूर दैतेन्द्र मनः शिलानाम् "- वैद्य० । (काव्य०)।
| मन-संज्ञा, पु० (सं० मनस् ) विचार या मध्यमपद लोपी-संज्ञा, पु. यौ० (सं०) ___ मनन-शक्ति, जीवों की विचार, इच्छा, लुप्तपद समास, वह समाज जिसमें दो
वेदना, संकल्पादि करने वाली शक्ति, अन्तःपदों के बीच संबंध-सूचक पद का लोप करण के चार भागों में से संकल्प-विकल्प हो जाता है (व्या०)।
के होने का भाग, अन्तःकरण चित्त, मध्यम पुरुष--- संज्ञा, पु. यौ० (सं०) वह पुरुष दिल, इगदा, विचार इच्छा ! संज्ञा, पु० दे० जिससे बातचीत की जावे (व्या०)। ( सं० मगिा ) मणि, रन । मुहा०--किसी मध्यभाग--संज्ञा, पु. (सं०) बीच का सेगन पटकनाया उत्नझना,लगना--. हिस्सा।
प्रेमानुराग या प्रीति-स्नेह होना । एन आना मध्यमा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) बीच की अंगुली, (भाना)-प्रेम होना, परन्द आना, रुचना, वह खंडित-नायिका जो अपने पति के प्रेम
इरादा होना । इन (दिल) दृटना-- या अपराध पर उसका मान या अपमान हताश होना. साइम न रहना । सन करे (काव्य०)।
गिरना-----उत्साह या हौसला न रहना, मध्यलोक-संज्ञा, पु० (सं०) मर्त्य लोक, उन्माता या उदासीनता थाना । मन पृथ्वी, भूलोक।
चलना - इच्छा होना । मन चुराना.... मध्यवर्ती-वि० (सं०) बीच में रहनेवाला,
मोहित या मुग्ध करना, वशीभूत करना । बीच का, बिचवानी (ग्रा० मध्यस्थ ।
मन बढ़ना-उत्साह या साइस बढ़ना । मध्यस्थ----संज्ञा, पु० सं०) तटस्थ, बीच में
मन करना-इरादा या इच्छा करना। रहकर विवाद निपटाने वाला, बीच में रहने ! (किसी का) मन बूझना-मन की थाह वाला । संज्ञा, स्त्री० (सं०) मध्यस्थता।
लेना, हृदय की बात जानना । मन (दिल) मध्यस्थल-संज्ञा, पु. (सं०) कमर, बीच हरा होना-चित्त प्रसन्न होना । मन का स्थान ।
मुरझाना-चित्त का उदास होना, मध्या--संज्ञा, स्त्री० (सं०) वह नायिका हतोत्साह या हताश होना। मन के लड़ जिसमें लजा और काम सम रूप में हों। (मन मोदक) खाना-कल्पित या झूठी
For Private and Personal Use Only