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भौंराना-भौरियाना
भ्रम भौंराना-भौरियाना--क्रि० स० दे० ( सं० । भौतिक विद्या--संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) भ्रमणा ) घुमाना, प्रदक्षिण ( परिक्रमा) भूतों के बुलाने या हटाने की विद्या, सांसा. कराना, व्याह की भाँवर दिलाना, व्याहना। रिक पदार्थों के ज्ञान का शास्त्र, भौतिक कि० अ० दे० घूमना, फिरना।
पदार्थ-विज्ञान। भौरी-संज्ञा, स्री. द. (सं० भ्रमगा ) भौरे भौतिकसृष्टि-ज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) साँसाकी स्त्री, भाँवर, व्याह में वर-कन्या की रिक उपज, जैसे ८ प्रकार की देवयोनि, पाँच अग्नि-परिक्रमा, पानी का चक्कर, आवर्त प्रकार की तिर्यग योनि और मनुष्य योनि, पशुओं के शरीर में बालों का घुमाय, जो इन सब का नरम ह या समष्टि । स्थान-विचार से गुण-दोप-सूचक है, वाटी मीन*---संज्ञा. पु. दे० (सं० भवन ) घर, रोटी, अंगा कड़ी, अंकारी।
| मकान । “मीन तेरे आई री"। "प्रीतम के भौंह-संज्ञा, स्त्री० दे० ( सं० भ्रू) भी, भृकुटी, गौन ते सहात है न भौन"-- स्फु० ।
आँख के ऊपर की हड्डी पर के बाल। माना*.अ. क्रि० दे० (सं० भ्रमणा) मुहा०-भौंह चढ़ाना, नरेरना या तानना
धूमना, भवना (ग्रा.)। ----कुपित या कुद्ध होना, रुष्ट होना, त्योरी
भीम -- वि० (२०) भूमि का, भुमि-संबंधी, चदाना, बिगड़ना। मोह जोहना-खुशामद
भूमि से उत्पन्न, भू-विकार । संज्ञा, पु० कुज, करना। भौ*-संज्ञा, पु० द० ( मं० भव ) जगत्,
मंगल । भौम्पमाधिः-भा० द० । “ परै
मूर्ति में भौम पत्नी विनासै"- स्फुट । संसार । संज्ञा, पु० दे० सं० भय) डर, भय । मौगिया--संज्ञा, पु० दे० ( हि० भोग !
भौमवार-----संढा, पु. यौ० (सं०) मंगलवार। इया-प्रत्य० ) संसार के सुख भोगने वाला।
मीरिक-- संज्ञ, ५ . (सं०) ज़मीदार । वि. भौगोलिक --- वि० (सं.) भुगोल-संबंधी।
भूमि-संबंधी, भूमिका। भौचक --वि० दे० यौ० (हि. भय : चकित)
भौर --- संज्ञा, ४० दे० ( सं० भ्रमर ) भौंरा,
घोड़ों का एक भेद, भंवर, फूस की भाग । अचंभित, चकराया या चकपकाया हुश्रा, हकका बक्का, स्तंभित ।
भौलिया--- संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० बहुला) भौज-मोजाई ...-संज्ञा, स्त्री. द० । सं० भ्रातृ,
एक छायादार ना! जाया ) भाभी, भावज भाजी, भाई की स्त्री,
भौसा, मउसा--संज्ञा, पु० (दे०) भीड़भाड़, भ्रातृ-वधु।
जनसमूह, गड़बड़, शोरगुल, गड़बड़ी। भौजाल प्रज्ञा, पु० द. यो. (सं० भवजाल) भ्रंश-संज्ञा, पु. ( सं० ) नीचे गिरना, ध्वंस, झमेला, झंझट, भवजाल, माँसारिक बंधन, नाश, पतन, भागना । वि० नष्ट-भ्रष्ट । जन्म मरण का झगड़ा। वि. भौजानी। भ्रकुटि---- संज्ञा, स्त्री. ( सं०) भृकुटी, भौंह । भौज्य-संज्ञा, पु० (सं० ) प्रजा के पालन । "भ्रकुटि-विलापन चावत ताहो"-- रामा० । का विचार छोड़ कर जो राज्य केवल सुख | भ्रम -संज्ञा, पु. ( सं० ) उलटा-पलटा भोग के लिये किया जावे।
समझना, मियाज्ञान, भ्रांति, धोखा, संदेह, भौतिक -- वि० (सं० ) पंच भूत-संबंधी संशय । “ तेहि भ्रम ते नहिं मारेउँ सोऊ" पाँच महाभूतों से बना हुआ, पार्थिव, ----- रामा० । मस्तिष्क-विकार जिससे चक्कर भूत योनि का, सांपारिक, शारीरिक, भाते हैं (रोग), मूछा, भ्रमण । “पैत्तिके ऐहिक दुख । " दैहिक दैविक भौतिक भ्रमरेव च "-:मा० नि । संज्ञा, पु० दे० तापा"- रामा
(सं० सम्भ्रम प्रतिष्ठा, सम्मान । भा० श० को०-१६६
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