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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भ्रमण भ्वहरना भ्रमण -संज्ञा, पु. (सं०) घूमना-फिरना, भ्रांति या भ्रम वाला, व्याकुल, बेकल, फेरी, विचरण, यात्रा, आना-जाना, चक्कर। घुमाया हुअा, उन्मत्त. भुला हुआ । वि० भ्रमणीय। भ्रांतापति--संज्ञा, हो. यौ० (सं० ) एक भ्रमना-अ० कि० दे० (सं० भ्रमण ) घूमना, ० ( स० भ्रमण ) धूमना, अर्थालंकार जिसमें भ्रांति के मिटाने के हेतु फिरना। प्रे० रूप भ्रमवाना, स० रूप सत्य वस्तु का वर्णन हो । अ० पी० )। भ्रमाना। अ० क्रि० ( सं भ्राम ) धोखा भ्रांति--संज्ञा, स्त्री० (५०) धोखा, भ्रम, संदेह, खाना, भूलना, भूल जाना, भटकना, भरमना भ्रमण, उन्माद, पागलपन, चक्कर, भँवरी, (दे०) भूल करना। घुमेर, मोह, भूल-चूक, प्रमाद, एक अर्थाभ्रममूलक-वि• यौ० (०) जो भ्रम से लंकार जिसमें दो वस्तुओं के साम्य के कारण उत्पन्न हुआ हो, भ्रमात्मक । एक को भ्रम से दूसगी वस्तु के समझने का भ्रमर-संज्ञा, पु. ( सं० । भौंरा. भँवर । कथन हो। (अ० पी० ), भ्रांतिमान् । " गुंजत भ्रमर-पज मधु-माने ----रामा० । यौ०-भ्रमर गुफा-हृदय के भीतर का भ्राजना*--अ० कि० द० (सं० भ्राजन) शोभा एक स्थान (योग०)। उद्धव का एक नाम । पाना, सुशोभित होना। यौ०-भ्रमरगीत-वह गीत-काव्य जिसमें भ्राजमान* ---वि० (सं०) शोभायमान, गोपियों ने उद्धव को उलाहना दिया है। सुशोभित। दोहा का एक भेद, छप्पय का ६३ वाँ भेद | भ्रात, भ्राता* ----संज्ञा, पु० (सं० भ्रातृ) भाई। (पि० ) दो पद रोला और एक दोहे से भ्रातृत्व--संज्ञा, पु. (सं०) भाईपन, । मिला छंद जिसके साथ अंत में १० मात्राओं भ्रातृद्वितीया-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० ) की एक टेक सी रहती है। यमद्वितीया, कार्तिक शुक्ल द्वितीया, भाईभ्रमर-विलासिता-रज्ञा, प्रो. ( सं०, एक दूज, भयाद्वीज, भइयादुइज (दे०) । छंद ( पि०)। भ्रातृपुत्र--संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) भतीजा, भ्रमरावनी-संज्ञा स्त्री० यो सं० ) भौंरों भ्रातृज। का समूह या पंक्ति, मनहरण छंद, नलिनी भ्रातृभाव- - संज्ञा, पु० यो० (सं० ) भाई(पि.)। चारा, भ्रातृ-स्नेह, भ्रातृत्व, भाईपन । भ्रमवात-संज्ञा, पु० यौ० ( ०.) सदा घमने भ्रामक-वि० (सं० ) भ्रम में डालने वाला, वाला, आकाश का वायु-मंडल ।। चकराने, बहकाने या घुमाने वाला। भ्रमात्मक-वि० यौ० ( सं.. ) संदेह का मूल भ्रामर-संज्ञा, पु० (सं०) शहद, मधु, दोहा कारण, संदिग्ध. संदेह-जनक, जिससे या का द्वितीय प्रकार । वि०-भ्रमर-संबन्धी । जिसके संबन्ध में भ्रम होता हो, भ्रर-जनक। भ्र-संज्ञा, स्त्री. (सं.) भौं, भौंह । भ्रमी--वि० ( सं० भ्रमिण ) जिसे भ्रम हुआ ण-सशा, पु० ( स० ) गम का बच्चा । हो, भौचक, चकित । भ्रूणहत्या-संज्ञा, स्त्री० यो० ( सं० ) गर्भ के भ्रष्ट..... वि० ( सं० ) पतित, खराब, कुमार्गी, बच्चे को मार डालना। बहुत ही बिगड़ा हुश्रा, दूपित, बुरा। भ्रूभंग---संज्ञा, पु० यौ० (सं० ) भौहें टेढ़ी भ्रष्टा-संज्ञा, स्त्री. (सं०) छिनाल, कुलटा। करना, त्योरी चढ़ाना, क्रोध करना । संज्ञा, भ्रष्टाचार-वि० यौ० (सं० ) बुरा व्यवहार । स्त्री-भ्रभंगिमा । भ्रांत-संज्ञा, पु० (सं०) नलवार के ३२ वहरना* --अ० कि० दे० (हि. भय + हाथों में से एक हाथ । नि० (स०) विकल, हरना-प्रत्य०) भयभीत होना, डरना । For Private and Personal Use Only
SR No.020126
Book TitleBhasha Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamshankar Shukla
PublisherRamnarayan Lal
Publication Year1937
Total Pages1921
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size51 MB
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