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भूलनी, भुलनी
भृगुकच्छ क्रि०-स्मरण न रहना, विस्मरण होना, भूसन --संज्ञा, पु० दे० (सं० भूषण ) ग़लती होना, चूकना, लुभाना, खो जाना, भूषण, गहना । " भूपन सकल सुदेश इतराना, मुग्ध होना। द्वि० रूप भुलाना, सुहाये"--- रामा० । प्रे० रूप भुलवाना।
भूसा-संज्ञा, '१० दे० ( सं० तुष) गेहूँ, जव भूलनी, भुलनी-संज्ञा, स्त्री० (दे०) मार्ग आदि के सठलों के नन्हें नन्हें टुकड़े। यौ.. भुला देने वाली एक घास ।
घास-भूमा भूलभुलैयाँ- संज्ञा, स्त्री० यौ० ( हि० भूल + भूमी-सज्ञा, बी० (हि. भूसा ) अन्न के भुलाना - ऐया-प्रत्य. ) घुमाव या चक्करदार दाने का परी छिलका, महीन या इमारत जिपमें जाकर लोग ऐसे भूल जाते बारीक भूगा यो०-चूनीभूसी। हैं कि उनका बाहर निकलना कठिन हो भूलुत-संक्षा, पु० यौ० (सं०) कुज, भौम, जाता है, चकावू , बड़े धुमाव-फिराव की मंगलग्रह, भू-तनय । बात या घटना।
भूसुता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) भू-तनया भूलोक-संज्ञा, पु० चौ० (सं०) पृथ्वीलोक, सीताजी, कुजा, अवनिजा। संसार, दुनिया।
भूसुर-संज्ञा, पु० यौ० (सं०) ब्राह्मण, भूवा--संज्ञा, पु० दे० ( हि० घूया ) सेमर : महिसुर । " भूसुर लिये हकारि, दीन्ह की रूई, कपास की रूई । वि०-सफेद, । दक्षिणा विधि विधि"-रामा० । संज्ञा, उज्वल, उजला।
पु०-भूसुरत्व। भूशायो-वि० यौ० (सं० भूशायिन् ) भंग-संज्ञा, पु. (सं०) भौंरा, एक कीड़ा, धराशायी, जमीन पर सोने वाला, भूमि बिजली । पर गिरा हुश्रा मृतक, मुरदा ।
भृगराज-हा, पु० (सं०) भँगरैया भंगरा, भूषण--संज्ञा, पु० (०, विभूषण, गहना,
। वनस्पति, घरिस (ग्रा०) एक काला पक्षी, माभूषण, जेवर, अलंकार, वह वस्तु जिससे किसी की शोभा बढ़ जाये। "किय भूपण
भीमराज । । भृगराज की देय भावना
औषधि बनै सुहाई"-कुं० वि० ला० । विय भूपण तिय को"-रामा० । सज्ञा, पु० (स०) हिन्दी के एक प्रसिद्ध महाकवि
श्रृंगी - संज्ञा. १० (सं.) शिवजी का एक जो शिवाजी के यहाँ धे।
दाम या पारिषद। " भृगी फेरि सकल गण भूषन* -- प्रज्ञा, पु० द० (सं० भूषण )
टेरे"-रामा० । संज्ञा, स्त्री. (सं०) भौंरी, भूषण, गहना, अलंकार । " लेहि न भूषन
बिलनी कीड़ा । " भृगी सम सज्जन जग बसन चुराई." -- रामा।
गाये"-एट' । भूषना-स० क्रि० द० (सं० भषण ) भृकुटि, भृकुटी, भृगुटी-(दे०) संज्ञा, स्त्रो. सजाना, अलंकृत या विभूपित करना। (सं० भृकुटी ) भौंह । “भृकुटी बिकट भूषा-सज्ञा, स्रो० (सं० भषण ) जेवर । मनोहर नासा "-रामा० । " बिकट, गहना, सनाने की क्रिया । यौ०-वेश- भृकुटि कच बूँघर वारे"- रामा० । भूषा।
। भृगु-संज्ञा, पु. (स.) एक विख्यात मुनि भूषित- वि० (सं०) विभूपित, अलंकृत, जिन्होंने विष्णु की छाती में लात मारी थी, संवारा या सजाया हुआ, श्राभूपित, गहना शुक्राचार्य, परशुराम, शिव, शुक्रवार । पहिने हुए । “सब भूषण भूषित वर । भृगुकच्छ- पंक्षः, पु० (सं०) एक तीर्थ, भड़ौच नारी"-रामा० ।
। नगर ( वर्तमाम )।
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